Tuesday, March 24, 2009

बीमा एजेंटों के काम का सबूत हैं अखबार


अखबार में नौकरी करते करते सात साल से ज्‍यादा हो गए। इसलिए रोज समाचार पत्रों पर विश्‍वसनीयता के लिए नए नए उदाहरणों से वाकिफ होते रहते हैं। पर अभी जो मैंने देखा उस पर शायद बीमा कंपनियों की पूरी की पूरी इमारत टिकी है।
बीमा कंपनियों की नींव है एजेंट और उनके सर्वेयर। एजेंट के काम और उनके सर्वेयर की रिपोर्ट के आधार पर ही बीमा कंपनियां लाखों रुपए के बीमा कर लेती हैं।
अभी अपन छुटटी पर राजगढ (मेरा होम टाउन) में थे। शाम के वक्‍त एक दोस्‍त के घर जाना हुआ। बीमा कंपनी में सेल्‍स एग्‍जीक्‍यूटिव है। यूं तो अपन जब भी राजगढ होते हैं तो कई साल से अपना अडडा वहीं जमता है, पर कभी मेरा सामने वो काम करते नहीं मिला। इस बार गया तो वो काम कर रहा था, मैंने यूं ही कागज उठाए तो मैंने देखा कि उसने वाहनों के इंश्‍योरेंस में चैचिस नंबर का रिकॉर्ड एक अखबार का कॉर्नर फाडकर कर रखा है। मैंने सोचा शायद कोई पेपर नहीं मिला होगा इसलिए मजबूरी में यह किया गया है। मैंने दूसरी बीमा पॉलिसी के लिए जुटाए गए कागज उठाए तो देखा उसमें भी अखबार के कागज वाले हिस्‍से में ही चैचिस नंबर लिख रखे हैं। गौर से देखा तो एक खास बात थी, ये नंबर अखबार के नाम के साथ डेट वाले हिस्‍से के आसपास लिए गए हैं।
मैंने उत्‍सुकतावश यूं ही पूछ लिया कि यार ये क्‍या माजरा है। कोई और कागज नहीं मिलता क्‍या।
::तो भाई बोला यार हमारी तो नौकरी ही ऐसे चल रही है। इसका मतलब है कि अखबार की डेट तक गाडी सलामत थी और उसके बाद ही इंश्‍योरेंस किया गया है। मतलब जिस दिन सर्वेयर को अपना टयूर दिखाना है और जिस दिन में इंश्‍योरेंस फाइल करनी है उस दिन के अखबार का इस्‍तेमाल किया जाता है।
मैंने कहा यार गजब है।
तब मुझे लगा कि अखबार की एक डेटलाइन से बीमा का कारोबार कैसे चलता है।

Sunday, March 22, 2009

सरे आम फांसी की सजा सुनाने वाला जज विदा


भाजपा के पूर्व सांसद और राजस्थान हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुय न्यायाधीश रहे गुमानमल लोढा (83) का रविवार रात अहमदाबाद में निधन हो गया। 15 मार्च 1926 को नागौर जिले के डीडवाना में जन्मे लोढ़ा राजस्थान उच्च न्यायालय में न्यायाधीश रहते गुमानमल लोढ़ा का क्9त्त्भ् में दहेज हत्या के आरोपियों को सरेआम फांसी देने का आदेश काफी चर्चाओं में रहे। पुराने लोग बताते हैं कि जयपुर के कोतवाली थाना इलाके में वष्ाü क्977 में दहेज हत्या का एक मामला दर्ज हुआ। इस मामले में लोढा ने महिला की सास लिछमी देवी को दोषी मानते हुए सरेआम फांसी दिए जाने का निर्णय सुनाया। वर्ष 1972 से 1977 तक जोधपुर से राजस्थान विधानसभा के सदस्य रहने के अलावा लोढ़ा भाजपा की ओर से नौवीं, दसवीं तथा ग्यारहवीं लोकसभा में पाली (राजस्थान) का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।

Saturday, March 21, 2009

बाप रे! सत्‍तर हजार की जगह, सात लाख रुपए

इस बार घर गया तो यूं ही पापा से बातचीत चल रही थी। पापा इलेक्‍टीसिटी डिपार्टमेंट में हैड कैशियर हैं। इसलिए उनका बैंक में रेग्‍यूलर आना जाना लगा रहता है।
तो सुनिए पापा का सुनाया हुआ एक किस्‍सा
ये किस्‍सा सुनकर लगेगा कि जब तक देश में इतनी अनपढ और नासमझ जनता है तब तक उन भाई साहब जैसे बेवकूफ लोगों का काम चलता रहेगा।
हुआ यूं कि एक बुजुर्ग अनपढ पोस्‍ट आफिस से पैसा निकालकर सीधे बैंक गया। उसने अपनी पर्ची भरवाकर कैश काउंटर पर रख दी। कैशीयर ने पर्ची और नकद रुपयों में अंतर देखकर या बडी रकम देखकर पूछा- बाबा ये इतने रुपए कहां से लाए हो,
बुजुर्ग बाबा बोले पोस्‍ट आफिस से निकलवाए हैं।
कैशियर ने पूछा, कितने हैं
बाबा बोला – सतर हजार रुपए
आप विश्‍वास नहीं करेंगे कि कैशियर के हाथ में वो कितने रुपए थे।
जी सात लाख रुपए
यानी पोस्‍ट आफिस के कैशियर ने सौ रुपए की सात गडडी देने के जगह, पता नहीं कैसे उसे हजार रुपए की सात गडडी दे दी।
पापा को रोकते हुए मैंने भी आप ही की तरह पूछा कि क्‍या पोस्‍ट आफिस में इतने रुपए होंगे। पापा बोले वैसे तो मुश्किल हैं पर मार्च में लोग टैक्‍स सेविंग के लिए पीपीएफ अकाउंट में खूब जमा करते हैं न, इसलिए इतने होंगे।
हां तो
आगे सुनिए, यह है एक छोटे शहर और शराफत का उदाहरण
बैंक के कैशियर ने पोस्‍ट आफिस को फोन किया, कैशियर से बात की। पहले तो साहब मानने को ही तैयार ही नहीं इसलिए बैंक वाले को बोले कि सात लाख हैं तो जमा कर ले, तुझे क्‍या दिक्‍कत है।
पर जब पडोसी को बताया कि समझा ले भाई की नौकरी चली जाएगी।
समझाने के बाद पोस्‍ट आफिस के कैशियर साहब वहां आए, और जब उन्‍हें अपनी गलती का अहसास हुआ तो उसके होश फाक्‍ता थे। हों भी क्‍यूं न
वो इतने पैसे पता नहीं कितने साल में भर पाता ।
पर जब तक भारत में ये निरक्षरता है तब तक शायद ऐसे बेवकूफ लोगों की ईश्‍वर मदद करता रहेगा।

Wednesday, March 18, 2009

आमिर खान का नया गेटअप


अपन के आमिर खान हर काम दिल से करते हैं। इस बार टाटा स्काई के विज्ञापन के लिए वे बिल्कुल नए लुक में नजर आएंगे। आमिर साठ साल के एक सरदार की भूमिका में है।
इस शॉट को फिल्माने के बाद आमिर खुद कहते हैं कि उम्र के साथ अभिनय करना आसान नहीं होता लेकिन बतौर अभिनेता इस अवतार ने उनके सतत नया करने की जिद को एक कदम और बढ़ा दिया है। वे कहते हैं जब मैंने खुद को नए रूप देखा तो मैं दंग रह गया, यह रूप मेरे वास्तविक चेहरे से बिल्कुल अलग था।

Monday, March 16, 2009

क्‍या किसी ने देखे हैं भूत


आफिस से काम खत्‍म होने के बाद अक्‍सर हम चाय पीने चले जाते हैं। कल रात भी हम निकल पडे चाय पीने। जब तक चाय बनती हमारे एक मित्र सुधाकरजी ने भूतों के अस्तित्‍व का सवाल छेड दिया। हुआ यूं कि कल ही उनके एक सालेजी ने उन्‍हें अपना साथ कई साल पहले घटा एक वाकया सुनाया था। सुधाकरजी का कहना है कि वे पुलिस में हैं और उनकी बात पर उन्‍हें पूरा यकीन है, क्‍यूंकि न तो वो झूठ बोलते हैं न ही कभी मजाक करते हैं।
किस्‍सा कुछ यूं था कि उन समेत तीन पुलिसवाले एक जीप से काम खत्‍म करके घर जा रहे थे कि गाडी गवर्नमेंट हॉस्‍टल (जयपुर का एक चौराहा) से गुजरी वहां एक सुंदर महिला ने रात करीब दो बजे लिफट मांगी। पुलिस वालों ने मदद के वास्‍ते गाडी रोकी तो महिला ने गोपालपुरा चौराहे तक छोडने को कहा, उन लोगों को सांगानेर तक जाना था इसलिए लिफट दे दी गई।
महिला को छोडते समय उन्‍होंने महिला के पैरों की तरफ देखा तो पंजे उल्‍टे थे। सभी के होश उड गए और डाइवर ने गोली की स्‍पीड से गाडी दौडा दी।
इसके बाद तो बस किस्‍सों की बाढ आ गई। हमारे एक और साथी तरुण और दिनेशजी ने भी एक के बाद एक किस्‍से सुना दिए। दिनेशजी ने भी इस तर्क का समर्थन किया कि उन्‍होंने भी एक बार इस तरह के एक साए को महसूस किया है। 1979 की बात कर रहे थे वो कि उन्‍होंने अपने पीछे एक साए का पीछा करते हुए देखा और अचानक वो गायब हो गया।
खैर ये किस्‍से तो करीब दो घंटे में खत्‍म हो गए पर मैं यह सोचता रहा कि क्‍या किसी ने भूत देखे हैं।
खैर
पता नहीं लेकिन मैंने आजतक जितने किस्‍से सुने उनमें बताया गया कि भूत या चुडैल के पंजे उल्‍टे होते हैं
मिठाई या सफेद चीज का पीछा करते हैं
हनुमानजी का नाम लेने पर गायब हो जाते हैं

अपन भी जय हनुमानजी की करते हुए घर पहुंच गए
और सुबह होने तक सोचते रहे कि क्‍या है कहीं भूत का अस्तित्‍व ?
इस बीच नींद लग गई और यह चिंतन अधूरा ही रह गया।

Sunday, March 8, 2009

चल बसा एक गुमनाम सांसद !


जयपुर से भाजपा सांसद गिरधारीलाल भार्गव का रविवार को निधन हो गया। अपन सुबह नींद में थे कि सुबह छोटे भाई ने उनके पड़ोस में रहने वाले किसी परिचित के हवाले से यह दु:खद खबर दी। यूं तो सबको जाना होता है, उम्र भी थी उनकी 72 पर, शायद जल्दी चले गए। उनकी रग-रग में जयपुर बसा था, शहर को गिनाने के लिए भले ही उनके हिस्से में कोई खास उपलब्ध न हों, पर शायद उनसे ज्यादा लोकप्रिय कोई सांसद देश में हो, कम से कम राजस्थान में तो ऐसा कोई पैदा नहीं हुआ।
छह बार लगातार सांसद रहना और उससे पहले तीन बार विधायक और एक बार छात्रसंघ अध्यक्ष बनना उनकी लोकप्रियता का ही एक उदाहरण था। उन्होंने सबसे कम वोटों से जयपुर के ही पूर्व नरेश को 1989 के लोकसभा चुनावों में हराया और यह आंकड़ा भी करीब 85 हजार था। उनके सामने चुनाव लड़ने के लिए हिम्मत जुटाना ही अपने आप में बड़ी बात थी।
पर यूं पार्टी में उनकी गत पर अपन को कई बार अफसोस रहा, कहते हैं न शरीफ आदमी की राजनीति में इज्जत नहीं होती, इसका भार्गव से बड़ा कहीं कोई उदाहरण नहीं हो सकता। क्योंकि इस सबके बावजूद उन्होंने कभी अपने लिए पद की मांग नहीं की वहीं पार्टी ने न कभी उन्हें पद के योग्य समझा न मंत्री बनने के। हालात तो ये थे कि हाल के विधानसभा चुनावों में तो उन्हें बुजुर्ग कहकर विधानसभा चुनाव लड़ने या संन्यास लेने तक के लिए कह दिया गया! एक कार्यक्रम में तो बेचारे भार्गव ने खुद को जवान दिखाने के लिए उठक बैठक कर डाली।
हालत इतनी खराब थी कि शायद वे देश का इकलौता सांसद होगा कि जिसका फोन अगर अखबार के दफ्तर में आ जाए तो उठाने वाला आदमी एक दूसरे को यह कहकर टाल देता हो कि यार भार्गव साहब का फोन है खबर लिखाएंगे तू सुन ले।
अपन चार साल से जयपुर के मीडिया में हैं, लेकिन अपन को लगता है कि उन्हें मजबूरी में ही अखबार और टीवी पर जगह दी जाती होगी। बेचारे हर छोटे से छोटे प्रोग्राम में जाते पर उनकी फोटो कितनी बार छपी होगी अपन को याद नहीं। शायद इसका अनुमान उस समय हुआ जब `स्मृति शेष´ के स्पेशल पेज के लिए पुराने फोटो जुटाने की याद आई।
वैसे अपन का उनसे एक बार यूं ही फोन पर और एक बार असलियत में वास्ता पड़ा, पर उनकी सादगी के लिए मुझे कहना ही होगा कि शायद, चल बसा एक गुमनाम सांसद, जिसके लिए कहा जाता था, जिसका न पूछे कोई हाल, उसके संग गिरधारीलाल!

Saturday, March 7, 2009

एक अच्‍छी हॉरर फिल्‍म है 13 बी

एक दोस्त का ट्रान्सफर हो गया तो उसकी विदाई पार्टी मनाने के लिए कल रात 9 से 12 के शो में एक हॉरर फिल्‍म देखने चले गए। फिल्‍म का नाम बहुत अजीब था, 13 बी। यूं तो मुझे हॉरर फिल्‍में खास पसंद नहीं है। पर यह फिल्‍म कुछ अलग तरह की है, बेझिझक देखी जा सकती है।
फिल्‍म के मुख्‍य किरदार हैं मनु यानी आर माधवन। कहानी कुछ इस तरह है कि एक आठ लोगों का परिवार एक नए घर में शिफट होता है, घर का एडेस है 13 बी। यानी एक नई बिल्डिंग की 13वीं मंजिल पर। शिफटिंग के बाद, लगातार घर में रोज दूध फट रहा है और मंदिर वाले कमरे में भगवान की तस्‍वीर टांगने के लिए कील नहीं ठोकी जा सकी है।
अचानक ही एक बजे टीवी ऑन होता है और उस पर एक सीरियल शुरू होता है ‘सब खैरियत’। उस पर आने वाली कहानी बि‍ल्‍कुल उस परिवार से मिलती है। वही आठ लोगों का परिवार सेम वो ही घटनाएं। बस इसी सीरियल और घटनाओं की आड में कहानी आगे बढती है।

इतने में ही मनु के साथ कुछ अजीब होने लगता है, जैसे उसकी मोबाइल पर खींची गई तस्‍वीरें डिस्‍टाकट हो जाती हैं, वो लिफट में जाता है तो लिफट नहीं चलती। बाकी सारे लोगों की तस्‍वीरें भी ठीक आ रही हैं और वो लिफट से भी आ जा सकते हैं। दूसरे ही दिन खुद मनु भी वो एपीसोड देखता है तो उसे समझ आता है कि उसकी कहानी और उस टीवी सीरियल की कहानी बिल्‍कुल एक जैसी है।
मनु अपने पुलिस इंस्‍पेक्‍टर दोस्‍त की मदद लेता है उसे कहानी बताता है, पहले तो मानता नहीं पर जब खुद वो सीरियल देखता है तो वो भी कहानी में इनवोल्‍व हो जाता है। कहानी आगे चलती है तो उसे पता चलता है कि एक दिन हथौडा लेकर एक आदमी उसके घर गया है और उसके परिवार के सभी आठ लोगों का कत्‍ल कर देता है।
मनु उस आदमी की तलाश कर ही रहा होता है कि उसे अगले दिन के एपीसोड में खुद अपना ही चेहरा दिखता है हथोडा लिए हुए। वह अपने आप को परिवार से दूर एक जगह बंद करवा लेता है ताकी उसके परिवार को कोई खतरा न हो सके।
फिल्‍म में हत्‍यारा कौन है यह बात मैं आपको बता नहीं रहा क्‍योंकि आपका मजा किरकिरा हो जाएगा।

इसलिए डिफरेंट है मूवी
फिल्‍मांकन मजेदार है और पागल की एक्टिंग जबरदस्‍त है। एक और खास बात है कि यह पहली हॉरर फिल्‍म होगी जिसमें भूत टीवी में है यानी सुपरनेचुरल पावर और टैक्‍नोलॉजी का इस्‍तेमाल वर्ना अब तक की हॉरर फिल्‍मों में साया दिखता और तांत्रिक आता। यहां डॉक्‍टर ही सुपरनेचुरल पावर में विश्‍वास करता है। कहानी में इतनी कसावट है कि नींबू मिर्च, अजीबोगरीब अवाजें और साए दिखाए बिना ही स्‍टोरी एस्‍टेबलिश हो जाती है यानी हॉरर फिल्‍म वो भी बिना किसी भूत के।
हां, शुरुआत के 20-25 मिनट की फिल्‍म थोडी ऊबाउ लग सकती है, पर उसके बाद आपको पलक झपकने का भी मौका नहीं मिलेगा। डायरेक्‍टर ने प्रभावी स्‍टोरी पर काम किया है। फिल्‍म में माधवन के बाद उनकी पत्‍नी बनीं नीतू चंद्रा के हिस्‍से भी दो चार सीन आए है, जिनमें वो अच्‍छी जमी। बहुत दिनों बाद पूनम ढिल्‍लो नजर आई हैं।
फिल्‍म में दो गाने हैं जिनमें से एक 'आसमान ओढ़ कर' स्‍लो है और अच्‍छा लगता है।

हां एक और खास बात
फिल्‍म में रेसेपी बुक की आड में एक रोमांटिक सिक्‍वेंस भी है। आप फिल्‍म देखकर आएं और भाभी घर हों तो टंगडी कबाब जरूर बनाएं :)

(मैंने रात नौ बजे के शो में एक हॉरर फिल्‍म देखी, यह तब है ज‍बकि इस फिल्‍म की कहानी का प्‍लॉट और मेरे मकान की कहानी भी काफी मिलती है, यह सब दूसरी किस्‍त में )