Tuesday, November 27, 2007

ब्‍लॉग पर एक और लेख


जयपुर के एक छोटे लेकिन पुराने समाचार पत्र 'समाचार जगत' में 27 नवंबर को अपने एडिट पेज पर ब्‍लॉगिंग पर 'हिंदी ब्‍लॉगिंग अपने शैशव काल में' शीर्षक से एक लेख छपा है। हालांकि लेखक का नाम नहीं दिया गया है, लेकिन उसमें जीतूजी, रवि रतलामीजी के हवाले से कुछ आंकडे दिए गए हैं। इसमें संजय बेगाणी, पंकज बेगाणी, पंकज नरुला का भी नाम दिया गया है। श्रीमान ने नारद और मोहल्‍ला के अविनाशजी का भी जिक्र किया।
आपकी जानकारी के लिए पूरा लेख चस्‍पा किया जा रहा है। क्लिक करके पढ सकते हैं।

Saturday, November 24, 2007

बधाई हो अपन का अलवर भी टॉप पॉल्‍यूटेड सिटीज में


अभी अपन एक मित्र के भाई की शादी में फरीदाबाद गए। यूं तो दिल्‍ली में नौकरी के दौरान ऑफ वाले दिन फरीदाबाद खूब गया हूं, एक दीदी रहती थीं वहां तो आना-जाना लगा रहता था, पर ये जाना कुछ अलग था। अब बैण्‍ड दूसरी शिफ़ट में थी तो अपन को जैसे भी रात के दस बजाने थे और बारात शाम को तीन बजे ही पहुंच गई।
अपन अलवर से बारात में गए थे और ठाले बैठे बाराती लोग टाइम पास करने के लिए ताश पीट रहे थे, यूं बडे शहर में बारात जाती है तो ऐसा कम ही दिखता है, अमूमन लोग घूमने फिरने निकल पडते हैं।
अपन तो देर से उठने के आदी हो गए हैं और बारात के चक्‍कर में उस दिन सुबह जल्‍दी उठ गए तो नींद आ रही थी पर बाकी लोगों को ताश पीटते देखा तो दिमाग में यह बात आई की लोग यहां क्‍यूं बैठे हैं। अपन ने कहा भाई यहां कमरे में बैठकर क्‍या कर रहे हो जाओ जारा मार्केट घूमो फिरो। पर अचानक एक साथ एक ही जवाब आया बाहर पॉल्‍युशन बहुत है। (आमतौर पर बारात में सहमति बनना न के बराबर होती है, बारात में ज्‍यादा जाने वाले इस बात से परिचित होंगे।)
तो पॉल्‍युशन का नाम छिडते ही अपनी टयूबलाइट जली कि देश का सबसे प्रदूषित शहर कौनसा है। एक को समझदार समझकर पूछा तो बोला अहमदाबाद ही होगा। अपन से रहा नहीं गया, जोश जोश में कह दिया भाई अहमदाबाद से एक बार गुजरा हूं इतना बुरा नहीं है, हो न हो कानपुर ही होगा सबसे प्रदूषित। बस लग गई सौ रुपए की शर्त, मैंने कहा कि अहमदाबाद सबसे ज्‍यादा प्रदूषित नहीं हो सकता भले ही कुछ हो जाए।
अब शर्त के डिसिजन के लिए तय हुआ कि नेट पर किसी से पूछकर बताया जाए कि टॉप टेन शहर कौनसे हैं। वहीं से बैठकर नेट पर संभावित विराजे हो सकने वाले दो लोगों को फोन लागाया, लेकिन उन्‍होंने असमर्थता जता दी कि भई पूरी लिस्‍ट नहीं मिल रही।

तो तय हुआ कि अगली शादी में इसकी पार्टी उडाई जाएगी। बारात से अब अपन आकर जुट गए लिस्‍ट ढूंढने में। अब मिली है तो अपनी तो सांसे ही थम गई लिस्‍ट देखकर कि कमबख्‍त अपना अलवर तो फरीदाबाद से भी तीन पायदान ऊपर है और सातवे नंबर पर विराज रहा है। पंजाब का गोबिंदगढ शहर देश का सबसे प्रदूषित शहर है।
बस रहा नहीं गया अपन से आप सभी से यह जानकारी शेयर करे बिना, लिख मारा पूरा एक पेज।
आपको हुई असुविधा के लिए खेद,लेकिन इस धूआंधार जानकारी को दूसरों को पढाएं और अपना मार्गदर्शन करें।
पूरी लिस्‍ट नीचे चस्‍पा कर दी गई है, अपना शहर देखकर चिंतित हो जाएं और अपने परिचितों को भी बताएं।
धन्‍यवाद
जय फरीदाबाद जय शर्त जय अलवर

The list of cities and their pollution level :
Order City RSPM Annual average concentration during 2005 (Res. Areas)
1 Gobindgarh 250
2 Ludhiana 232
3 Raipur 192
4 Lucknow 186
5 Kanpur 178
6 Jalandhar 175
7 Alwar 160
8 Jharia 156
9 Dehradun 150
10 Faridabad 148
11 Agra 147
12 Ahmedabad 134
13 Vapi 134
14 Solapur 129
15 Jamnagar 129
16 Indore 126
17 Ankaleshwar 126
18 Satna 124
19 Surat 124
20 Dhanbad 121
21 Bhilai 118
22 Delhi 115
23 Howrah 113
24 Guwahati 112
25 Kolkata 110
Note :- The data of Jharia is of industrial area and data of
Agra is of Taj Mahal (Sensitive area)
(खबर तो बुरी है पर बधाई इसलिए कि अलवर कहीं तो टॉप टेन में है, अलवरवासियों से माफी के साथ )

Thursday, November 15, 2007

हाय रे सांवरिया


बुधवार सुबह अपना भी मन हुआ सांवरिया और ओम शांति ओम में से कौनसी फिल्‍म ज्‍यादा बुरी है। इसका फैसला अपन खुद ही करेंगे। तो ओम शांति ओम तो अपन पूरे दिन में दो कोशिशों के बाद भी नहीं देख पाए। पहली बार कोशिश की बुधवार तीन से छह के लिए और दूसरी बार रात नौ से बारह बजे के शो के लिए की, लेकिन जयपुर के बडे सिनेमाघरों में टिकट एडवांस बुक थीं या बडी बडी लाइनें थीं।
तो अपन ने दो बजे से पांच बजे वाले शो में शहर में दीवाली से ही खुले आयनोक्‍स में सांवरिया ही देख डाली। पहली बार इस नए हॉल में गया तो पांच छह मिनट रास्‍ता ढूंढने, सिक्‍योरिटी और पार्किंग वालों ने बिगाड दिए और करीब इतनी ही फिल्‍म निकल गई। हॉल के अंदर पहुंचा तो सुखद अनुभू‍ति हुई, कि शायद अपन ही समझदार हैं जो ऐसी फिल्‍म देखने आएं है जिसे अपन समेत कुल पंद्रह ही लोग देख रहे हैं। वहीं दूसरी फिल्‍म की हालत आपको बता ही चुका हूं। इतनी विशाल ऑडियंस में भी चार पेयर तो ऐसे थे जो आए ही इसलिए थे कि खाली थिएटर में शायद कुछ और करने का भी मौका मिल जाए। इतना तो उनको प्रोमो देखकर ही पता चल गया था न कि फिल्‍म में डार्क ब्‍लू और लाइट ग्रीन कलर यूज किया है, तो कुछ तो सपोर्ट मिलेगा।
हां तो बहुत हुई बकवास अब फिल्‍म की बात की जाए, अपने भंसाली भाई साहब देवदास, ब्लैक और खामोशी द म्‍यूजिकल की दे दनादन सफलताओं से लगता है कुछ झाड पर ही चढ गए हैं। उन्‍होंने वे तीनों प्रयोग जो इन फिल्‍मों को हिट कराने में यूज किए सारे एक साथ कर दिए पर लगता है स्‍टोरी पर काम करना भूल गए। बहुत सीन हैं जो पुरानी फिल्‍मों की याद दिलाते हैं जैसे हीरोइन का दौडने वाला सीन और म्‍यूजिक देवदास की ऐश की। बर्फ की बारिश ब्‍लैक की। अगर इस फिल्‍म को देखकर आप भंसाली साहब की फिल्‍मों को देखेंगे तो बहुत सारी समानताएं दिखाई देंगी।
यूं तो उनके बारे में सुना है कि उन्‍हें परफेक्‍शन इतना पसंद है कि जब तक न मिले तब तक रिटेक पर रिटेक करते हैं। लेकिन सांवरिया में ऐसा कुछ नहीं है बस शायद उनका सारा ध्‍यान शायद सेट बनवाने और रणबीर कपूर के तौलिया डांस में लगा दिया।
बेशक फिल्‍म के सेट सुंदर है, हर लोकेशन पर जान छिडकने को जी चाहता है और वो पूरे शहर का व्‍यू तो हैरी पॉर्टर की जादुई नगरी सरीखा दिखता है। इतना सुंदर सीन, जिसमें भाप का इंजन जा रहा है और पूरा शहरनुमा सेट एक ही फ्रेम में है, बस एक बार दिखाई देता है।

क्‍यूं नहीं चली फिल्‍म
मेरे हिसाब से फिल्‍म तीन कारणों से उतनी नहीं चल पाई, जितनी चलनी चाहिए या मतलब देवदास और ब्‍लैक जैसी सफल होनी चाहिए थी। पहला सामने शाहरुख और उनके दोस्‍त थे जिन्‍होंने अपना माल बेचने के लिए कोई लिमिट नहीं छोडी। दूसरा फिल्‍म की कहानी ही वीक थी और सारे टाइप कैमरा रणबीर और सोनम के आजू बाजू ही रहा।
तीसरा कोई भी भारतीय दर्शक हीरोइन को हीरो को छोडकर किसी और फिल्‍म में सलमान के साथ जाते हुए नहीं देखना चाहता और फिल्‍म इसी अनहैप्‍पी एंडिंग के साथ खत्‍म होती है। अगर शादी होनी ही नहीं थी (जैसा कि नहीं होना चाहिए था), तो भंसाली भाई साहब ने हीरोइन के फुदकने लटके-झटके और दोनों के प्रणय संबंधों में इतना टाइम कयों खराब किया। हीरोइन किसी ऐसे आदमी के साथ चली गई जिसके साथ कुल तीन सीन और एक डायलॉग दिखाया हो।


इंडस्‍टीवालों रानी से क्‍या चाहते हो

फिल्‍म में रानी मुखर्जी को वेश्‍या के किरदार में दिखाया गया है। इससे पहले लागा चुनरी का दाग में भी वे कमोबेश इसी लुक में थीं। गुलाबजी नाम के किरदार से वे फिल्‍म में रणबीर राज यानी सांवरियां पर मरती है, लेकिन वे वेश्‍या से प्‍यार न करने लग जाए इसलिए खुद ही वहां आने पर पिटवा डालती हैं। उन पर फिल्‍माया गया गाना ‘छबिला रसीला’ के बोल बहुत ही प्‍यारे हैं और फिल्‍म इसी गाने में हैप्‍पी-हैप्‍पी फील कराती है।

शायद इसीलिए महंगे हुए तौलिए
पता नहीं कुछ दिन पहले एक जानी मानी कंपनी ‘वेलस्‍पन’ का तौलिया खरीदकर लाया, उसका एमआरपी सिर्फ 549 रुपए था। तब मुझे लगा कि शायद तौलिया महंगा है, लेकिन उसकी महंगाई का राज मुझे सांवरिया देखने के बाद पता चला। लगता है सारे लडके ‘जबसे तुझे देखा’ गाने पर तौलिए में डांस कर रहे हैं।

वैसे कपूर खानदान का लडका इतना अच्‍छा डांसर निकला बधाई हो रिषीजी और नीतूजी। अपन ने जो बेमतलब पंचायती की उसकी भी तो समीक्षा कर दीजिए

Monday, November 12, 2007

अरे ये गुटखा क्‍यूं महंगा हो गया


बॉस यूं तो अपन ये गुटखा खाते नहीं! बस अपनी जिंदगी इस 'मेरी सुपारी' तक ही सिमटी हुई है। कभी जभी साल दो साल में एक आध बार जब सुपारी खाने की इच्‍छा हो और न मिले तो रजनीगंधा ही प्रिफर करता हूं। इस लिहाज से अपन को (अंबर, जयंती, अंकुर विमल कुछ लोकप्रिय गुटखों के ब्रांड है) इन सबसे कोई सरोकार नहीं है। पर किसी ने बताया कि आजकल ये गुटखा महंगा हो गया है। अपन को लगा कि देश दुनिया में महंगाई तो भई यह महंगा हो गया तो कौन सी मुसीबत आन पडी है।
पर आज लगा जैसे प्‍याज के बिना दाल फ्राई, प्‍यार के बिना जिंदगी तो गुटखे के बिना दिनभर अपना मुंह चलाने वाले अपने गंगारामजी कैसे जिएंगे। इसलिए अपन भी तुरंत चिंतित हो लिए। अभी किसी शॉप पर गए तो नजर सामने रखी अंकुर एक प्रतिष्ठित ब्रांड के पॉलीपैक पर टिक गई। अपने दिमाग में तुरंत पत्रकारिता का कीडा कुलबुलाया तो तुरंत अपना ज्ञान झाडा और आगे की कहानी के लिए दाग दिया सवाल
भाई सुना है आजकल गुटखे ब्‍लैक में मिल रहे हैं
साहब फरमाए, क्‍या करें साहब आगे से महंगे आ रहे हैं
मैंने कहा, क्‍यूं क्‍या क्रांति हो गई देश में की यह जहर भी महंगा हो गया
सुपारी महंगी हो गई या कोई और बवाल है
वे बोलते इससे पहले ही वहीं खडे आदत के शिकार एक असली हिंदुस्‍तानी साहब बीच में ही बोल दिए हो सकता है साहब कोनू छापा पड गया हो या प्रोडक्‍शन घट गया हो
मैंने कहा हां यार बात तो सही पर
जब हिंदुस्‍तान में सारी चीजों का प्रोडक्‍शन ठीकठाक है। मतलब जो पॉपुलेशन जो कम चाहिए थी वो तक बेलगाम बढती जा रही है तो ये गुटखे का प्रोडक्‍शन कयूं नहीं बढ सकता। ये रेड वाला जवाब अपन को थोडा जरूर जंचा।
अब दुकानदार साहब की पीडा सुनिए बोले कि 54 पुडिया का पैकट अब 27 रुपए में मिल रहा है पहले 21 रुपए में मिलता था। इसलिए साहब कम से कम 75 पैसे की एक या दो रुपए की तीन तो बेचनी ही होगी।
अपन को ये गणित तो समझ में आया गया पर ये पता नहीं चला कि गुटखे की किल्‍लत कयूं।
हर चौ‍था आदमी इस प्रसाद को खाता है, मीडिया में तो इसे खाने वालों की तादाद इतनी है कि एक दिन का एडिशन तो उनके नाम लिखकर ही छापा जा सकता है, तब भी ये खबर खबर क्‍यूं नहीं बनी। अब किसी को कारण पता चले या आपके अपने इलाके में भी किल्‍लत हो तो कृपया इस राष्टीय चिंता के विषय पर अपनी चिंता जरूर जताएं।
इसी उम्‍मीद के साथ
जय गुटखा

Thursday, November 8, 2007

नारद जी प्रकट भए

नारदजी नए लुक में आ गए हैं
उनका दावा है कि एक मिनट में वे आपको सबके सामने पहुंचा देंगे।
हां एक और बात कि यहां लिखा है कि यह है बिना तामझाम वाला संकलक - न पंजीकरण की ज़रुरत और न ब्लॉग पर दावा सिद्ध करने की। एग्रीगेटर का काम है नवीन ब्लॉग पोस्ट की सूचना देना, तो वही कार्य हम करना चाहते हैं और तीव्र गति से करना चाहते हैं। आप ब्लॉग बनाए और बाकी हम पर छोड़ दें। नारद तीव्र के दरवाज़े हर हिन्दी ब्लॉग के लिए खुले है, जोड़ने घटाने के लिए किसी पत्राचार की आवश्यकता नहीं है।

शुभ दीपावली

Monday, November 5, 2007

कमबख्‍त कपनियां एक जैसा मोबाइल चार्जर क्‍यूं नहीं बनातीं


कल रविवार का दिन था और दोपहर में खाना खाकर छोटे भाई के साथ घूमने निकल गया और फिर सीधे ऑफिस की ओर कूच कर दिया। अपने पास टाटा का मोबाइल कनेक्‍शन है तो उसके साथ मोबाइल है सेमसंग का। उसकी सबसे बडी दिक्‍कत है कि एक तो बैटरी का बैकअप कम और ऊपर से नोकिया की तरह उसका चार्जर सारी जगह नहीं मिलता। इसलिए ऑफिस जाने से पहले घर से चार्जर ले गया और काम खत्‍म होने के बाद मैं तो घर आ गया पर वो चार्जर वहीं छूट गया। अब रोज रोज चार्जर ऑफिस ले जाने की आदत नहीं है न। घर लौटा तो याद आया कि चार्जर तो आफिस में ही लगा रह गया, हालांकि वहां फोन करके चार्जर तो सुरक्षित रखवा दिया पर सुबह होते होते अपने मोबाइल की टैं बोल गई।
छोटा भाई पता नहीं कब आफिस चला गया और अपन सोते ही रहे, वर्ना रोज तो एक आध बार ये मुंआ बज ही जाता था तो उठ ही जाता। अब बिना डिर्स्‍टबेंस के जगने की आदत नहीं है न तो सोता ही रहा, अचानक नींद खुली और बाहर खूब तेज रोशनी थी तो जाग गया, उठकर देखा तो मोबाइल ऑफ था।
अब पहली समस्‍या तो यह कि टाइम कितना हुआ, क्‍यूंकि कमरे में लगी घडी का सेल खत्‍म हो गया है। तभी आइडिया आया कि कम्‍प्‍यूटर ऑन करके टाइम देखा जाए। अब कम्‍प्‍यूटर ऑन किया तो पता चला कि एक बजने की तैयारी है। अब पांच बजे तो आफिस जाना ही था तो मैंने सोचा कि चार घंटे में आना जाना तो अपन मोबाइल से कौनसा तीर मार लेंगे। इसलिए चार्जर लेने आफिस गया ही नहीं और बिना फोन के ही दिन गुजार दिया।
अब बिना मोबाइल के जीने की आदत नहीं है, करीब पांच साल से मोबाइल है अपने पास तो बार बार याद सताती रही, बंद फोन को भी हमने कोई दसियों बार उठाकर देखा कि कोई मैसेज या मिस कॉल तो नहीं।
उन लोगों का नाम लेकर हमें कम से कम बीस बार हिचकी भी आई, जो खाली वक्‍त में हमारा दिल बहलाने के लिए पांच सात एसएमएस और एक आध मिस कॉल ठेल देते हैं।
शाम तक अपन इस नतीजे पर पहुंचे कि कमबख्‍त ये कंपनियां एक जैसा चार्जर क्‍यूं नहीं रखती सब। अगर ऐसा होता तो रूम में चार अलग अलग कंपनियों के चार्जर पडे थे किसी से तो चार्ज कर लेते। दिन भर बिना फोन के तो नहीं बैठते।
अब लीजिए हमारे दुख में शरीक हुए हैं तो कम से कम इन मुई कंपनी वालों को तो बता दीजिए कि उनकी अलग अलग मॉडल के फोन निकालने की प्रतिस्‍पर्धा ने हमारे तो दिन का ही सत्‍यानाश कर दिया।
ए चार्जर तुम बहुत याद आए

Saturday, November 3, 2007

ब्‍लॉगर्स के लिए खुशखबरी


शनिवार को राजस्‍थान साहित्‍य अकादमी के वार्षिक पुरस्‍कारों की घोषणा की गई है। ब्लॉगर्स के लिए खुशी की बात यह है कि जयपुर के ब्‍लॉगर डॉ: दुर्गाप्रसाद प्रसाद अग्रवालजी को उनके यात्रा वृतांत आंखन देखी के लिए कन्‍हैयालाल सहगल पुरस्‍कार की घोषणा की गई है। इसमें उन्‍हें प्रशस्ति पत्र के साथ 15 हजार रुपए भी दिए जाएंगे। अग्रवाल साहब जोगलिखी नाम से ब्‍लॉग लिखते हैं और वेब पत्रिका इंद्रधनुष इंडिया के संपादक भी हैं।

इसके अलावा जयपुर के रसकपूर फेम आनंद शर्मा को मीरा पुरस्‍कार और और जयपुर के ही रतन जांगिड को डॉ रांघेय राघव पुरस्‍कार दिया जाएगा। जयपुर के डॉ रवि श्रीवास्‍तव को उनकी पुस्‍तक परम्‍परा इतिहास बोध और साहित्‍य के लिए देवराज उपाध्‍याय पुरस्‍कार दिया जाएगा।
ब्‍लॉगर्स की ओर से बधाई