Monday, July 23, 2007

जिंदगी है छोटी हर पल में खुश रहो

जिंदगी है छोटी, हर पल में खुश रहो
ऑिफस में खुश रहो, घर में खुश रहो

आज पनीर नहीं है, दाल में ही खुश रहो
आज जिम जाने का समय नहीं, दो कदम चलकर ही खुश रहो

आज दोस्‍तों का साथ नहीं, टीवी देखकर ही खुश रहो
घर जा नहीं सकते, फोन करके ही खुश रहो

आज कोई नाराज है, उसके इस अंदाज में भी खुश रहो
जिसे देख नहीं सकते, उसकी आवाज में भी खुश रहो

जिसे पा नहीं सकते, उसकी याद में ही खुश रहो
लेपटॉप न मिले तो क्‍या, डेस्‍कटॉप में ही खुश रहो

बीता हुआ कल जा चुका है, उससे मीठी यादें हैं उनमें ही खुश रहो
आने वाले पल का पता नहीं, सपनों में ही खुश रहो

जिंदगी है छोटी हर पल में खुश रहो

Tuesday, July 3, 2007

meri tammanna

मैं बहुत िदनाें से िहंदी िलखने का तरीका खााेज रहा थाा इंटरनेट पर पर अाज की रात मैं अािखरकामयाब हाे ही गया। मुझे इतनी खुशाी हुइऍ की मैं अापकाे बता नहीं सकता। राेज कुछ िलखने का िदल करता है पर जब तक मैं कागज पैन उठाता हूं अ॥सर पैन काॅपी उठाता हूं िदमाग से अाइिडया ही उडन छू हाे जाता है। लेिकन लगता है बंदर के हाथ अब नािरयल लग ही गया है। यहां मुझे िलखने से काेइऍ राेक नहीं सकता हैॊ अब अाप झेिलए मुझेॊ

शहर की दौड़

शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है?
जब यही जीना है दोस्तों तो फ़िर मरना क्या है?

पहली बारिश में ट्रेन लेट होने की फ़िक्र है
भूल गये भीगते हुए टहलना क्या है?

सीरियल्स् के किर्दारों का सारा हाल है मालूम
पर माँ का हाल पूछ्ने की फ़ुर्सत कहाँ है?

अब रेत पे नंगे पाँव टहलते क्यूं नहीं?
108 हैं चैनल् फ़िर दिल बहलते क्यूं नहीं?

इन्टरनैट से दुनिया के तो टच में हैं,
लेकिन पडोस में कौन रहता है जानते तक नहीं.

मोबाइल, लैन्डलाइन सब की भरमार है,
लेकिन जिग्ररी दोस्त तक पहुँचे ऐसे तार कहाँ हैं?

कब डूबते हुए सुरज को देखा त, याद है?
कब जाना था शाम का गुज़रना क्या है?

तो दोस्तों शहर की इस दौड़ में दौड़् के करना क्या है
जब् यही जीना है तो फ़िर मरना क्या है