Saturday, December 29, 2007

बच के रहना इन रेडियो टैक्सियों से


बेमतलब की सलाह है। पर क्‍या करुं पूरा दिन और पैसे की बर्बादी की बाद सबक मिला है। सोचा आप से शेयर कर लूं, दुख हल्‍का हो जाएगा। इसलिए लिख रहा हूं। सीधे मुददे पर सर्दियों की छुटटी मनाने के लिए इनदिनों अपन की बुआ, भैया भाभी और बहन सब अपने ही साथ हैं। आफिस से छुटटी नहीं मिल रही लेकिन फिर भी सबको घुमाना तो जरूरी था।
सुबह जागा तब तक अपन को छोड बाकी सब लोग जाने को तैयार थे। जबरन उठाकर अपन को भी चलने के लिए कहने लगे। जयपुर के पास पदमपुरा जैन मंदिर जाना था, करीब 32 किमी है। अपन ने कहा कि बस से जाने में परेशानी होगी कोई कार हायर कर ली जाए। नेट ज्ञान काम आया तुरंत गूगल महाराज की शरण में गए और ढूंढ निकाला जयपुर में फोन पर टैक्‍सी मुहैया कराने वाले श्रीश्‍याम रेडियो टैक्‍सी का नंबर। फोन किया और बातचीत के बीस मिनट बाद टैक्‍सी दरवाजे पर। बस यहीं से शुरू हुई असली तकलीफ। गाडी में बैठते ही पता चला कि ये तो गैस से चलेगी। खैर तय हिसाब की जगह मीटर बीस रुपए पर और किमी .775 किमी। खैर थोडी दूर चले तो बुआ और उनके बच्‍चों ने फरमा दिया कि गैस की बहुत बदबू है और इसकी जगह ऑटो में चल चलेंगे। इसमें नहीं थोडी देर बाद सोने पर और सुहागा हुआ कोई वायरिंग जलने लगी। आधे रास्‍ते से पहले ही बुआ और बच्‍चों को आगे वाली सीट पर बिठाया और बाकी लोग जैसे तैसे गाडी के दोनों तरफ के शीशे खोलकर उस बदबू से मुकाबला करते हुए करीब 40 मिनट में मंदिरजी के सामने तक पहुंच गए।
उतरते समय नजर मीटर पर थी, ताकी कोई घपला न हो।
अरे ये क्‍या डिग्‍गी में रखा बैग गायब, डाइवर को पूछा तो जवाब, अपन को पूछ के रखा क्‍या आपने। आपके चक्‍कर में मेरी रिजाई भी रास्‍ते में गिर गई। अपन ने तुरंत घरवालों से पूछा कि बैग में था क्‍या, सब लेडिज पर्स और महत्‍वपूर्ण सामान तो सुरक्षित हैं न। बोले कुछ किलो पूजन सामग्री कुछ छोटे मोटे कपडे, शॉल, नाश्‍ता यही कुछ था।
तुरंत गाडीवाले के ऑफिस में फोन लगाया। वहां तीन बार फोन इधर से उधर टांसफर हुआ और मालिक साहब लाइन पर आए, अपन ने बोला कि बॉस गाडी से बैग गिर गया। कैसी खटारा गाडी है जिसकी डिग्‍गी तक ठीक नहीं है।
साहब तो अपन पर ही चढ गए, बोले डाइवर तो कह रहा है कि सामान उससे पूछ कर नहीं रखा। और फिर वे बोले हो जाता है साहब कई बार स्‍पीड ब्रेकर पर खुल जाती है डिग्‍गी, अब कोई बात नहीं, जाने दो। अपन ने चार भाषण मारे और दिमाग खराब होने के बाद फोन रख दिया।
सारी पूजन सामग्री बैग में ही थी सो पूजन सामग्री फिर वहीं दुकान से खरीदी और मंदिर में चले गए।
लौटकर गाडी में बैठे तो अरे ये क्‍या मीटर तो पहले से पचास रुपए से भी ज्‍यादा आगे से शुरु हो रहा है। अपन ने बोला भाई ये क्‍या लूटमार है। डाइवर साहब बोले ये तो वेटिंग चार्ज है, अपन से रहा नहीं गया। मैंने कहा गजब है भाई आदमी गाडी कहीं लेकर जाएगा तो थोडी देर तो रुकेगा ही न। गाडी किमी सिस्‍टम पर है, इसका मतलब क्‍या इसे दौडाते ही रहें।
अपन ने फिर उसके मालिक को फोन लगाया, वे फरमाए कि ये तो पूरे जयपुर को पता है कि हम ये चार्ज करते हैं। मैंने कहा कि मेरी जब आपसे बात हुई तो आप सिर्फ इतना बोले कि पहले किमी के 20 रुपए और बाद में 8 रुपए किमी। बाकी तो बताया भी नहीं था, ज‍बकि मैंने पहले ही कह दिया था कि करीब 45 मिनट रुकेंगे।
वे बोले ये तो देना ही होगा, मैंने कहा अगर गाडी जाम में फंसती या रेलवे क्रासिंग पर अटकती तो क्‍या होता। बोले हां हां पैसे तो देने ही होंगे।
बस अपन से रहा नहीं गया, दो चार गरमागरम सुनाकर मैंने बोला कानून ज्‍यादा मत सिखा वर्ना मुझे गुस्‍सा आ जाएगा। इसके बाद अपन वहां बिल्‍कुल नहीं रुके और मैंने कहा कि बस चल अब बाकी जगह तेरी गाडी से नहीं जाएंगे। तू तो बस जयपुर पहुंचकर छोड दे हमें, वहां से आगे घूमने के लिए दूसरी गाडी कर लेंगे।

बस लौटते समय अपनी नजर पूरे रास्‍ते भर हर गाडी की डिग्‍गी पर ही रही। खैर करीब 22 किमी के सफर में अपन को ये राजस्‍थान रोडवेज की बस नजर आ ही गई, जो जनता का सामान इस खुली डिग्‍गी में भी ढोह रही थी।

सांगानेर में सांघीजी के मंदिर पहुंचकर हमने गाडी छोड दी। और अब शुरू हुई असल कहानी।
अपन ने कह दिया कि अब मैं फोन नहीं करुंगा, बात कर अपने मालिक को और बोल दे कि बैग और उसके सामान के पैसे दे तब ही गाडी का किराया मिलेगा।
बडी बहस के बाद डाइवर ने रेडियो सिस्‍टम से फोन करके अपने मोबाइल पर सेठजी से फोन कराया। अब वो साहब मानने को ही तैयार नहीं कि गाडी से सामान गिरा है।
बात बढती देख आसपास के लोग आ गए। कोई अपन को डाइवर को पीटने की सलाह दे और कोई पुलिस में जाने की। खैर मैंने उसके मालिक से कहा कि जो सैटलमेंट करना है करे, और अपन के दिन की बर्बादी बचाए।
अब वो साहब फरमाए कि अगर गाडी में गैस की बदबू आ रही थी तो बैठे ही क्‍यूं। आप तो अब बहानेबाजी कर रहे हैं। सामान भी पता नहीं रखा या नहीं।
अब दो ही विकल्‍प थे या तो मामला पुलिस में ले जाएं या पैसे देकर काम खत्‍म और जिंदगी का पक्‍का सबक।
खैर वह टोटल बिल से 50 रुपए कम करने को तैयार हो गया। अपन ने उसे आधे रास्‍ते से ही विदा किया और आगे से रेडियो टैक्‍सी से तौबा कर ली।

1 comment:

Anonymous said...

बुरा हुआ आपके साथ लेकिन आपसे कोताही यह हुई कि सभी बात नहीं पता की जैसे कि वेटिंग चार्ज आदि। टैक्सी भाड़े पर लेकर यदि जाएँ और कहीं पर खड़ी कर किसी भी काम से जाते हैं तो वेटिंग चार्ज तो लगता ही है, यह आम है। बल्कि दिल्ली जैसे शहरों में तो ऑटो वाले भी हल्ला करते हैं कि उनको भी वेटिंग चार्ज चाहिए। रही गैस की बात तो मैं समझ सकता हूँ कि आपको अंदाज़ा नहीं होगा कि गैस वाली गाड़ी आएगी। वैसे आपको सलाह तो मैं यही दूँगा कि टैक्सी सेवा के मालिक की सलाह मानिए, आगे से कभी टैक्सी बुलाएँ तो यदि गैस की बदबू अधिक आ रही है(जो कि आपकी बर्दाश्त से अधिक हो) तो गाड़ी में न बैठें। वैसे अनुभव व्यक्ति को काफ़ी सिखाता है, इसलिए सोच लीजिए कि यह भी एक अनुभव हुआ और इससे आपने कुछ सबक लिए। :)