राजस्थान में एसटी में आरक्षण मांग रहे गुर्जर समाज ने देश भर को ऐसा फंडा दे दिया जो सारे देश के रेल यात्रियों पर भारी पड़ता नजर आ रहा है। 27 दिन राजस्थान से गुजरने वाली ट्रेनें अस्तव्यस्त रहीं और रेलवे को करोड़ों रुपए यात्रियों को टिकट कैंसिल कराने पर लौटाने पड़े। पूरे देश में बच्चे नानी दादी के छुçट्टयां मनाने से वंचित रहे सो अलग।आरक्षण का आंदोलन बड़ी मुश्किल थमा कि मुंबई में सिरसा डेरा प्रमुख गुरुमीत राम रहीम सिंह के चेले की गोली से मुंबई में एक व्यक्ति की मौत के विरोध में पंजाब और हरियाणा में रेल यातायात बुरी तरह प्रभावित रहा। अब बताइये कि आरक्षण न मिलने और गोली चलने में रेलों की क्या गलती। अगर लालूजी के रिश्तेदार या पार्टी वाले ने भी गोली चलाई होती तो भी ट्रेनें ठप करने का दमदमी टकसाल का निर्णय सही होता। अब 26 जून की कहानी सुनिए, जयपुर के पास फुलेरा में एक ट्रेन के स्टॉपेज करने की मांग को लेकर स्थानीय लोगों ने चार ट्रेनों को चार घंटे तक रोके रखा। बाद में एडीआरएम के स्टॉपेज जारी रखने के आश्वासन के बाद ही ग्रामीणों ने ट्रेन को जाने दिया।
Thursday, June 26, 2008
Wednesday, June 18, 2008
अभी तो और फलेगे फूलेगा आरक्षण का जिन्न
राजस्थान में 27 दिन से चल रहा आरक्षण आंदोलन आखिरकार खत्म हो गया। दो साल में 65 जानों के बदले गुर्जरों को अति पिछड़ा वर्ग की एक विशेष स्लैब बनाकर पांच और जातियों के साथ पांच फीसदी आरक्षण की बात कही गई है। इसके साथ साथ मुख्यमंत्री ने आर्थिक रूप से पिछडे़ ब्राहमण, वैश्य, राजपूत और कायस्थों को राज्य सेवाओं में 14 फीसदी आरक्षण की सौगात दी है। इसके साथ ही प्रदेश में अब 68 फीसदी नौकरियां आरक्षित वर्गों के लिए सुरक्षित हो जाएंगी। अब जनरल कैटेगिरी के लिए 32 फीसदी सीटें ही बची हैं।इससे राजस्थान की समस्या भले ही खत्म हो जाए, लेकिन यह आरक्षण का जिन्न पूरे देश में तबाही मचाएगा। वैसे भी गुर्जरों के इस आंदोलन ने लोगों को प्रदर्शन का एक और तरीका सिखा दिया। अब तो लगता है कि लाख पचास हजार की भीड़ रखने वाला कोई भी आंदोलनकारी एक दो दिन के लिए तो पूरे देश की परिवहन व्यवस्था आसानी से चौपट कर सकता अपन का तो मानना है कि आरक्षण नाम की इस बीमारी का नौकरी में तो बिल्कुल सफाया हो जाए। जिसे जो देना है आर्थिक सहायता दी जाए। ताकी बच्चे पढे़ लिखें और उसके बाद जो हांसिल कर सकते हैं अपनी मंजिल पाएं। वैसे सीधी बात यह है कि सरकार और ये राजनेता बताएं कि आजादी के बाद से अब तक साठ से ज्यादा वर्षों में आरक्षण का फायदा किसको मिला। अगर किसी को मिला है तो कम से कम उनको तो अब इस रेंज से बाहर किया जाए, ताकी दूसरें लोग भी इसका फायदा उठा सकें।राजनेता अपने चुनावी फायदे के लिए आरक्षण खत्म नहीं करना चाहते, कोई पार्टी इतनी हिम्मतवाली नहीं है, जो सीधे तौर पर आरक्षण की व्यवस्था का विरोध करे। वैसे अब सही वक्त आ गया है, जब देश वासियों को सोचना चाहिए कि उसी पार्टी का समर्थन करे, जो इस व्यवस्था को खत्म करने की बात करे।
Saturday, June 14, 2008
ओह ! यहां भी लगी क्रिकेट की बुरी नजर
अपन की मोर्निंग वॉक जारी है, पर अपन पार्कों में बच्चों के रवैये से दु:खी हैं। गर्मियों की छुçट्टयां चल रही हैं इसलिए पार्कों में इनदिनों बच्चों की खासी भीड़ है। बच्चे मोर्निंग वॉक कम करते हैं और खेलने का सामान साथ लाते हैं।
अपन को तो यूं ही क्रिकेट के नाम से ही गुस्सा आता है अब ये पार्क में क्रिकेट खेलते बच्चे भी दिख जाते हैं, तो सुबह सुबह पार्कों की बदहाली पर टेंशन शुरू हो जाती है। यूं तो जेडीए (जयपुर की नगर नियोजन संस्था!) ने पार्क में सबसे ज्यादा घास वाले और साफ सुथरे हिस्से को योगासन करने के लिए अधिकृत कर रखा है। इसके लिए यहां बाकायदा बोर्ड भी लगा रखा है, पर आजकल इस पर बच्चों ने कब्जा जमा रखा है। पार्क के इस हिस्से के बीचों-बीच लगे पेड़ को विकेट बनाकर खेलना शुरू कर देते हैं। यानी सुबह सुबह से ही पार्क की अच्छी खासी घास को बर्बाद करने की तैयारी। उनकी बॉल किसी को भी लग सकती है इसलिए लोग खुद ही वहां से दूरी बनाना ही उचित समझते हैं। यहां आने वाले बुजुर्गों के एक ग्रुप ने बचाव के लिए एक कार्नर तय कर लिया है।
अब तक सोचता था कि क्रिकेट देश का टाइम लॉस करने में ही लगा हुआ है, पर अब तो लगता है कि पार्कों में बची-खुची हरियाली भी इसका शिकार हो जाएगी। ईश्वर देश के इन नौनिहाल `धोनियों´ और `ईशांतों´ को सद्बुद्धि दे कि ये स्टेडियम में जाकर खेलें या अपनी घर की छत पर!
अपन को तो यूं ही क्रिकेट के नाम से ही गुस्सा आता है अब ये पार्क में क्रिकेट खेलते बच्चे भी दिख जाते हैं, तो सुबह सुबह पार्कों की बदहाली पर टेंशन शुरू हो जाती है। यूं तो जेडीए (जयपुर की नगर नियोजन संस्था!) ने पार्क में सबसे ज्यादा घास वाले और साफ सुथरे हिस्से को योगासन करने के लिए अधिकृत कर रखा है। इसके लिए यहां बाकायदा बोर्ड भी लगा रखा है, पर आजकल इस पर बच्चों ने कब्जा जमा रखा है। पार्क के इस हिस्से के बीचों-बीच लगे पेड़ को विकेट बनाकर खेलना शुरू कर देते हैं। यानी सुबह सुबह से ही पार्क की अच्छी खासी घास को बर्बाद करने की तैयारी। उनकी बॉल किसी को भी लग सकती है इसलिए लोग खुद ही वहां से दूरी बनाना ही उचित समझते हैं। यहां आने वाले बुजुर्गों के एक ग्रुप ने बचाव के लिए एक कार्नर तय कर लिया है।
अब तक सोचता था कि क्रिकेट देश का टाइम लॉस करने में ही लगा हुआ है, पर अब तो लगता है कि पार्कों में बची-खुची हरियाली भी इसका शिकार हो जाएगी। ईश्वर देश के इन नौनिहाल `धोनियों´ और `ईशांतों´ को सद्बुद्धि दे कि ये स्टेडियम में जाकर खेलें या अपनी घर की छत पर!
Friday, June 13, 2008
जयपुर से ब्लॉग पर दो कार्टूनिस्ट
जयपुर में ब्लॉगिंग तेजी से लोकप्रिय हो रही है। सभी ब्लॉगर्स को बधाई। अभी तक ब्लॉग जगत पर कार्टूनिस्ट के रूप में अपने कीर्तिश भट्ट जी ही थे। उनका साथ देने के लिए जयपुर से दो जाने-माने कार्टूनिस्ट ब्लॉगजगत पर आ गए हैं। शायद अभी तक ब्लॉगवाणी, चिट्ठाजगत और नारद से नहीं जुड़ पाए हैं। इसलिए मैं आप तक यह शुभ सूचना पहुंचा रहा हूं।
नए ब्लॉगर्स का उत्साहवर्धन करने के लिए आप उनके ब्लॉग पर इस लिंक से जा सकते हैं।
अभिषेकजी तिवारी
सुधाकरजी सोनी
नए ब्लॉगर्स का उत्साहवर्धन करने के लिए आप उनके ब्लॉग पर इस लिंक से जा सकते हैं।
अभिषेकजी तिवारी
सुधाकरजी सोनी
Wednesday, June 4, 2008
तो क्या मतलब मॉनिग वॉक का
बाकी लोगों की तरह अपन भी पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से दुखी हैं। हालाकि दु:ख से ज्यादा इस खुशी इस बात की है कि तेल कंपनियों और सरदार मनमोहन सिंह की रोज-रोज की सçब्सडी का बोझ बढ़ रहा है, कि राग से तो मुक्ति मिलेगी।
खैर छोडि़ए ... आज छह साल बाद अपन मॉनिüZग वाक पर गए। यूं तो यह खबर नहीं है पर पत्रकार मॉनिüZग वॉक पर जाए तो खबर लाजमी है, वो भी डेस्क पर बैठा आदमी। यूं तो सुबह उठकर घूमने जाने को मॉनिüZग वॉक कहते हैं, लेकिन अपन बिना सोए ही साढे़ पांच बजे वॉक पर निकल पड़े।
ऑफिस का तनाव कुछ ज्यादा था, इसलिए रात भर सो नहीं पाया। यूं रातभर कहना भी उचित नहीं, आजकल ऑफिस का टाइम रात दो बजे तक है। घर पहुंचकर सोते सोते अमूमन सुबह हो जाती है। खैर अपन सुबह पास ही शहर के सबसे बडे़ पार्क में घूमने चले गए। इतने दिनों बाद मॉनिüZग वॉक पर गए तो वही रास्तो जिससे रोज निकलता हूं, उसकी बहुत सारी चीजें नई नवेली लगने लगीं। कुछ बातें तो ऐसी थीं जिन पर मैंने पहले कभी गौर ही नहीं किया, हो सकता है शायद सुबह की ताजगी से ऐसा हो गया हो!
पार्क के सामने तक पहुंचा तो मैं भौचक था। पार्क की पाकिZग और रोड पर खड़ी गाडि़यां गिनने लगा, 175 से ज्यादा कारें, 200 से ज्यादा टू व्हीलर और बहुत सारी साइकिल। जब मैंने साथ गए अपने दोस्त और छोटे भाई को कहा कि लोग यहां मॉनिüZग वॉक पर आए हैं या गाडि़यों को घुमाने लाए हैं, तो वो चिंतिंत जरूर थे पर मेरी बातों से पूरी तरह सहमत नहीं थे।
मेरा कहना इतना भर था कि लोग अपने आसपास के छोटे पार्क में जा सकते हैं, जरूरी नहीं है कि इतनी दूर शहर के इस सबसे बडे़ पार्क में आएं। पड़ोस के ही किसी छोटे पार्क की भी शरण ली जा सकती है।
खैर अपन की चिंता वहीं छूटी दोपहर बाद पता चला कि पेट्रोल, डीजल और गैस की कीमतें बढ़ गई हैं। हालाकि मैं पर्यावरण प्रदूषण को लेकर चिंतित था, लेकिन सवाल अनसुलझा है कि क्या मॉनिüंग वॉक के लिए पेट्रोल जलाना उचित है। मेरी पीड़ा यह है कि अगर पांच किमी दूर जाकर एक पार्क में दो किमी का चक्कर लगाएं उससे अच्छा है कि आप घर से एक किमी दूर ही पैदल निकलें और बिना पार्क जाएं, घर लौट आएं। कम से कम थोड़ा पॉल्युशन और पेट्रोल तो बचेगा वनाü जिस ताजगी के लिए आप मॉनिüZग वॉक कर रहे हैं वह ताजगी ही खत्म हो जाएगी।
तो आप क्या सोचते हैं...
खैर छोडि़ए ... आज छह साल बाद अपन मॉनिüZग वाक पर गए। यूं तो यह खबर नहीं है पर पत्रकार मॉनिüZग वॉक पर जाए तो खबर लाजमी है, वो भी डेस्क पर बैठा आदमी। यूं तो सुबह उठकर घूमने जाने को मॉनिüZग वॉक कहते हैं, लेकिन अपन बिना सोए ही साढे़ पांच बजे वॉक पर निकल पड़े।
ऑफिस का तनाव कुछ ज्यादा था, इसलिए रात भर सो नहीं पाया। यूं रातभर कहना भी उचित नहीं, आजकल ऑफिस का टाइम रात दो बजे तक है। घर पहुंचकर सोते सोते अमूमन सुबह हो जाती है। खैर अपन सुबह पास ही शहर के सबसे बडे़ पार्क में घूमने चले गए। इतने दिनों बाद मॉनिüZग वॉक पर गए तो वही रास्तो जिससे रोज निकलता हूं, उसकी बहुत सारी चीजें नई नवेली लगने लगीं। कुछ बातें तो ऐसी थीं जिन पर मैंने पहले कभी गौर ही नहीं किया, हो सकता है शायद सुबह की ताजगी से ऐसा हो गया हो!
पार्क के सामने तक पहुंचा तो मैं भौचक था। पार्क की पाकिZग और रोड पर खड़ी गाडि़यां गिनने लगा, 175 से ज्यादा कारें, 200 से ज्यादा टू व्हीलर और बहुत सारी साइकिल। जब मैंने साथ गए अपने दोस्त और छोटे भाई को कहा कि लोग यहां मॉनिüZग वॉक पर आए हैं या गाडि़यों को घुमाने लाए हैं, तो वो चिंतिंत जरूर थे पर मेरी बातों से पूरी तरह सहमत नहीं थे।
मेरा कहना इतना भर था कि लोग अपने आसपास के छोटे पार्क में जा सकते हैं, जरूरी नहीं है कि इतनी दूर शहर के इस सबसे बडे़ पार्क में आएं। पड़ोस के ही किसी छोटे पार्क की भी शरण ली जा सकती है।
खैर अपन की चिंता वहीं छूटी दोपहर बाद पता चला कि पेट्रोल, डीजल और गैस की कीमतें बढ़ गई हैं। हालाकि मैं पर्यावरण प्रदूषण को लेकर चिंतित था, लेकिन सवाल अनसुलझा है कि क्या मॉनिüंग वॉक के लिए पेट्रोल जलाना उचित है। मेरी पीड़ा यह है कि अगर पांच किमी दूर जाकर एक पार्क में दो किमी का चक्कर लगाएं उससे अच्छा है कि आप घर से एक किमी दूर ही पैदल निकलें और बिना पार्क जाएं, घर लौट आएं। कम से कम थोड़ा पॉल्युशन और पेट्रोल तो बचेगा वनाü जिस ताजगी के लिए आप मॉनिüZग वॉक कर रहे हैं वह ताजगी ही खत्म हो जाएगी।
तो आप क्या सोचते हैं...
Subscribe to:
Posts (Atom)