Sunday, August 30, 2009

आज मैंने किराए पर दो रुपए ज्यादा दिए

आज ही घर से लौटा हूं। घर(राजगढ़) से सीधे जयपुर की बस में बैठा, बांदीकुई पहुंचने तक बस खचाखच हो गई। बाद में मुझे पता चला कि बस दौसा में भी अंदर होकर जाएगी। इसलिए सिंकदरा से मैंने बस चेंज करने की सोची। सिंकदरा में यूपी रोडवेज की बस में सवार हो गया। राजस्थान रोडवेज का सिकंदरा से जयपुर तक का किराया 42 रुपए है। यूपी रोडवेज में बैठा इसलिए किराए का अंदाजा नहीं था। मैंने कंडेक्टर को भ्0 का नोट थमा दिया। कंडेक्टर ने ठीक है कहा और चला गया। मुझे लगा कि टिकट दे रहा होगा। और मैं एसएमएस करने में व्यस्त हो गया। थोड़ी देर बाद जब मुझे एससास हुआ कि कंडेक्टर ने टिकट नहीं दिया है तो मैंने उसकी सीट तक जाकर पूछताछ शुरू की। कंडेक्टर साहब ने फरमाया कि किराया भ्2 रुपए है और आपने भ्0 रुपए दिए थे। यानी कंडेक्टर साहब पूरे पैसे ही गोल करना चाहते थे। मैंने पांच रुपए और दिए कि साहब टिकट तो दे दो। बेमन से घूर कर साहब ने मुझे टिकट दिया और फिर खुल्ले न होने का बहाना कर दो का सिक्का दे दिया, यानी साहब एक रुपए तो खा ही गए। उसके बाद मैं अगले स्टैंड से चढ़ी सवारियों से उसके लेनदेन पर गौर करता रहा। कुल मिलाकर मैंने पाया कि हर स्टैंड पर उसने एक बेटिकट सवारी तो बिठा ही रखी थी। मैंने मगजमारी से बचने के लिए मामले को तूल नहीं दिया पर सोचता रहा कि भाई लोगों को भले ही एक दो रुपए का फायदा कर रहा हो पर सरकार को कितने का चूना लगा रहा है। फिर मुझे अहसास हुआ कि यूपी रोडवेज की बसें राजस्थान की तुलना में इतनी खस्ताहाल कैसे हैं।
इसमें मैं यह भी जोड़ना चाहूंगा कि मेरी राजस्थान रोडवेज वाली बस का कंडेक्टर इतना शरीफ था कि बांदीकुई और सिकंदरा में एक जगह उतरी सवारी का उतरने से पहले टिकट चैक किया और उसने पाया कि उन तीन सवारियों ने एक स्टॉप पहले का टिकट ले रखा था। भाई ने उनसे और पैसे लेकर ही दम लिया। यानी एक बेहद ईमानदार और दूसरा खूंखार बेइमान।