Saturday, June 14, 2008

ओह ! यहां भी लगी क्रिकेट की बुरी नजर

अपन की मोर्निंग वॉक जारी है, पर अपन पार्कों में बच्चों के रवैये से दु:खी हैं। गर्मियों की छुçट्टयां चल रही हैं इसलिए पार्कों में इनदिनों बच्चों की खासी भीड़ है। बच्चे मोर्निंग वॉक कम करते हैं और खेलने का सामान साथ लाते हैं।
अपन को तो यूं ही क्रिकेट के नाम से ही गुस्सा आता है अब ये पार्क में क्रिकेट खेलते बच्चे भी दिख जाते हैं, तो सुबह सुबह पार्कों की बदहाली पर टेंशन शुरू हो जाती है। यूं तो जेडीए (जयपुर की नगर नियोजन संस्था!) ने पार्क में सबसे ज्यादा घास वाले और साफ सुथरे हिस्से को योगासन करने के लिए अधिकृत कर रखा है। इसके लिए यहां बाकायदा बोर्ड भी लगा रखा है, पर आजकल इस पर बच्चों ने कब्जा जमा रखा है। पार्क के इस हिस्से के बीचों-बीच लगे पेड़ को विकेट बनाकर खेलना शुरू कर देते हैं। यानी सुबह सुबह से ही पार्क की अच्छी खासी घास को बर्बाद करने की तैयारी। उनकी बॉल किसी को भी लग सकती है इसलिए लोग खुद ही वहां से दूरी बनाना ही उचित समझते हैं। यहां आने वाले बुजुर्गों के एक ग्रुप ने बचाव के लिए एक कार्नर तय कर लिया है।
अब तक सोचता था कि क्रिकेट देश का टाइम लॉस करने में ही लगा हुआ है, पर अब तो लगता है कि पार्कों में बची-खुची हरियाली भी इसका शिकार हो जाएगी। ईश्वर देश के इन नौनिहाल `धोनियों´ और `ईशांतों´ को सद्बुद्धि दे कि ये स्टेडियम में जाकर खेलें या अपनी घर की छत पर!

5 comments:

Anonymous said...

बच्चे भी क्या करें? उनके लिए तो स्वबविक ही है खेलना, खेले नहीं तो जो शरीर और मस्तिष्क की अतिरिक्त ऊर्जा है वो निकले कैसे? और आप शांत रखने वाली दवाएँ उन्हें नहीं दे सकते (जो अतिसक्रीय 'मेनियाक' मनोरोगियों को दी जाती हैं).
हमारा ही दोष है, की हम फ्लेट या मकान लेते समय यह तो देख लेते हैं की वहां से ऑफिस, बाज़ार, स्कूल, कोलेज, अस्पताल कितनी दूर है पर आसपास किसी पार्क, या मैदान के बारे में सोचते ही नहीं, न इसके बारे में पूछताछ करते है न इसकी मांग करते हैं. अब बच्चों को जो भी पार्कनुमा खुली जगह या खाली सड़क मिली उसी में उन्होंने खेल जमा लिया. परेशानी व्यस्क पब्लिक को होती है तो फ़िर बच्चे भी तो पब्लिक के ही हैं, उनकी ज़रूरतों के बारे मे पहले से क्यों नहीं सोचा.
बालक मेरे आपके जैसे 'बड़े' और 'समझदार' तो हैं नहीं, शायद आप ख़ुद भी नहीं थे जब आप बचपन में थे, अगर उस समय आपको दड़बेनुमा फ्लेट या छोटे से पिंजरे जैसे मकान में बचपन गुजारना पड़ता तो आपका जीवन और मानसिकता आज क्या होती?

Harinath said...

राजीव जी दुखी तो मैं भी बहुत हूँ. मैंने तो मना भी किया, लेकिन बच्चे कहाँ मानने वाले. बच्चे तो बच्चे, बडे भी उनके साथ बिना किसी की असुविधा का ध्यान रखे क्रिकेट खेलने लग जाते हैं. कुछ लोग तो मना करने पर गार्डों से मारपीट करने पर उतारू हो जाते हैं. ऐसे में जरुरी है की खेलने का समान गेट पर ही रखवा लिया जाय. जिससे की पार्क और स्टेडियम का अन्तर बना रहे. पार्क की पार्किंग भी बहुत अव्यवस्थित है. इस पर भी नियंत्रण की जरुरत है.

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

राजीव बात तो सही है लेकिन परेशानी दोनों ही तरफ है आपके जैसे मार्निंग वाक पर जाने वालों को परेशानी है तो बच्चों को खेलों के लिए जगह की।

वैसे ये मार्निंग वाक का शौक कब से लगा लिया

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

राजीव बात तो सही है लेकिन परेशानी दोनों ही तरफ है आपके जैसे मार्निंग वाक पर जाने वालों को परेशानी है तो बच्चों को खेलों के लिए जगह की।

वैसे ये मार्निंग वाक का शौक कब से लगा लिया

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...
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