
बॉस यूं तो अपन ये गुटखा खाते नहीं! बस अपनी जिंदगी इस 'मेरी सुपारी' तक ही सिमटी हुई है। कभी जभी साल दो साल में एक आध बार जब सुपारी खाने की इच्छा हो और न मिले तो रजनीगंधा ही प्रिफर करता हूं। इस लिहाज से अपन को (अंबर, जयंती, अंकुर विमल कुछ लोकप्रिय गुटखों के ब्रांड है) इन सबसे कोई सरोकार नहीं है। पर किसी ने बताया कि आजकल ये गुटखा महंगा हो गया है। अपन को लगा कि देश दुनिया में महंगाई तो भई यह महंगा हो गया तो कौन सी मुसीबत आन पडी है।
पर आज लगा जैसे प्याज के बिना दाल फ्राई, प्यार के बिना जिंदगी तो गुटखे के बिना दिनभर अपना मुंह चलाने वाले अपने गंगारामजी कैसे जिएंगे। इसलिए अपन भी तुरंत चिंतित हो लिए। अभी किसी शॉप पर गए तो नजर सामने रखी अंकुर एक प्रतिष्ठित ब्रांड के पॉलीपैक पर टिक गई। अपने दिमाग में तुरंत पत्रकारिता का कीडा कुलबुलाया तो तुरंत अपना ज्ञान झाडा और आगे की कहानी के लिए दाग दिया सवाल
भाई सुना है आजकल गुटखे ब्लैक में मिल रहे हैं
साहब फरमाए, क्या करें साहब आगे से महंगे आ रहे हैं
मैंने कहा, क्यूं क्या क्रांति हो गई देश में की यह जहर भी महंगा हो गया
सुपारी महंगी हो गई या कोई और बवाल है
वे बोलते इससे पहले ही वहीं खडे आदत के शिकार एक असली हिंदुस्तानी साहब बीच में ही बोल दिए हो सकता है साहब कोनू छापा पड गया हो या प्रोडक्शन घट गया हो
मैंने कहा हां यार बात तो सही पर
जब हिंदुस्तान में सारी चीजों का प्रोडक्शन ठीकठाक है। मतलब जो पॉपुलेशन जो कम चाहिए थी वो तक बेलगाम बढती जा रही है तो ये गुटखे का प्रोडक्शन कयूं नहीं बढ सकता। ये रेड वाला जवाब अपन को थोडा जरूर जंचा।
अब दुकानदार साहब की पीडा सुनिए बोले कि 54 पुडिया का पैकट अब 27 रुपए में मिल रहा है पहले 21 रुपए में मिलता था। इसलिए साहब कम से कम 75 पैसे की एक या दो रुपए की तीन तो बेचनी ही होगी।
अपन को ये गणित तो समझ में आया गया पर ये पता नहीं चला कि गुटखे की किल्लत कयूं।
हर चौथा आदमी इस प्रसाद को खाता है, मीडिया में तो इसे खाने वालों की तादाद इतनी है कि एक दिन का एडिशन तो उनके नाम लिखकर ही छापा जा सकता है, तब भी ये खबर खबर क्यूं नहीं बनी। अब किसी को कारण पता चले या आपके अपने इलाके में भी किल्लत हो तो कृपया इस राष्टीय चिंता के विषय पर अपनी चिंता जरूर जताएं।
इसी उम्मीद के साथ
जय गुटखा
5 comments:
राजीव भाई आपकी इस राष्ट्रीय चिंता में मुझे शरीक समझें , मैं दो मिनट मौन की तजवीज करता हूँ
इधर भी यई लोचा है मामू!!
जो गुटखा का पाउच पहले एक रुपए मे आता था वह अब डेढ़ रुपए में आ रहा है, जबकि उसका एम आर पी एक रुपए ही छपा हुआ है! आपके दिमाग वाले कीड़े ने इधर भी काट रखा है सो अपन ने भी पतासाजी की तो मालूम चला कि गुटखा बनाने वाली कंपनी ने मार्जिन कम कर दिया है!! सो इस घटे मार्जिन की भरपाई रेट बढ़ाकर की जा रही है और गुटखा पर रोक लगाने की सोच रखने वाली सरकार सो रही है इत्थे!!
नहीं, हमारे इलाक़े में कोई किल्लत नहीं है। अगर आप मिलकर धन्धा करना चाहते हैं तो हम दो-चार ट्रक गुटका भिजवा सकते हैं। :-)
राजीव जय हो गुटखा पुराण की
राम बचाए गुटका से
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