tag:blogger.com,1999:blog-39917437326068329262024-03-14T02:10:00.483-07:00Shuruwat : जिंदगी सिखाती है कुछराजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.comBlogger164125tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-73385139965399218802013-01-10T12:18:00.002-08:002013-01-10T12:18:37.871-08:00लोग क्या क्या सर्च करते हैं <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br /></div>
यूं तो रोज ही ऑनलाइन रहते हैं पर आज दिनों बाद किसी के यहां फुरसत में इंटरनेट यूज कर रहा था। ठाले बैठे सोचा कुछ सर्च मारा जाए। पहले मैं ए से जेड तक यूं ही अक्षर लिखकर सर्च कर रहा था। इस दौरान मैंने देखा कि या तो बडी कंपनियां या नामी वेबसाइट सर्च की जा रही हैं। गूगल के सजेशन से साफ था कि लोगों को साइट का नाम याद होता है उसके बाद भी वे गूगल की मदद से ही साइट तक जाते हैं। खैर बाद में मैंने कुछ और कीवर्ड डालकर सर्च करना शुरू किया। जैसे वाइफ ऑफ, सन ऑफ, सिस्टर ऑफ, मदर ऑफ तो लगा कि अब मैं भी तकनीक के मामले में और युवाओं से पीछे आ गया हूं। मुझे हनी सिंह के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। और लोग सिस्टर ऑफ हनी सिंह, वाइफ ऑफ हनी सिंह खोज रहे हैं। श्रीदेवी और महेश भटट की बेटियां भी सबसे ज्यादा खोजी गई चीजों में थी। राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-50084622744015449732012-11-04T12:22:00.000-08:002012-11-04T12:22:05.422-08:00मां और उनकी बचपन की सहेलीकल अस्पताल में मां से मिलने के लिए उनकी बचपन की सहेली आईं। मां अपनी सहेली से बातचीत करते हुए बड़ी खुश थीं। हों भी क्यों न, आखि र39 साल बाद अपनी स्कूल फ्रेंड रत्ना मेठी से मिल रही थीं। अभी पिछले दिनों मेरे ननिहाल से उन्होंने मम्मी का नंबर लिया और उनसे मिलने की इच्छा जताई। शादी के बाद आंटी जयपुर थीं और मम्मी राजगढ़, इसलिए उनकी मुलाकात नहीं हो पाई। अब जैसे ही उन्हें पता चला कि वे आजकल जयपुर में हैं तो अस्पताल में ही उनसे मिलने चलीं आईं। अच्छा लगा उनकी बचपन की बातचीत सुनकर। <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://4.bp.blogspot.com/-ifuUeyXR2e4/UJbOUqTt6vI/AAAAAAAABg0/QssqnTLizP8/s1600/486334_10151499162394348_921854577_n.jpg" imageanchor="1" style="margin-left:1em; margin-right:1em"><img border="0" height="300" width="400" src="http://4.bp.blogspot.com/-ifuUeyXR2e4/UJbOUqTt6vI/AAAAAAAABg0/QssqnTLizP8/s400/486334_10151499162394348_921854577_n.jpg" /></a></div>
राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-90130515636353587322012-10-14T13:41:00.000-07:002012-10-14T13:42:12.712-07:00कांग्रेस के कुछ आत्मघाती बयान कांग्रेस के कुछ आत्मघाती बयान
मैं सोनिया जी के लिए जान तक दे दूंगा- सलमान खुर्शीद, केंद्रीय कानून मंत्री
केजरीवाल को तो मैं 'देख लूंगा' -सलमान खुर्शीद, केंद्रीय कानून मंत्री
पैसे पेड़ पर नही उगते- मनमोहन सिंह, प्रधानमंत्री
पूरे देश मे बलात्कार हो रहे हैं- सोनिया गांधी, अध्यक्ष यूपीए
भारत 'बनाना रिपब्लिक' है- रॉबर्ट वाड्रा
यूपी के लोग भिखारी होते है- राहुल गांधी
पंजाब के 70% युवा नशेड़ी है- राहुल गांधी
90% बलात्कार तो लड़की की मर्जी से होते है.- धरम वीर गोयत, प्रवक्ता हरियाणा कांग्रेस
पुरानी पत्नी में वो मजा नहीं रहता- श्रीप्रकाश जयसवाल, केंद्रीय कोयला मंत्री
आर.एस.एस आतंकी संगठन है इसमें लोगो को आतंकवादी और देशद्रोही बनाया जाता है -दिग्विजय सिंह
बलात्कार तो हर जगह होता है - रेणुका चौधरी, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता
मंदिर से ज्यादा अहम है शौचालय - जयराम रमेश, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री
बोफोर्स की ही तरह कोयला घोटाला को भी जनता भूल जाएगी -सुशिल कुमार शिंदे, केंद्रीय गृहमंत्री
सूचना का अधिकार का दुरुपयोग रोका जाए- प्रधानमंत्री मनमोहन सिंहराजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-12495266768639106342010-10-17T13:06:00.000-07:002010-10-17T13:16:05.713-07:00रावण को भी मार गया लेआउट<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/TLtZaNuS28I/AAAAAAAAA80/9WIt237SpFw/s1600/DSC_0319.JPG"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 185px; height: 400px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/TLtZaNuS28I/AAAAAAAAA80/9WIt237SpFw/s400/DSC_0319.JPG" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5529111274422721474" /></a><br /><br /><br />इस साल विजयादशमी पर रावण में एक क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिला। रावण मैचोमैन की तरह यंग दिखा। जिस रावण को हम दशानन के नाम से जानते थे उसके सिर गिने तो। मुंह से निकला अरे यार ये क्या इसके तो नौ ही सिर है।<br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/TLtY0jQR2VI/AAAAAAAAA8k/GVBIHymhjDk/s1600/BH1801CE.JPG"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 344px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/TLtY0jQR2VI/AAAAAAAAA8k/GVBIHymhjDk/s400/BH1801CE.JPG" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5529110627367377234" /></a><br />फिर आसपास जहां भी नजर दौड़ाई रावण के सिर पर नौ ही सिर दिखे। इधर उधर पूछताछ की कोशिश की गई तो पता चला कि इधर पांच और उधर चार अच्छे नहीं लगते इसलिए समतल कर दिए हैं। यानी दोनों तरफ चार-चार सिर फिट कर दिए गए हैं।<br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/TLtZGCWjo5I/AAAAAAAAA8s/HDOAMUuVCug/s1600/BH1801CC.JPG"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 234px; height: 265px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/TLtZGCWjo5I/AAAAAAAAA8s/HDOAMUuVCug/s400/BH1801CC.JPG" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5529110927772984210" /></a><br /><br />यानी अब रावण को भी ले-आउट मार गया आने वाली पीढिय़ों के जीके में एक सवाल और जुड़ गया जिसे रटाना होगा। और उन्हें दशानन का मतलब समझाना होगा। <br />जय हो रावण की !राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-80437367204447767532010-08-14T12:33:00.000-07:002010-08-14T12:47:04.152-07:00वाह रे झंडू बामझंडू फार्मेस्यूटिकल कंपनी की एक दवा है झंडू बाम। जुकाम, सर्दी और सिरदर्द में काम आती है। बचपन में दूरदर्शन देखते थे तो एक विज्ञापन आता था पीडाहारी बाम झंडू बाम। बाद में बेरोजगारी के दिनों में इंडिया टुडे के आखिरी पेज पर विज्ञापन होता था आज एक बाम तीन काम झंडू बाम। <br />पर अब तीस के हुए तो लगा कि ये बचपन के दिनों में ये जो झंडू बाम होती थी अब एक फ्रेज हो गई है। दबंग फिल्म का एक गाना है। <br />मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए, ले झंडूबाम हुई डार्लिंग तेरे लिए। ये गाना मैं कई बार सुन चुका हूं। हां अभी देख नहीं पाया पर सुना है कि सल्लू ने अपनी भाभी मलाइका अरोडा के साथ इस गाने पर डांस किया है। <br />पर ललित पंडित का लिखा ये गाना हिंदी के इतिहास में एक नई फ्रेज के लिए जाना जाएगा। जिंदगी झंडूबाम हो गई, ये शब्द में हम कॉलेज के दिनों में हम भी इस्तेमाल किया करते थे। आज सुबह एक एसएमएस में भी यह शब्द मैंने पढा। <br />सोचा इस झंडूबाम पर आपना भी ध्यान आकर्षित किया जाए।राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-67420897801703494912010-07-15T15:33:00.000-07:002010-07-15T15:34:28.684-07:00कुछ मजेदार परिभाषाएंअनुभव : भूतकाल में की गई गलतियों का दूसरा नाम ।<br /><br />अवसरवादी : वह व्यक्ति, जो गलती से नदी में गिर पड़े तो नहाना शुरू कर दे।<br /><br />कंजूस : वह व्यक्ति जो जिंदगी भर गरीबी में रहता है ताकि अमीरी में मर सके।<br /><br />अपराधी : दुनिया के बाकी लोगों जैसा ही मनुष्य, सिवाय इसके कि वह पकड़ा गया है।<br /><br /><br />अधिकारी : वह जो आपके पहुंचने के पहले ऑफिस पहुंच जाता है और यदि कभी आप जल्दी पहुंच जाएं तो काफी देर से आता है।<br /><br /><br />समझौता : किसी चीज को बांटने का वह तरीका जिसमें हर व्यक्ति यह समझता है कि उसे बड़ा हिस्सा मिला।<br /><br /><br />कान्फ्रेन्स रूम : वह स्थान जहां हर व्यक्ति बोलता है, कोई नहीं सुनता है और अंत में सब असहमत होते हैं।<br /><br /><br />परम आनंद : एक ऐसी अनुभूति जब आप अनुभव करते हैं कि आप एक ऐसी अनुभूति को अनुभव करने जा रहे हैं जो आपने पहले कभी अनुभव नहीं की है।<br /><br /><br />श्रेष्ठ पुस्तक : जिसकी सब प्रशंसा करते हैं परंतु पढ़ता कोई नहीं है।<br /><br /><br />कार्यालय : वह स्थान जहां आप घर के तनावों से मुक्ति पाकर विश्राम कर सकते हैं।<br /><br /><br />समिति : ऐसे व्यक्ति जो अकेले कुछ नहीं कर सकते, परंतु यह निर्णय मिलकर करते हैं कि साथ साथ कुछ नहीं किया जा सकता।राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-65949195070387964132010-06-30T20:43:00.000-07:002010-06-30T21:50:35.331-07:00इस मौसम विभाग को बंद कर दोहिन्दुस्तान में मुफत की सलाह देने का शौक है। अपन का भी मन हुआ कुछ सलाह दी जाए। सरकार को दो डिपार्टमेंट बिल्कुल बंद कर देने चाहिए और इनकम बढाने के लिए तीसरा विभाग खोलना चाहिए। <br />पहला मौसम विभाग, किसी काम का नहीं, जो कहे सो होना नहीं। इतने दिन से चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे 15 जून तक मानसून आ जाएगा, इस बार मानसून अच्छा है। अपने दिमाग में उसी दिन खटका हुआ, कि इस बार तो बारिश गायब समझो। भगवान न करे ऐसा हो, पर लग नहीं रहा कि इस बार ज्यादा बारिश होगी। यानी ऐसा डिपार्टमेंट जिसकी एक भी भविष्यवाणी आजतक सही निकली। और तो और केंद्र सरकार ने इस बेमतलब के विभाग के लिए करोडों रुपए स्वीकृत कर रखें हैं ताकी मौसम का 24 घंटे वाला चैनल शुरू किया जा सके। अब बताइये जरा, जो करोडों हिन्दुस्तानियों के इंतजार की घडियां ठीक ठीक न बता सकें उस विभाग को पालने पोसने का क्या फायदा। इससे तो यह काम ज्योतिषियों को ही दे दें। इनसे अच्छी घोषणा तो वे ही कर देंगे ! <br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://2.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/TCwQxT3KkKI/AAAAAAAAA68/SofPFaQNff8/s1600/weather_office.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 308px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/TCwQxT3KkKI/AAAAAAAAA68/SofPFaQNff8/s400/weather_office.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5488780485189079202" /></a><br />(चित्र गूगल बाबा के सहयोग से )<br /><br /><span style="font-weight:bold;"></span>दूसरा है अपना देवस्थान विभाग (राजस्थान का ऐसा विभाग जो मंदिरों की देखरेख करता है, शायद सिर्फ राजस्थान में ही है)। अब बताइये सरकार है धर्मनिरपेक्ष और सरकार ने एक विभाग बना रखा है, जो मंदिरों और भगवानों की पूजा पाठ व देखरेख कराए। तब भी मंदिरों के हालत ऐसे कि आप शरमा जाएं। इससे तो इस विभाग को बंद कर दें ताकी इस विभाग की फाइलों पर खर्च होने वाले बजट से ही किसी मंदिर का न सही किसी भक्त का ही भला हो। <br /><br /><span style="font-weight:bold;"></span>अब बात करें फायदे की <br />इन दो विभागों को बंद करके सरकारों को तबादला विभाग खोलने चाहिए। हर टांसफर की रेट फिक्स हो, पब्लिक भी खुश और सरकार भी। जिसे कराना है तबादला वो तो आज भी पैसा खर्च कर ही रहा है, अब सरकार के पास जाएगा तो थोडा बहुत वापस पब्लिक तक भी पहुंचेगा, वर्ना नेता और बिचौलिए पूरा ही खा रहे हैं।राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-25665385555721164332010-06-10T16:39:00.000-07:002010-06-10T16:59:19.418-07:00रूठने से बढती है सुंदरताकोई भी क्रीम लगाने से आदमी गोरा नहीं होता सुंदर बनना है तो औरतों को रुठना आना चाहिए क्योंकि अपन के धर्मेंद्रजी कह कर गए हैं <a href=" \http://www.youtube.com/watch?v=fh3-wQXaxqA ">कोई हसीना जब रूठ जाती है</a> तो और भी हसीन हो जाती है। इसलिए अब क्रीम की कंपनियां अपनी मार्केटिंग में इस फार्मूले का इस्तेमाल कर सकती हैं। <br /><object width="425" height="344"><param name="movie" value="http://www.youtube.com/v/fh3-wQXaxqA&hl=en_US&fs=1"><param name="allowFullScreen" value="true"><param name="allowscriptaccess" value="always"><embed src="http://www.youtube.com/v/fh3-wQXaxqA&hl=en_US&fs=1" width="425" height="344" allowScriptAccess="never" allowFullScreen="true" wmode="transparent" type="application/x-shockwave-flash"></embed></object><br />यह तो इकलौता गाना है अपन को और भी बहुत सारे गाने समझ नहीं आते। <br />जैसे एक गाना है ओ हसीना जुल्फों वाली। अपन सच बता रहे हैं आज तक अपन ने कोई गंजी लडकी नहीं देखी। <br />पोस्ट छोटी है, पर काम की है बस यूं समझ लीजिए महीनों का गेप हो गया तो लिखने की आदत खत्म हो गई। आठ महीने के अंतराल के बाद लिखा है पर अब आपको दनादन पोस्ट मिलती रहेंगी।<br /><br /><br />खूब सारी शिकायते थीं मुझसे <br />बहुत सारे शुभचिंतक साथियों ने मुझे खूब मेल भेजे। कई लोगों ने सामने ही टोक दिया। किसी ने लिखा शादी के बाद ब्लॉग का समय बीवी को दे दिया। यहां तक हुआ कि एक मित्र ने तो मजाक में मेरे ब्लॉग की तीये की बैठक तक का आयोजन वाला मेल ही मुझे भेज दिया। पर अब आपकी शिकायतें दूर हो जाएंगी। सुन रहे हो न दीपू, संदीप और सुधाकरजी।राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-42931497569519165362009-11-21T04:52:00.000-08:002009-11-21T04:53:17.422-08:00वाह रे आपदा प्रबंधनअपना देश सचमुच भगवान भरोसे है और अपनका शहर तो सौ फीसदी भगवानजी की शरण में। अब ये भगवानजी कौनसे वाले हैं अपन को आइडिया नहीं है पर यहां कोई लॉ एंड ऑर्डर है न कोई आपदा प्रबंधन का सिस्टम, जिसकी जो मर्जी करे। जो होना है वह अपने आप ही होगा। और मामले ऐसे की देश में पहली बार होकर मिसाल कायम कर रहे हैं। <br />सीतापुरा के पास आईओसी डिपो में आग लगी, जब 14 दिन बाद तेल खत्म हुआ तब ही बुझी, मजाल है कि कोई सिस्टम यह बताने भी आया हो कि कब बुझेगी। देशभर के मीडिया को जब तक लौ तीस फुट तक उमड रही थी, तब तक इंटरेस्ट था उसके बाद किसी ने पूछा भी नहीं। अब सुन रहे हैं कि सरकार जागी है देश भर में आबादी के बीच वाले डिपो शिफ़ट होंगे। पर शायद इतनी बडी आग से पहले किसी ने यह भी न सोचा कि अगर आग फैल गई तो बुझेगी कैसे। <br />उसके बाद जयपुर के पास ही मंडोर एक्सप्रेस पलट गई, टेन की बोगी को चीरते हुए अंदर घुस गई। शुक्र था कि एसी डिब्बे चपेट में आए इसलिए मरने वालों की तादात दहाई का आंकडा न छू पाई वर्ना मरने वाले कितने होते पता नहीं, जनरल बोगियों की हालत जो होती है वह किसी से छिपी नहीं है। अब जांच करने वाले बता रहे हैं कि पटरी में क्रेक था इसलिए तेज गति से आ रही टेन के दवाब से पटरी टूट गई और हादसा हो गया। लोग कह रहे हैं कि इतने हादसों में यह पहली बार हुआ है कि पटरी बोगी को चीरते हुए अंदर चली गई हो। <br />अब बे-आपदा प्रबंधन का एक और उदाहरण देखिए। <br />9 नवंबर यानी आज से 12 दिन पहले जयपुर के पास ही शाहपुरा के जगतपुरा गांव में चार साल का साहिल 200 मीटर गहरे खुले बोरवेल में गिर गया। तीन दिन तक पूरा मीडिया जमा रहा। प्रशासन भी प्रेसनोट जारी करता रहा। पर आज 13वें दिन तक बच्चा जिंदा निकलना तो दूर उसका शव तक निकाला नहीं जा सका। अब तो शव लिखना ही उचित ही है कि अगर भगवान खुद भी आ जाएं तो उसे जिंदा न निकाल सकेंगे। <br />जयपुर में 23 को निकाय चुनाव है इसलिए प्रशासन चुनाव में बिजी हो गया और मीडिया उसकी कवरेज में। और दो दिन तक टीवी देख रहे लोग वापस सास बहू के सीरियल्स में। यानी सब भूल गए कि साहिल के घर में 12 दिन से खाना नहीं बना और गांव में आज भी मायूसी है। <br /><br />अब सुनिए बच्चे को निकालने के लिए चलाया गया अभियान <br />पहले लोगों और प्रशासन ने मैनुअली फावडे से मिटटी निकाली। जब उससे मन भर गया और पार न पडी तो हल्ला मचा। फिर प्रशासन ने काम अपने हाथ में संभाला, बोरवेल में बच्चे को देखने के लिए पहले तो कैमरा ही न मिला। बाद में बडी मशक्कत के बाद सीसीटीवी लगाया गया तो डॉक्टरों को बच्चे की हलचल नहीं दिखी। उसके दो दिन बाद तक बोरवेल के समानांतर रूप में सिर्फ 90 फुट तक ही खोदा जा सका। इसमें भी कहते हैं कि 70 फुट के बाद मिटटी नहीं खुद पा रही थी इसलिए पाइप मंगवाए गए। प्रशासन ने बीसलपुर वाले पाइप का जुगाड किया वो भी सिर्फ 20 फुट क्यूंकि इससे ज्यादा मिला ही नहीं। सीकर से मिल सकता था, जहां से लाया नहीं जा सका। इसके बाद इंद्रदेव नाराज हो गए और काम रुक गया। फिर काम शुरू हुआ तो लोग उम्मीद छोड चुके थे काम धीमा हो गया और अब तक कुल मिलाकर 105 फुट ही खुदाई हो सकी है। <br />ये है अपन का आपदा से निपटने का सिस्टम एक बच्चे को बोरवेल में से नहीं निकाला जा सका, न जिंदा न मुर्दा।<br />दुखी मन से ::::::राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-59425186819845394632009-11-09T04:53:00.000-08:002009-11-09T04:56:07.957-08:00सब कुछ होगा, बस न बचेगा तो कोई भारतीयहिंदी बडी है या राज ठाकरे<br />महाराष्ट में राज ठाकरे लोकप्रियता बटोरने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। अभी चुनाव हुए चार दिन हुए कि उन्होंने मराठी को लेकर फिर राजनीति शुरू कर दी। उनकी पार्टी एमएनएस के विधायकों ने सदन में ही दादागिरी शुरू कर दी। वहां से समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आजमी को शपथ लेने से रोका, माइक हटाकर थप्पड जड दिया।<br />उनका कसूर यही था कि उन्होंने राष्टभाषा हिंदी में शपथ लेने की कोशिश की। एमएनएस का तर्क था कि वे महाराष्ट के विधायक हैं और वहां उन्हें मराठी में शपथ लेनी चाहिए। सपा की ओर से तर्क दिया गया कि आजमी को मराठी नहीं आती, लेकिन एमएनएस नेता राम कदम ने कहा कि दस दिन पहले ही सभी को मराठी में शपथ लेने को कह दिया गया था, उन्हें इतने दिन में मराठी सीख लेनी चाहिए थी।<br /><br />खैर जो कुछ भी हो<br />पर यह बात समझ से परे हैं कि देश के किसी भी राज्य में कुछ गुंडे हिंदी बोलने पर ही पाबंदी लगा दें, वो भी विधानसभा के भीतर। अपने राज्य की भाषा को सम्मान दिलाने के पचासों तरीके हैं पर किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता। एमएनएस ने जो किया इससे ज्यादा बडा देशद्रोह शायद सदन में तो शायद संभव नहीं है।<br /><br />अगर इस तरह के मामलों को गंभीरता से नहीं लिया गया तो जो लालू यादव कह रहे हैं उस बात से इत्तेफाक रखना ही होगा कि देश को टूटने से कोई नहीं रोक सकता। हालत यह हो जाएगी कि उत्तर का आदमी दक्षिणवाले से चिढेगा, पूर्व वाला पश्विम वाले से चिढेगा। देश में कोई भारतीय नहीं होगा।<br />कोई राजस्थानी होगा, कोई मराठी, कोई गुजराती। कोई हिंदू होगा तो कोई मुसलमान।<br />सब कुछ होगा बस न बचेगा तो कोई भारतीय<br />इसलिए पहले भारत को बचाओ, जब भारत बचेगा तब मुंबई होगी, राज होंगे और फिर उनकी एमएनएसराजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-54486334293469221612009-10-06T13:50:00.000-07:002009-10-06T13:54:46.408-07:00एक स्वाभिमानी की कहानीऑफिस के लिए निकला ही था कि किसी ने हाथ देकर लिट मांग ली। मेरे बैठाते ही भाई ने अपनी कहानी सुनाना शुरू कर दिया। कहने लगा कोटा से आ रहा हूं दौसा जाना है, जहां तक जाओ छोड़ देना। मैंने कहा, कोटा से पैदल। बोला कि मजदूरी को लेकर ठेकेदार से लड़ाई हो गई, इसलिए छोड़कर आ गया। मैंने कहा तो पैदल क्यूं आ गए। बोला कि साहब पैसे नहीं थे, इसलिए आ गया। मैंने कहा भाई ट्रेन तो सरकारी है, उसी में आ जाते। बोला बैठा था पर टीटी आ गया। पैसे मांगने लगा, मेरे पास थे नहीं तो लप्पड़ मार दिया। बस उतर कर पैदल ही चला आ रहा हूं। छठा दिन है चलते-चलते। मुझसे रहा न गया, पीछे मुड़कर उसकी शक्ल देखी तो कंधे पर एक पीले रंग की स्वापी थी और होंठ एकदम फटे हुए, सूखे। मैंने दस दस के दो नोट निकाले और बाइक गांधीनगर स्टेशन की तरफ मोड़ दी। मैंने कहा सामने गांधीनगर स्टेशन है। 13 रुपए के आसपास का टिकट होगा चले जाओ ट्रेन से। बोला भाई साहब दो-तीन दिन से ठीक से कुछ खाया भी नहीं है, पैदल जाऊंगा तो किसी गांव में खाना भी हो जाएगा। मैं रास्तेभर सोचता रहा कि यार आज की दुनिया में ऐसा भोला इंसान भी है क्या ?<br />इतने में मेरे ऑफिस की गली आ गई और मैंने उसे आगे का रास्ता बताकर विदा ली।<br />- जयपुर से कोटा की दूरी करीब 2५०किमी है।राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-31318923190007714842009-09-26T12:18:00.000-07:002009-09-26T12:33:33.332-07:00टाइमपास है व्हाट़स योर राशि<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/Sr5schnSKuI/AAAAAAAAA0Q/8Z7e7f2KICM/s1600-h/whats-your-raashee-060909.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 320px; height: 198px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/Sr5schnSKuI/AAAAAAAAA0Q/8Z7e7f2KICM/s320/whats-your-raashee-060909.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5385861441696967394" border="0" /></a><br /><div></div>कल कई महीनों बाद फर्स्ट डे फर्स्ट शो देखी व्हाटस योर राशि<br />फिल्म की कहानी कुछ यूं है कि एक गुजराती एनआरआई लडका एमबीए करने के बाद शादी करने भारत आता है।<br />भाई पर कर्ज है, घर की माली हालत खराब है ठीक सरकारों की तरह। शादी करने पर नाना की संपत्ति में से हीरो को करोडों की जमीन मिलनी है। और घरवालों को आस है कि एनआरआई बेटे को दहेज मिलेगा, इसलिए सभी को शादी की जल्दी है।<br />एक वेबसाइट पर लडके की शादी का एड दिया था। बदले में 1765 रेस्पांस मिले। लडका परिवारवालों की मदद करना चाहता है, पर दहेज नहीं लेना चाहता। शादी सिर्फ दस दिनों में करनी है और इतने दिन में इनती सारी लडकियों से मिलना संभव नहीं है।<br />इसलिए लडके की राय पर यह तय हुआ कि सिर्फ 12 राशियों के हिसाब से सिर्फ 12 ही लडकियां देखी जाएं। और इन्हीं 12 लडकियों के जरिए, समाज की कई सारी बुराइयों को दिखाया है और इन्हीं लडकियों के देखने के बहाने ही तीन घंटे से ज्यादा समय की इस तथाकथित कॉमेडी फिल्म का तानाबाना बुना गया है।<br />इन 12 लडकियों को देखकर भी हीरो शायद कुछ तय नहीं कर पाया कि शादी किससे की जाए, तो एक रिश्तेदार ने उसकी बिना राय जाने सीधे फेरे के मंडप पर पहुंचा दिया।<br />12 लडकियों में सबकी अपनी अपनी कहानी है। अपने अपने गुण अवगुण है। पर पता नहीं आशुतोष गोवारीकर क्या चाहते हैं, उन्हें लगता है कि बिना पौने चार घंटे के कोई फिल्म पूरी हो ही नहीं सकती। फिल्म देखते समय बोर नहीं करती पर स्टोरी में ऐसा भी नहीं था, जिसे एडिट नहीं किया जा सकता था।<br />फिल्म में करीब 12 गाने हैं, जिनमें से एक दो को छोडकर फिल्म के बाहर आने तक आप भूल ही जाएंगे।<br />फिल्म की सबसे बडी बात यह कि प्रियंका चोपडा ने 12 किरदार निभाए हैं। संजना के किरदार में वो सबसे अच्छी लगी हैं और शायद वही उनपर सबसे ज्यादा सूट करता है, हां हैप्पी एंड में शादी भी उसी के साथ होती है।<br />उन 12 लडकियों के डिटेल पर चर्चा फिर कभी<br />अभी इतना ही, हां बस फिल्म टाइमपास है, आशुतोष गोवारीकर टाइप की नहीं है, जिसके लिए आप लंबे समय तक इंतजार करते थे।राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-31247858062177266822009-09-26T11:50:00.000-07:002009-09-26T11:59:45.758-07:00ब्लॉग न लिखने पर मेरी सफाई<p>ब्लॉग पर लिखे आजकल कई दिन बीत जाते हैं। शादी के बाद से (1 जुलाई) ब्लॉग पर सक्रियता कम हो गई। इस बीच दिलीप नागपाल ने <a href="http://deepraaj.blogspot.com/2009/09/blog-post_09.html">ब्लॉग बडी या बीवी </a>लिखकर मुझे मजबूर कर दिया कि मैं कोई प्रतिक्रिया दूं।<br />कारण कई हैं।<br />पहला तो ये कि मकान चेंज करने के बाद से इनदिनों घर पर नेट कनेक्शन नहीं है। नया कौनसा लेना है, यह डिसाइड नहीं कर पाया। अगर आपके पास कोई सस्ते प्लान का आइडिया हो तो अवश्य दें।<br />दूसरा ये हो सकता है कि छुटटी से लौटकर पहले हर ऑफ वाले दिन घर की ओर कूच करना पडता था। अब पत्नी भी जयपुर आ गई है, रूम भी व्यवस्थित हो गया है। ये समझिए ब्लॉग पर वापसी के दिन फिर शुरू होने वाले हैं। बस इतने दिन इसलिए लग रहे हैं क्योंकि मुझे पता है कि अगर अखबार के बाद दिन के पांच घंटे वो मुझे लैपटॉप पर देखेगी, तो शायद तलाक ही हो जाए ! :))</p><p>इसलिए पहले उसे भी ब्लोगिंग सिखाने की कोशिश कर रहा हूं। दुआ कीजिए कि आपको एकसाथ दो दो ब्लॉगची दिखाई दें। ब्लॉग का समय आजकल बीवी के बाद टीवी के नसीब में है। पर आप चिंता न कीजिए लिख कुछ नहीं रहा, पर थोडा ही सही, पढ सभी को रहा हूं।</p>राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-21115716947268614192009-08-30T13:09:00.000-07:002009-08-30T13:35:02.970-07:00आज मैंने किराए पर दो रुपए ज्यादा दिए<a href="http://1.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/Sprc64zd3xI/AAAAAAAAAzw/3yMvTO_4J1o/s1600-h/ticket.jpg"> </a><span class="">आज ही</span> घर से लौटा हूं। घर(राजगढ़) से सीधे जयपुर की बस में बैठा, बांदीकुई पहुंचने तक बस खचाखच हो गई। बाद में मुझे पता चला कि बस दौसा में भी अंदर होकर जाएगी। इसलिए सिंकदरा से मैंने बस चेंज करने की सोची। सिंकदरा में यूपी रोडवेज की बस में सवार हो गया। राजस्थान रोडवेज का सिकंदरा से जयपुर तक का किराया 42 रुपए है। यूपी रोडवेज में बैठा इसलिए किराए का अंदाजा नहीं था। मैंने कंडेक्टर को भ्0 का नोट थमा दिया। कंडेक्टर ने ठीक है कहा और चला गया। मुझे लगा कि टिकट दे रहा होगा। और मैं एसएमएस करने में व्यस्त हो गया। थोड़ी देर बाद जब मुझे एससास हुआ कि कंडेक्टर ने टिकट नहीं दिया है तो मैंने उसकी सीट तक जाकर पूछताछ शुरू की। कंडेक्टर साहब ने फरमाया कि किराया भ्2 रुपए है और आपने भ्0 रुपए दिए थे। यानी कंडेक्टर साहब पूरे पैसे ही गोल करना चाहते थे। मैंने पांच रुपए और दिए कि साहब टिकट तो दे दो। बेमन से घूर कर साहब ने मुझे टिकट दिया और फिर खुल्ले न होने का बहाना कर दो का सिक्का दे दिया, यानी साहब एक रुपए तो खा ही गए। उसके बाद मैं अगले स्टैंड से चढ़ी सवारियों से उसके लेनदेन पर गौर करता रहा। कुल मिलाकर मैंने पाया कि हर स्टैंड पर उसने एक बेटिकट सवारी तो बिठा ही रखी थी। मैंने मगजमारी से बचने के लिए मामले को तूल नहीं दिया पर सोचता रहा कि भाई लोगों को भले ही एक दो रुपए का फायदा कर रहा हो पर सरकार को कितने का चूना लगा रहा है। फिर मुझे अहसास हुआ कि यूपी रोडवेज की बसें राजस्थान की तुलना में इतनी खस्ताहाल कैसे हैं।<br />इसमें मैं यह भी जोड़ना चाहूंगा कि मेरी राजस्थान रोडवेज वाली बस का कंडेक्टर इतना शरीफ था कि बांदीकुई और सिकंदरा में एक जगह उतरी सवारी का उतरने से पहले टिकट चैक किया और उसने पाया कि उन तीन सवारियों ने एक स्टॉप पहले का टिकट ले रखा था। भाई ने उनसे और पैसे लेकर ही दम लिया। यानी एक बेहद ईमानदार और दूसरा खूंखार बेइमान।राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-49597311288206876642009-07-30T14:01:00.000-07:002009-07-30T14:02:49.436-07:00राजस्थान में हर आदमी आरक्षित !राजस्थान में अब हर आदमी आरक्षित वर्ग में आ गया है। एक साल से लटका पड़ा आरक्षण विधेयक राज्यपाल ने पास कर दिया। राज्य में अब राज्य में आरक्षण का दायरा 49 प्रतिशत से बढ़कर 68 प्रतिशत हो जाएगा। 14 प्रतिशत आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग, ईसीबी (राजपूत, ब्राह्मण, कायस्थ, वैश्य) को मिलेगा। तथा गुर्जर जिनकी मांग पर यह सब हुआ। उन्हें रैबारी, गाçड़या लुहार व बंजारा जाति के साथ विशेष रूप से पिछड़े वर्ग में रखा गया है। अभी तक प्रदेश में 49 प्रतिशत आरक्षण था, इसमें 16 प्रतिशत एससी, 12 प्रतिशत एसटी और 21 प्रतिशत ओबीसी थे। इसके लिए गुर्जर आंदोलनकारियों ने दो साल से अधिक समय तक संघर्ष किया। इस आंदोलन में हिंसक घटनाओं में 70 लोग मौत के आगोश में समा गए।राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-56104055039650688132009-07-21T13:33:00.000-07:002009-07-21T13:36:55.561-07:00शादी के बाद ........शादी से लौटकर आया, इनबॉक्स देखा तो कई शुभचिंतकों की शुभकामनाएं और प्रतिक्रियाएं मिली। कई ने ब्लॉग लिखने को कहा। पर अभी मूड नहीं बन पा रहा। शायद अभी खुमारी ही नहीं उतर रही।<br />शादी से लौटकर पांच मिनट पहले ही किसी दोस्त खत्म हुई चैट हूबहू पेस्ट कर रहा हूं। शादी के बाद क्या परिवर्तन हुआ, इसका आसानी से पता चल जाएगा।<br /><br /><span class="kn" dir="ltr">Gaurav: </span> <span dir="ltr" id=":1r">hello</span><div dir="" class="kq" role="chatMessage" live="polite"><div class="kp"> Sent at 1:28 AM on Wednesday</div></div><div dir="f" class="km" role="chatMessage" live="assertive"><div class="kk"> <span class="kn" dir="ltr">me: </span> <span dir="ltr" id=":14">hi</span></div></div><div dir="t" class="km" role="chatMessage" live="assertive"><div class="kk"> <span class="kn" dir="ltr">Gaurav: </span> <span dir="ltr" id=":13">kya chal raha hai</span></div><div id=":12" dir="ltr" class="kl">ghoom kar aaya kaha</div></div><div dir="f" class="km" role="chatMessage" live="assertive"><div class="kk"> <span class="kn" dir="ltr">me: </span> <span dir="ltr" id=":11">haan aa gaya manali</span></div></div><div dir="t" class="km" role="chatMessage" live="assertive"><div class="kk"> <span class="kn" dir="ltr">Gaurav: </span> <span dir="ltr" id=":10">kaisa raha</span></div></div><div dir="" class="kq" role="chatMessage" live="polite"><div class="kp"> Sent at 1:30 AM on Wednesday</div></div><div dir="f" class="km" role="chatMessage" live="assertive"><div class="kk"> <span class="kn" dir="ltr">me: </span> <span dir="ltr" id=":2e">maje</span></div><div id=":4f" dir="ltr" class="kl">tu bata kaya chal raha hai</div></div><div dir="t" class="km" role="chatMessage" live="assertive"><div class="kk"> <span class="kn" dir="ltr">Gaurav: </span> <span dir="ltr" id=":48">kuch nahi yaar</span></div><div id=":4b" dir="ltr" class="kl">same college lyf</div><div id=":4k" dir="ltr" class="kl">bhabhi abhi rgh hi hai ?</div></div><div dir="" class="kq" role="chatMessage" live="polite"><div class="kp"> Sent at 1:32 AM on Wednesday</div></div><div dir="f" class="km" role="chatMessage" live="assertive"><div class="kk"> <span class="kn" dir="ltr">me: </span> <span dir="ltr" id=":58">haan yaar</span></div><div id=":3o" dir="ltr" class="kl">badi mushkil se jaipur mein time gujar raha haun</div><div id=":3p" dir="ltr" class="kl">uske bina</div><div id=":5r" dir="ltr" class="kl">dil nahi lag raha</div></div><div dir="t" class="km" role="chatMessage" live="assertive"><div class="kk"> <span class="kn" dir="ltr">Gaurav: </span> <span dir="ltr" id=":5q">haa haa</span></div><div id=":5p" dir="ltr" class="kl">sahi bol raha hai, kab laane ka hai</div></div><div dir="" class="kq" role="chatMessage" live="polite"><div class="kp"> Sent at 1:34 AM on Wednesday</div></div><div dir="f" class="km" role="chatMessage" live="assertive"><div class="kk"> <span class="kn" dir="ltr">me: </span> <span dir="ltr" id=":4r">diwali tak</span></div><div id=":4s" dir="ltr" class="kl">yaar</div></div><div dir="t" class="km" role="chatMessage" live="assertive"><div class="kk"> <span class="kn" dir="ltr">Gaurav: </span> <span dir="ltr" id=":4t">oh <img framecount="195" style="background-image: url(im/emotisprites/frown1.png); background-position: 0px -1246px;" src="http://mail.google.com/mail/images/cleardot.gif" onload="'_GM_EmoticonHandler(" onmouseover="'_GM_EmoticonHandler(" alt=":(" pattern="frown" createtime="1248206791171" iconset="round" width="14" height="14" /></span></div><div id=":40" dir="ltr" class="kl">very bad</div></div><div dir="f" class="km" role="chatMessage" live="assertive"><div class="kk"> <span class="kn" dir="ltr">me: </span> <span dir="ltr" id=":5h">jingi pahle se jayda ulaj gai hai</span></div><div id=":53" dir="ltr" class="kl">dil waha <span dir="ltr" id=":45">naukri yaha</span> </div></div><div dir="t" class="km" role="chatMessage" live="assertive"><div class="kk"> <span class="kn" dir="ltr">Gaurav: </span> <span dir="ltr" id=":4e">hmm wo to hai</span></div></div><div dir="t" class="km" role="chatMessage" live="assertive"><div class="kk"><span class="kn" dir="ltr"></span> <span dir="ltr" id=":4z">off bhi 1 din ka hi hai</span></div></div><div dir="f" class="km" role="chatMessage" live="assertive"><div class="kk"> <span class="kn" dir="ltr">me: </span> <span dir="ltr" id=":4y">haan yaar</span></div></div><div dir="t" class="km" role="chatMessage" live="assertive"><div class="kk"> <span class="kn" dir="ltr">Gaurav: </span> <span dir="ltr" id=":4x">shaadi ke baad kaisa lag raha hai.. </span></div></div><div dir="" class="kq" role="chatMessage" live="polite"><div class="kp"> Sent at 1:38 AM on Wednesday</div></div><div dir="f" class="km" role="chatMessage" live="assertive"><div id=":4v" dir="ltr" class="kl"> <span class="kn" dir="ltr">me: </span> <span dir="ltr" id=":4w">jimedari ka </span>ahasas</div></div><div dir="t" class="km" role="chatMessage" live="assertive"><div class="kk"> <span class="kn" dir="ltr">Gaurav: </span> <span dir="ltr" id=":4u">ab tu shaadi shuda logo se shikayat nahi rakhega <img framecount="195" style="background-image: url(im/emotisprites/smile1.png); background-position: 0px -1246px;" src="http://mail.google.com/mail/images/cleardot.gif" onload="'_GM_EmoticonHandler(" onmouseover="'_GM_EmoticonHandler(" alt=":)" pattern="smile" createtime="1248206985157" iconset="round" width="14" height="14" /></span></div></div><div dir="" class="kq" role="chatMessage" live="polite"><div class="kp"> Sent at 1:39 AM on Wednesday</div></div><div dir="f" class="km" role="chatMessage" live="assertive"><div class="kk"> <span class="kn" dir="ltr">me: </span> <span dir="ltr" id=":4p">haan sahi hai</span></div><div id=":41" dir="ltr" class="kl">per mein aaj bhi logo ko pahle ki tarah SMS karkr pareshan kar raha hun</div></div><div dir="t" class="km" role="chatMessage" live="assertive"><div class="kk"> <span class="kn" dir="ltr">Gaurav: </span> <span dir="ltr" id=":5n">haa haa</span></div><div id=":42" dir="ltr" class="kl">shaadi kaisi rahi</div>sab bhabhiyaa ayi</div><div dir="" class="kq" role="chatMessage" live="polite"><div class="kp"> Sent at 1:43 AM on Wednesday</div></div><div dir="f" class="km" role="chatMessage" live="assertive"><div class="kk"> <span class="kn" dir="ltr">me: </span> <span dir="ltr" id=":47">haan</span></div><div id=":4h" dir="ltr" class="kl">sumit ke orkut per photo hai dekh le</div></div><div class="kp"><div class="kk"> <span class="kn" dir="ltr">Gaurav: </span> <span dir="ltr" id=":50">wo to dekh li</span></div> Sent at 1:46 AM on Wednesday</div><div id=":1p" class="kd" live="polite"> </div><div class="jU"><div style="overflow: auto;" class="nH"><textarea dir="ltr" class="jT" ignoreesc="true" style="height: 36px; overflow-y: hidden;"></textarea></div></div>राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-48249459295546795282009-06-03T13:41:00.001-07:002009-06-03T13:48:43.063-07:00आखिर बेच डाली छह सौ किलो रद्दी<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SibgHmAaykI/AAAAAAAAAvM/PJQVDw0lwvs/s1600-h/1.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SibgHmAaykI/AAAAAAAAAvM/PJQVDw0lwvs/s320/1.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5343204428987681346" /></a><br /><div>कई शौक भारी पड़ जाते है। ऐसा ही है मेरा और अखबार का रिश्ता। खाना मिले न मिले अखबार जरूर हो। मेरे इस प्रेम के चक्कर में मेरे बिस्तर के चारों और हमेशा अखबारों का ढेर होता है। <br /><br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SibgVDoDMWI/AAAAAAAAAvU/g_KlXWNnMKk/s1600-h/2.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SibgVDoDMWI/AAAAAAAAAvU/g_KlXWNnMKk/s320/2.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5343204660276834658" /></a><br /></div><div>मेरे सारे परिचित और दोस्त इससे वाकिफ है। हाल तक मैं जिस मकान में रहता था वहां करीब आठ बाई आठ का स्टोर रूम तो खचाखच भर गया। आते जाते परिवार वालों की टोकाटाकी के बावजूद मैंने अखबार नहीं बेचे। पर अब रूम चेंज करना था तो करीब सात çक्वंटल रद्दी एक जगह से दूसरी जगह शिट करना माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने से कहीं ज्यादा कठिन था। वो भी तब जब आप पहले से ही व्यस्तता के चरम पर हों। इसी चक्कर में इन दिनों कई दिन तक ब्लॉगिंग की दुनिया से दूर था। <br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://2.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SibgcRNwLSI/AAAAAAAAAvc/-LYahZpUuEc/s1600-h/3.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 296px; height: 320px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SibgcRNwLSI/AAAAAAAAAvc/-LYahZpUuEc/s320/3.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5343204784183717154" /></a><br /></div><div>पर शिçटंग की मजबूरी और किराए के मकान में इतनी रद्दी मेनटेन रख पाना बड़ा मुश्किल है। 28 मई को मैंने रूम चेंज कर लिया और तीन मई तक मैं उस रद्दी को बेचने का मानस न बना सका। पर फाइनली डेडलाइन आ गई और पुराने मकान में नया किराएदार आ गया तो मुझे अपनी 610 किलो रद्दी बेचनी ही पड़ी। </div><div>कितना कष्टकर थी यह अंतिम यात्रा! <br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SibguSx9_UI/AAAAAAAAAvk/A8mcqUhYdcM/s1600-h/4.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SibguSx9_UI/AAAAAAAAAvk/A8mcqUhYdcM/s320/4.jpg" border="0" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5343205093841698114" /></a><br />पर दिल पर पत्थर रखकर मैंने आखिर इसको अंजाम दे ही दिया। इससे मिले करीब साढे तीन हजार रुपए तंगी के महौल में मुझे जरा भी खुशी न दे पाए मैं आखिरी समय तक ऐसे आदमी को खोजता रहा जो इसे संभाल कर रख सके।</div>राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-15287282444718520632009-05-15T13:34:00.000-07:002009-05-15T13:36:33.177-07:00हर गलती सजा मांगती है(राजनीति पर लिखने के लिए देश में बहुत सारे दिग्गज पत्रकार हैं। मैं हमेशा खुद को उनसे ज्यादा काबिल नहीं मानता, इसलिए मैं हमेशा राजनीति पर लिखने से खुद को रोकता हूं। सोचता हूं कि अपने ब्लॉग को निजी जिंदगी के आसपास ही रखूं। पर कल मतगणना है हमें अपने 545 महानुभाव मिलने वाले हैं, जो देश चलाएंगे!)<br />कहते हैं कि हर गलती सजा मांगती है। आज पप्पुओं की गलती हिसाब मांगेगी। मतगणना के बाद पता चलेगा कि कौन सरकार बनाएगा। फिर भी सब जानते हैं कि इस बार त्रिशंकु लोकसभा के आसार हैं। देश ने न कांग्रेस नेतृत्व को देश चलाने के लायक समझा है, न भाजपा को। इस चक्कर में तीसरा और चौथा मोर्चा टाइप के ऐसे रिजेक्टेड लोगों को देश का नेतृत्व करने का मौका मिल सकता है, जो सही मायने में इस लायक हैं ही नहीं। छोटे दलों की यूं बेकद्री को अन्यथा न लीजिए मेरा मतलब है कि वो सिर्फ स्थानीय चीजें सोचते हैं। समग्र देश और विदेश नीति के लिए उनकी कोई राय नहीं है। बस उनकी पार्टी, उनके नेता का भला हो जाए। बहुत ज्यादा सोचगा तो मेरा बिहार, मेरा बंगाल या हमारी तमिल और हम सबका तेलांगना की बात करेगा। भले ही देश गर्त में चला जाए। विकास पर दो किलो चावल का वायदा भारी पड़ जाता है तो कहीं फूटी आंख न सुहाने वाले लोग हाथ मिला लेते हैं। किसी को बहुमत नहीं मिलेगा तो औने पौने दामों में सांसद बिकेंगे। हर सांसद बड़ी पार्टी को ब्लैकमेल करेगा और अपना जुगाड़ फिट करने में रहेगा। <br />अब बात करें गलती की<br />असली गलती है हम मतदाताओं की। प्रधानमंत्री चुनना है, केंद्र में सरकार बनानी है पर आदमी चुनते हैं नगर निगम चुनाव की तरह। मेरी राय तो यही है कि आदमी उन्नीस हो तो भी चलेगा पर पार्टी या विचारधारा देखकर वोट करना चाहिए। यूं हर आदमी को भारत में वोट देने का अधिकार मिल गया है। शायद पच्चीस फीसदी भारत इस लायक था ही नहीं कि उसे वोट डालने का अधिकार मिले। यूं भी बिना कीमत चुकाए कोई चीज मिले तो उसकी वैल्यू नहीं होती। ज्यादा करता है आदमी तो एक शराब की बोतल में बिक जाता है। भारत में वोटिंग का अधिकार भी यूं ही है। इसलिए शायद 40 फीसदी भारत वोट डालने ही नहीं जाता।<br />हम निगम चुनाव की तरह के मुद्दों पर लोकसभा चुनाव में मतदान करते हैं। पाटिüयां भी यह बात समझ गईZ हैं, शायद इसीलिए उन्होंने भी पूरे चुनाव संपन्न हो गए पर एक भी ढंग का राष्ट्रीय मुद्दा नहीं उठाया। बस गाली-गलौज में ही लगे रहे। <br />हां, कुछ लोग समझदार बनने की कोशिश में इस बार नोट वोट के लिए चले गए पर ज्यादातर लोगों ने बस इसीलिए नो वोट किया कि उनके आगे सड़क नहीं बनी या पूरे गांव में पानी नहीं आता। मीडिया ने भी पूरा गांव करेगा मतदान का बहिष्कार टाइप की हैडिंग लगाकर मामले को खूब हाइप दिया।<br />अब हमने मतदान ही कुछ इस तरह किया है कि त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति आ गई है। अब सरकार चाहे जिसकी बने पर दो ढाई साल से ज्यादा चलने लायक नहीं बनेगी। यानी फिर चुनाव, देश के पैसे का फिर सत्यानाश!राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-42512271000010139002009-05-13T05:40:00.001-07:002009-05-13T05:42:06.500-07:00जयपुर में विस्फोट के एक बरस बादजयपुर में बम धमाके हुए आज ठीक एक साल हो गए। एक साल पहले हुए इन धमाकों में 69 बेगुनाह लोग मारे गए। 250 से ज्यादा लोग घायल हो गए। और कई लोग अपनों की याद में आज भी जिंदा लाश हैं। कहते हैं कि कुल 11 आतंकियों ने इस वारदात को अंजाम दिया इनमें से चार गिरफतार हो गए, पांच फरार है और दो दिल्ली के बटला हाउस में मुठभेड में मारे गए। <br />आज ठीक एक साल बाद मैं सोचता हूं, पता नहीं हमने और हमारी पुलिस ने क्या सबक लिया। उन परिवारों को छोड दें तो बाकी हम सब की जिंदगी यूं ही चल रही है। जैसी पहले थी बस एक गलतफहमी थी, जो अब दूर हो गई कि जयपुर में विस्फोट कैसे हो सकते हैं ( जयपुर में विस्फोट की खबर के बाद उस मनहूस दिन <a href="http://shuruwat.blogspot.com/2008/05/blog-post_14.html">मेरी पहली प्रतिक्रिया</a> बस यही थी) <br />अब एक बरस बाद मीडिया और हम जैसे लोगों के लिए यह जानना जरूरी था कि पीडित और उनके परिजन क्या सोचते हैं। उनकी जिंदगी में इस एक साल में क्या बदला। हमारे अखबार के रिपोर्टर्स भी कई पीडितों के घर गए। किसी एक घर में यही प्रतिक्रिया मिली क्या तुम लोगों के पास कोई और काम नहीं है, जो बार बार में आ जाते हो। हादसे के बाद से अब तक पहले एक महीने बाद, फिर सौ दिन बाद और अब ठीक एक साल बाद। शायद पीडितों के भरते जख्मों को हम लोग चाहे अनचाहे फिर कुरेद देते हैं। पर शायद हमारी भी मजबूरी है। हम नहीं छापेंगे तो कोई और छाप देगा। पता नहीं एक बार फिर वही असमंजस।राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-10858553910001398742009-05-06T04:55:00.000-07:002009-05-06T05:13:35.523-07:00जयपुर की सडक पर ये स्टंट<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SgF-bXX8XnI/AAAAAAAAAtM/FXHqGwLcEVc/s1600-h/bus.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 151px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SgF-bXX8XnI/AAAAAAAAAtM/FXHqGwLcEVc/s320/bus.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5332682442379386482" /></a><br /><br />चुनाव का समय है। सारी निजी बसें पकडकर चुनाव डयूटी में लगा दी हैं। शहर की सडकों पर दो दिन से गिनती की सरकारी बसें चल रही हैं। और शायद इसीलिए बस रुकते ही चढने की मारामारी हो रही है। <br />पर शायद ये लोग या तो कुछ ज्यादा ही हिम्मत वाले हैं या इन्हें अपनी बीमा पालिसी और किस्मत पर ज्यादा भरोसा है। गेट से अंदर घुसने को जगह न मिली तो बस के पीछे ही लटक गए और फिर स्टंट करते करते चलती बस में ही अंदर जगह पाने में सफल भी हो गए। कल दोपहर ढाई बजे तपती घूप में रिद़धी सिद़धी से गुर्जर की थडी के बीच जिंदगी और बस के इस सफर को आप तक पहुंचाया हमारे वरिष्ठ ब्लॉगर साथी <a href="http://kya-kahna.blogspot.com">अभिषेकजी</a> ने। <br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SgF-nRv_taI/AAAAAAAAAtU/-p-K4fLue3Q/s1600-h/bus1.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 234px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SgF-nRv_taI/AAAAAAAAAtU/-p-K4fLue3Q/s320/bus1.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5332682647028086178" /></a><br />वैसे अभिषेकजी की नजरें बहुत तेज हैं। चलती सडक पर वो बहुत कुछ खोज लेते हैं। <br />शुक्रिया सर जो आपने शुरुआत के लिए ये चित्र उपलब्ध कराए।राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-13253364265725557282009-04-27T05:03:00.000-07:002009-04-27T05:07:21.938-07:00काश! ऑनलाइन मिलता खाना<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SfWfvHY4wmI/AAAAAAAAAss/rD40c64L29A/s1600-h/khana.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SfWfvHY4wmI/AAAAAAAAAss/rD40c64L29A/s320/khana.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5329341365848949346" /></a><br />ये साला ऑनलाइन रहने का चस्का भी अजीब है। बाहर निकलना हो और पारा 42 डिग्री पार हो तो घर से निकलने का मन ही नहीं करता। कम से कम जब नेट अच्छी स्पीड में चल रहा हो। <br />यूं रोज रात देर से खाने की आदत है। पर कल एक दोस्त की सगाई थी, इसलिए शाम का खाना जल्दी खा लिया। सुबह सुबह राजगढ (मेरा पैतृक घर) से मैं जयपुर आ गया। घर पहुंचा तो बाई नदारद। बस अब खाना बनने का कोई चांस नहीं था।<br />यूं तो खाना बनना भी आता है, पर अब इतने दिन हो गए कि खाना बनाने का मन नहीं करता। भूख लगी थी, इसलिए “काश ऐसा होता कि खाना भी ऑनलाइन मिलता का स्टेटस मैसेज” जीमेल पर लगाकर कुछ जुगाड करने लगा। <br />जब तक किचन से लौटकर आया, चार पांच भारी भरकम सुझाव मिल चुके थे। उनमें से एक लगभग ऐसा ही था, जैसा मैं खुद चाहता था कि काश खाने का ऑर्डर भी ऑनलाइन चलता। यूं तो पिज्जा हट और मैकडी वाले आर्डर लेते ही हैं। पर बात यूं मजाक मजाक में ही चल रही थी खाना भी ऑनलाइन मिलता तो मजा आ जाता। न तो किचन में मेहनत करनी पडती न कुछ और!राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-56923289323923978282009-04-23T05:12:00.000-07:002009-04-23T05:20:39.395-07:00असमंजस, क्या हम सही हैं?आफिस के बाद आजकल रोज चाय पीने का चस्का लग गया है। हम लोगों की एक मंडली भी तैयार हो गई है, जो अमूमन रोज चाय पीने जाती हैं। दो बजे के बाद सुबह लगभग चार बजे तक यहां बैठना हमारी आदत में शुमार हो गया है। <br />रोज वहां चाय के बहाने अड्डा जमाने से हम लोगों की चायवाले (जो दुकान पर चाय बनाता है) से भी जान पहचान हो गई है। पीने को पानी मांगते हैं तो ज्यादातर एक प्लास्टिक की बोतल थमा देता है। चार चाय बोलेंगे मन हुआ तो छह बनाकर ले आता है। <br />अभी कल परसों ही पता चला उसके ठंडे और पानी के अच्छे टेस्ट का राज। भाई ने बताया कि बस फ्रीजर से बोतल निकाली ढक्कन हटाया और रैपर फाडकर फेंकने से बिसलरी की बोतल पानी की आम बोतल में बदल जाती है। <br />मुझे एकाएक झटका लगा कि क्या हम रोज बिसलरी पी रहे हैं।<br />कल चाय पीने सिर्फ हमारी बेचलर्स यूनियन (मैं, <a href="http://tarunsansar.blogspot.com">तरुण</a> और ऋचीक) <br />ही गई थी। हमने सोचा कि इस भाई को समझाया जाए कि क्यूं मालिक को चूना लगा रह। है। बातचीत की तो बोला, इतना काम करता हूं पता नहीं सेठ का कितना फायदा कर देता हूं। दिन भर लोगों को लूटते हैं अब आप लोगों को ठंडा पानी और अच्छी चाय पिला देते हैं तो इस सेठ का क्या बिगड जाएगा। <br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://4.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SfBcMqfjfhI/AAAAAAAAAsI/P0cYoy2_vmo/s1600-h/23042009031642.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 300px; height: 400px;" src="http://4.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SfBcMqfjfhI/AAAAAAAAAsI/P0cYoy2_vmo/s400/23042009031642.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5327859731814120978" /></a> <br />(कल ऋचीक ने खासतौर पर यह पोज खिंचवाया )<br />बातचीत और समझाइश का दौर चला तो पता चला कि वो तो अपने तरुण भाई के गांव के पास का ही रहने वाला है। <br />कहने लगा आप लोग इस चाय वाले को याद तो रखोगे। फिर अपने सेठ के कारनामे बताने लगा कि कैसे तीन रुपए की चाय पांच रुपए और दस रुपए कि ठंडी बिसलरी बीस रुपए में बेची जाती है। सेठ कहां ले जाएगा इतने पैसे थोडे आप लोगों पर खर्च हो जाएंगे तो सही रहेगा। <br /><br />कल यह सब पता नहीं था, कल ही आधा ब्लॉग लिख चुका था पर आधी बात आज जानीं। अब तय नहीं कर पा रहा कि वो अकेले ही गलती कर रहा है या हम भी उसके काम में शामिल होकर और बुरा कर रहे हैं। वैसे तो मुझे लगता है कि शायद हमारे प्यार से बोलने और हमारी गपशप चायवाले को सुकून देते हों। रातभर की उसकी माथाफोडी में हम उसे अच्छे लगने लगे हों। पर मैं खुद तय नहीं कर पा रहा कि हम गलत हैं या सही।राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-36742161943771216272009-04-18T01:48:00.000-07:002009-04-18T01:58:39.739-07:00सर्किल नहीं मौत का कुआं है<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://3.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SemUgMyDU3I/AAAAAAAAAsA/eDh9FbbgSvo/s1600-h/gurjar+ki++thadi.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="http://3.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SemUgMyDU3I/AAAAAAAAAsA/eDh9FbbgSvo/s320/gurjar+ki++thadi.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5325951315250205554" /></a><br />जयपुर शहर सडक हादसों से कितना भयभीत है। इसका उदाहरण यह फोटो देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। जयपुर का एक बडा चौराहा है, गुर्जर की थडी। रोज रोज सडक दुर्घटनाओं के बाद यह इतना कुख्यात हो गया है कि एक सडक हादसे में एक दंपती की मौत के बाद लोगों ने दो दिन तक यहां प्रदर्शन किया। कॉर्नर में सडक हादसे की वजह रहे शनि मंदिर को लोगों ने खुद तोड डाला। और तो और अपने खर्चे पर एक बोर्ड लगवाया जिस पर सूचना लिखवाई गई कि यह चौराहा नहीं मौत का कुआं है। यह चित्र जयपुर में ही मेरे एक वरिष्ठ साथी और हम सबके चहेते <a href="http://kya-kahna.blogspot.com/">अभिषेकजी</a> ने मुझे खासतौर पर भेजा।राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-73700031336536818402009-04-14T04:09:00.000-07:002009-04-14T04:21:38.936-07:00इतने डे कम थे, जो मेट्रीमोनी डे भी आ गया!कल देर रात भारत मेट्रीमोनी डॉट कॉम का एक ईमेल मिला। इसमें 14 अप्रेल को मेट्रीमोनी डे के रूप में मानने की जानकारी मिली, कंपनी के सीईओ की ओर से एक <a href="http://www.bharatmatrimony.com/matrimony-greetings/matrimony-day-greetings.html">ग्रीटिंग कार्ड</a> मिला। <br />पहली बार सुना इस डे के बारे में। उत्सुकता थी तो गूगल पर खोजा, पता चला भारत मेट्रीमोनी ने लोगों को शादी के लिए प्रेरित करने के लिए इस दिन को चुना है। ताकी लोग शादी के बारे में सोचें। कंपनी का कहना है कि आज कि भागदौड की जिंदगी में लोग शादी के बारे में सोचे इसलिए इस दिन का ईजाद किया गया है। इसके लिए बाकायदा कंपनी ने एक <a href="http://www.matrimonyday.org/">वेबसाइट</a> भी बनाई है। मैंने काफी कोशिश की पर कहीं कोई जानकारी नहीं मिली, अगर आपको पता चले तो बताइएगा प्लीज।<br /><a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://1.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SeRxnIxW0_I/AAAAAAAAArw/yRrsneoC_TU/s1600-h/hindu_wedding.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 271px; height: 199px;" src="http://1.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SeRxnIxW0_I/AAAAAAAAArw/yRrsneoC_TU/s320/hindu_wedding.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5324505576642106354" /></a><br />वैसे अपन बता दें, उनकी मेहनत बेकार चली गई। मैंने इस दिन से पहले ही सोच लिया शादी के बारे में। और मैंने भारत मेट्रीमोनी वालों को भी बता दिया कि टाइमपास के लिए बनाया मेरा मुफ़त आईडी प्लीज अब बंद कर दो। मेरी तलाश खत्म हो गई। वैसे तो यह बात आम हो गई है कि मेरी सगाई हो चुकी है। हमारे ब्लॉगर साथियों ने <a href="http://neelima-mujhekuchkehnahai.blogspot.com/2009/04/blog-post.html">पोस्ट</a> और <a href="http://cartattack.blogspot.com/2009/04/blog-post_12.html">कार्टून</a> से इस घडी में मेरा खासा उत्साहवर्धन किया। वैसे मैं चाहता था कि डेट फिक्स हो तो यह खबर सार्वजनिक की जाए, पर साथियों ने पहले ही आप तक पहुंचा दी। <br />अब जब मैं भी इस श्रेणी में शामिल होने की तैयारी में हूं तो सभी कुंवारे-कुवारियों से अपील है कि भारत मैटीमॉनी के इस अभियान को सीरियसली लें और शादी के बारे में सोचें। ताकी उनके खाते में भी कुछ उपलब्धि दर्ज हो।राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-3991743732606832926.post-25926630663427014252009-04-12T23:27:00.000-07:002009-04-12T23:29:32.156-07:00बाप रे ! एक और मंदिर<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="http://2.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SeLbupjHkaI/AAAAAAAAAro/8aOjiynuNP4/s1600-h/17032009140143.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="http://2.bp.blogspot.com/_kibcpGtf_0M/SeLbupjHkaI/AAAAAAAAAro/8aOjiynuNP4/s320/17032009140143.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5324059303978963362" /></a><br />धर्म एक अफीम है, शायद यह बात किसी ने धर्म परायण लोगों को देखकर कही गई थी। पर अब धर्म बडी से बडी दुकान चलाने में काम आ रही है। चाहे वो पीएम इन वेटिंग लालकृष्ण आडवाणीजी की हो, या मेरी वाली चाय की थडी की। धर्म ही ऐसा मसला है जिसकी आड में इस देश में कुछ भी आसानी से किया जा सकता है। <br />हां तो मैं बात कर रहा था बजाज नगर ( जयपुर में आजकल अपनी शरणस्थली ) में मेरी वाली चाय की थडी की। शायद चाय वाले को यह बात पहले से पता है कि अतिक्रमण करना है तो सबसे पहले मंदिर बनाने का प्रोसेस शुरू करो। ताकी वहां थडी लगाने में आसानी हो जाए। अतिक्रमण तोडने कोई आए तो उन पर दवाब बनाया जा सके।<br />दस ईंटों से एक छोटा अलमारीनुमा ढांचा बनाया। मूर्ति का आइडिया शायद अभी महंगा लगा हो इसलिए फिलहाल हनुमानजी की एक फोटो विराजित कर दी गई है। उसमें अगरबत्ती के पैकट और अगरबत्ती लगाने के लिए दो डिस्पोजेबल कप रखे हैं। <br />मैं बीस साल बाद की बात सोच रहा हूं। यहां बोर्ड लगा होगा, प्राचीन हनुमान मंदिर। और बाहर एक बडी से पुरानी थडी होगी। जिस पर मोटे अक्षरों में लिखा होगा। हाईकोर्ट का स्टे!<br />यानी कुल मिलाकर धर्म की आड में एक और दुकान चलाने की साजिश। <br />पता नहीं कितने हजार अतिक्रमण होते रहेंगे ऐसे ?राजीव जैनhttp://www.blogger.com/profile/07241456869337929788noreply@blogger.com14