Monday, October 13, 2008

गीत चांदनी

शनिवार रात में श्रोता बना जयपुर में तरुण समाज की ओर से आयोजित वार्षिक कार्यक्रम गीत चांदनी का । कार्यक्रम में संचालक हास्य कवि सुरेंद्र दुबे के अलावा छह गीतकार थे। इस मौके पर कानपुर के आत्म प्रकाश शुक्ल ने बुजुर्ग बाप पर एक कविता सुनाई। शुक्ल का कहना था कि एक कवि सम्मेलन में एक श्रोता बुजुर्ग ने कहा था कि ’यादातर कवि सम्मेलन में मां पर कविताएं सुनने को मिलती हैं लेकिन बाप पर कोई कविता नहीं करता । उसके बाद उन्होंने यह गीत लिखा। इसकी कुछ पंक्तियां मैं भूल गया हूं।

आंसुओं की धार है, फालतू अखबार है

गçर्दशों की मार है बूढ़े पिता की जिंदगी

देह दुबüल, संास निबüल

रेत की दीवार है बूढ़े पिता की जिंदगी इस मंदी के शोक में, टूटता आधार है.................. , बूढ़े पिता की जिंदगीइस उम्र से गुजरेंगे जब आज के युवा, तो समझेंगे वेप्यार की हकदार है बूढ़े पिता की जिंदगी जिंदगी जाती नहीं, मौत भी आती नहीं ख्ाून दे पाला जिन्हें, याद उन्हें आती नहीं बूढ़े पिता की जिंदगी।।
उन्हीं की एक और कविता है: ना तो मस्जिद न शिवालय पर खत्म होती है। भूख की आग निवाले पे खत्म होती है।।जुगनुओं लाख उड़ो पंखों में बांधे कंदील। रात ताते दिन के उजाले पे खत्म होती है।।
बलराम श्रीवास्तव, मैनपुरी ने छूने को अपनी मांं के चरण भूल गए हैं, मां की दुआ दुआ है कोई खेल नहीं गीत सुनाया। इंद्रा गौड़, सहारनपुर ने मैं सतह पर जी न पाई, एक पिंजरा देह का था, एक खुद हीबना लिया। राजेंद्र राजन, सहारनपुर ने भीनी ख्ाुशबू एक तरफ है, सारा गुलशन एक तरफ। शाहपुरा के कैलाश मंडेला ने मेवाड़ी में अकाल पर कविता सुनाई, जिसके बोल मुझे याद नहीं रहे लेकिन गीत के बोेल मुझे याद नहीं है। चित्तौड़गढ़ के रमेश शर्मा ने `ठंडी हवाएं, सौंधी खुशबू लाता है तेरा सावन´ जैसी रचनाएं पेश कर वाहवाही लूटी।
उनको नहीं सुन
पायामैं गीत चांदनी में थोड़ी देर से पहुंचा इसलिए कार्यक्रम की शुरुआत नहीं देख पाया। बाद में पता चला कि कार्यक्रम की शुरुआत राजस्थान पत्रिका के संपादक गुलाब कोठारी ने की। वैसे मुझे लगता है कि कोठारीजी सिर्फ संपादक की हैसियत से वहां नहीं गए थे, बल्कि तरुण समाज, कवि सम्मेलन और गीत चांदनी से उनका पुराना रिश्ता है, इसलिए गए होंगे। कुलिशजी तरुण समाज के संरक्षक मंडल में थे और गुलाबजी भी कवि सम्मेलनों में सक्रिय भागीदारी निभाते हैं।

Sunday, October 12, 2008

बर्थ डे और वन नाइट एट ए कॉल सेंटर

कल मेरा बर्थ डे था, दिन भर घर पर ही था, शाम को ऑफिस जाना था। निकलने से पहले दो दोस्‍तों को जेकेके कॉफी पीने बुलाया तो अचानक प्‍लान बना कि फि‍ल्‍म देखी जाए और ऑफिस से छुटटी के लिए बॉस को फोन किया और उन्‍होंने छुटटी भी दे दी। दो ऑप्‍शन थे किडनैप देखी जाए या हैलो क्‍योंकि चार लोगो में यही दो फिल्‍में कॉमन थीं, जो हममें से किसी ने नहीं देखी।
यह फ‍िल्‍म चेतन भगत की मशहूर किताब वन नाइट एट ए कॉल सेंटर पर आधारित थी, इसलिए मैंने किडनैप पर इसको तरजीह दी। कुल मिलाकर कहानी है एक कॉल सेंटर और उसमें काम करने वाले छह लोगों की। पिछली कई फिल्‍मों की तरह यह भी फ़लैशबैक में ही थी। सलमान खान को कैटरीना कैफ अजीब लगने वाली यह पूरी कहानी सुनाती है।
कहानी के छह किरदार है
पहला सिद़धार्थ यानी सरमन जोशी – कॉल सेंटर की उस टीम का हैड, अपने साथ काम करने वाली प्रियंका (गुल पनाग, से प्‍यार करता है। लेकिन प्रियंका की मां चाहती है कि उसकी बेटी किसी एनआरआई के साथ घर‍ बसाए। मां की जिद के आगे प्रियंका भी उससे शादी न करने की सोचती रहती है।
तीसरा है वरुण (सोहेल खान (- स्‍टॉरंग बॉडी वाला वरुण गुसैल है, लेकिन जो मन आता है वही करता है। फिल्‍म में हंसी मजाक करने और उसकी स्‍पीड को बनाए रखने का काम यही करता है। यूं तो वह दिलफेंक है पर आफिस में ही काम करने वाली मॉडल
ईशा कोप्पिकर को चाहता है।
पांचवां किरदार है राधिका, अमृता अरोडा के रूप में शादीशुदा भारतीय नारी। सास के तानों से परेशान है फिर भी रात भर कॉल सेंटर में काम करने के बाद दिन भर सास की सेवा करती है, पति बेंगलूर में काम करता है। आधी फिल्‍म बाद पता चलता है कि उसका पति किसी और लडकी को चाहता है।
मिलिटरी अंकल, आर्मी से रिटायर्ड हैं, बेटा नफरत करता है और अमेरिका में रहता है। उन्‍हें गम है कि वे अपने पोते को दादा के हिस्‍से का प्‍यार नहीं दे पा रहे। इस स्‍टोरी के सबसे बुजुर्ग हैं।
एक रात उनकी नौकरी पर तलवार लटकी है। सारे लोग अलग अलग निजी समस्‍याओं को लेकर परेशान हैं। सरमन और गुल पनाग की समस्‍या है कि अगली सुबह गुल को देखने के लिए लडकेवाले आने वाले हैं। उनकी लव स्‍टोरी का आखिरी दिन है।
ईशा का मॉडलिंग असाइनमेंट कैंसिल हो गया। राधिका को आज ही पता चला है कि उसके पति की जिंदगी में कोई और लडकी है। मिलिटरी अंकल को उनके बेटे ने पोते से दूर रहने की हिदायत दी है। ऐसी मनहूस रात में सभी लोग एक टवेरा में जाते हैं, पूरी बोतल गटक चुका वरुण गाडी डाइव कर रहा होता है और कार एक पुल पर लटक जाती है। मदद के लिए मोबाइल निकालते हैं तो पता चलता है कि नेटवर्क नहीं है। इतने में डेशबोर्ड के पास पडा एक टूटा हुआ बिना सिम का मोबाइल बजता है। सामने से भगवान बोल रहे होते हैं। वे चार सूत्री संदेश देते है ::: दिमाग, :::: और आत्‍मविश्‍वास।
बस सभी लोग इस संदेश को आगे फैलाने की कसम खाते हैं और इतनी देर में रेसक्‍यू टीम आ जाती है और सभी लोग बच जाते हैं।
इसके बाद सभी की जिदंगी का अंदाज बदल जाता है। पहले अपने बॉस को बहार निकलवाकर अपनी नौकरी बचाते हैं। उसके बाद सब कुछ फिल्‍म की हैप्‍पी एंडनिंग।

हां अंत में सिदधार्थ और वरुण अपनी कंपनी खोलते हैं। सिदधार्थ प्रियंका से शादी कर लेता है, वो काम छोडकर अब बीएड कर रही है, बच्‍चों की स्‍कूल टीचर बनना चाहती है। राधिका हाउसवाइफ है और उसके पति ने अपनी गलती मान ली। मॉडलिंग छोड ईशा अब एनजीओ में है और मल्‍टीनेशनल्‍स से फंड रेज करती है।

खास बात
पहली ये कि फिल्‍म कामचलाऊ है, लेकिन परिवार के साथ शायद नहीं देखी जा सकती। सीन ऐसे नहीं हैं, पर कॉल सेंटर पर आधरित फिल्‍म है इसलिए कई चीजें खुलेआम दिखाई हैं। जैसे पब के बाहर टेवेरा जैसी बडी गाडी का मिसयूज। यह लाइन आपको फिल्‍म देखने के बाद समझ आएगी।
फिल्‍म में कई चीजों का खूब एड किया है, जैसे एनडीटीवी का टॉक शो, टवेरा। सनफीस्‍ट बिसकुट और कोला की वाट भी लगाई है।
फिल्‍म में एक सॉ‍लिड आइडिया है
रेडियो मिर्ची के नाम से वरुण, राधिका के पति को रात तीन बजे फोन करता है कि हम आपके बताए गए एक एडेस पर बुके भेज सकते हैं। बताइये किसको भेजना चाहते है। माता, पिता, बहन, प्रेमिका या पत्‍नी को। उधर से जवाब आता है कि सोलानी नाम की उसकी प्रेमिका को वह बुके भेजना चाहता है। बस इधर राधिका का दिल टूट जाता है।
फिल्‍म के बीच में बहुत सारे फोन आ गए, इसलिए कई अच्‍छे डायलॉग्‍स और सीन्‍स की वाट लग गई इसलिए आपको भी कुछ दिखे तो बताएं।