Wednesday, June 4, 2008

तो क्या मतलब मॉनिग वॉक का

बाकी लोगों की तरह अपन भी पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से दुखी हैं। हालाकि दु:ख से ज्यादा इस खुशी इस बात की है कि तेल कंपनियों और सरदार मनमोहन सिंह की रोज-रोज की सçब्सडी का बोझ बढ़ रहा है, कि राग से तो मुक्ति मिलेगी।
खैर छोडि़ए ... आज छह साल बाद अपन मॉनिüZग वाक पर गए। यूं तो यह खबर नहीं है पर पत्रकार मॉनिüZग वॉक पर जाए तो खबर लाजमी है, वो भी डेस्क पर बैठा आदमी। यूं तो सुबह उठकर घूमने जाने को मॉनिüZग वॉक कहते हैं, लेकिन अपन बिना सोए ही साढे़ पांच बजे वॉक पर निकल पड़े।
ऑफिस का तनाव कुछ ज्यादा था, इसलिए रात भर सो नहीं पाया। यूं रातभर कहना भी उचित नहीं, आजकल ऑफिस का टाइम रात दो बजे तक है। घर पहुंचकर सोते सोते अमूमन सुबह हो जाती है। खैर अपन सुबह पास ही शहर के सबसे बडे़ पार्क में घूमने चले गए। इतने दिनों बाद मॉनिüZग वॉक पर गए तो वही रास्तो जिससे रोज निकलता हूं, उसकी बहुत सारी चीजें नई नवेली लगने लगीं। कुछ बातें तो ऐसी थीं जिन पर मैंने पहले कभी गौर ही नहीं किया, हो सकता है शायद सुबह की ताजगी से ऐसा हो गया हो!
पार्क के सामने तक पहुंचा तो मैं भौचक था। पार्क की पाकिZग और रोड पर खड़ी गाडि़यां गिनने लगा, 175 से ज्यादा कारें, 200 से ज्यादा टू व्हीलर और बहुत सारी साइकिल। जब मैंने साथ गए अपने दोस्त और छोटे भाई को कहा कि लोग यहां मॉनिüZग वॉक पर आए हैं या गाडि़यों को घुमाने लाए हैं, तो वो चिंतिंत जरूर थे पर मेरी बातों से पूरी तरह सहमत नहीं थे।
मेरा कहना इतना भर था कि लोग अपने आसपास के छोटे पार्क में जा सकते हैं, जरूरी नहीं है कि इतनी दूर शहर के इस सबसे बडे़ पार्क में आएं। पड़ोस के ही किसी छोटे पार्क की भी शरण ली जा सकती है।
खैर अपन की चिंता वहीं छूटी दोपहर बाद पता चला कि पेट्रोल, डीजल और गैस की कीमतें बढ़ गई हैं। हालाकि मैं पर्यावरण प्रदूषण को लेकर चिंतित था, लेकिन सवाल अनसुलझा है कि क्या मॉनिüंग वॉक के लिए पेट्रोल जलाना उचित है। मेरी पीड़ा यह है कि अगर पांच किमी दूर जाकर एक पार्क में दो किमी का चक्कर लगाएं उससे अच्छा है कि आप घर से एक किमी दूर ही पैदल निकलें और बिना पार्क जाएं, घर लौट आएं। कम से कम थोड़ा पॉल्युशन और पेट्रोल तो बचेगा वनाü जिस ताजगी के लिए आप मॉनिüZग वॉक कर रहे हैं वह ताजगी ही खत्म हो जाएगी।
तो आप क्या सोचते हैं...

4 comments:

Udan Tashtari said...

सही सलाह है कि घर के आसपास ही टहला जाये. पेट्रोल जलाकर जेब और पर्यावरण दोनों को ही नुकसान होना है.

Rajesh Roshan said...

मैं एक सज्जन को जानता हू जो अपनी गाड़ी से अपने घर में काम करने वाले को अपनी गाड़ी के साथ अपने कुते को यह कह कर भेजते हैं की जरा कुते को टहला लाओ

Dr Parveen Chopra said...

काश ! सभी प्रातःकाल के भ्रमण के लिये गाडियां घुमाने वाले आप की इतनी बढ़िया बात समझ लें और उसे अपनी प्रैक्टिस में ले आयें।
बहुत अच्छा लिखा है आपने। मैं भी हमेशा से ही सुबह की सैर की इसी सोच का समर्थक रहा हूं क्योंकि यह जो आप ने तकनीक बताई है....लांग-टर्म में निभ भी यही पाती है ....घर से पैदल ही निकलें, कहीं आसपास कोई छोटा-मोटा पार्क है तो ठीक है, वरना 30-40 मिनट तक तेज़ तेज़ टहल कर घूम आयें ।
एक बार इतना अच्छे से लिखने के लिये बधाई।

vineeta said...

क्या बात है राजीव जी. भाई आपने तो दिल की बात कह दी. मैं भी यही सोच रही थी की आजकल लोग इतने आलसी हो गए हैं की जरा जरा सी दूरी के लिए अपनी गाड़ी निकाल लेते हैं. ये सही नही है. थोडी दूरी तो पैदल चलकर पूरी की जा सकती है. एक पंथ दो काज. सेहत की सेहत और पोलुशन भी कम होगा. दिली जैसी जगह पर ये बात लोगो को जल्द समझ मैं आणि चाहिए वरना दिली गैस और धुएं का शहर बन कर रह जायेगा.