Friday, January 25, 2008

क्‍या कहूं यार


अचानक चार दिन में ही बदल गई दुनिया मेरी
जिस पर था सबसे जादा यकीं, वो ही सबसे दूर हो गई

पता नहीं क्‍या चाहती है मुझसे, मेरा भला या बुरा
बस किसी के लिए मेरा प्‍यार कुर्बान कर रही है

सोचता हूं बद़दुआ दूं उसको, पर नहीं दूंगा कभी
क्‍यूंकि प्‍यार करता हूं उससे, बुरा नहीं चाहता उसका

बस इसीलिए जाने दे रहा हूं उसे, कि शायद
मुझसे ज्‍यादा कोई और है, जो खुश रख पाएगा उसे

हो सके तो कभी समझ में आ जाए उसे कभी
मैं उतना बुरा भी नहीं था, जितना उसने समझ लिया

वादा किया था तो निभाकर रहता मैं
वो नहीं जो बीच रास्‍ते से चला जाता

खैर बस यही चाहता हूं, वो खुश रहे जहां भी जाएं
क्‍यूंकि प्‍यार करता हूं उससे, बुरा नहीं चाहता उसका

(डिसक्‍लेमर : एक दोस्‍त ने दिल टूटने पर अपन से शेयर की है। इस कविता से अपना कोई लेना देना नहीं है)

2 comments:

अविनाश वाचस्पति said...

लोग लागू करें आप पर
इतने भर से न डर निडर
लिखता चला चल चला चल
कभी तो निकलेगा भला हल

Kartik said...

wo shaher mein hain yahi bohot hai,
kaun kehta hai mere ghar hi thhehre...

http://shaam-e-ghazal.blogspot.com