Wednesday, December 31, 2008

आत्‍मविश्‍वास, घमंड और ये जरा सा अंतर

आत्‍मविश्‍वास या घमंड इन दो शब्‍दों के बीच जरा सा अंतर है। मैं यह कर सकता हूं, यह मेरा विश्‍वास है और सिर्फ मैं ही यह कर सकता हूं यह घमंड है। बात बहुत मजेदार और एक बडा सत्‍य है। इस बात को मैंने भी अपनी जिंदगी में देखा है और आप में से भी कई लोगों ने महसूस किया होगा। मैं इस बात को काफी पहले से जानता हूं और मानता हूं कि कभी कभी अति आत्‍मविश्‍वास में आदमी घमंडी हो जाता है।
यह सीधा सा फंडा मुझे एक बार फिर याद आया आमिर खान की नई फिल्‍म गजनी देखने के बाद। फिल्‍म में अपनी कंपनी एयर वायस सेल्‍यूलर के एमडी के रूप में बोर्ड मीटिंग में आमिर यह बात कहते नजर आते हैं। शायद आमिर इस बात को अच्‍छी तरह पचा चुके हैं। इसलिए वे आत्‍मविश्‍वासी है पर घमंडी नहीं।
(पर यह बात शायद अपने शाहरुख और यशराज बैनर वाले नहीं जानते। अपना सिक्‍का चलता देख सिर्फ 18 दिनों में बिना मेहनत के लिखी गई कहानी पर एक अवश्विसनीय फिल्‍म रब ने बना दी जोडी बना दी। और ये घमंड उन्‍हें ले बैठा)
नया साल चंद घंटों में आने वाला है। हम इसमें यह वचन लें कि अपने आत्‍मविश्‍वास को घमंड में न बदलने दें और जिंदगी को यूं ही चलने दें।

पथ पर
चलते रहो निरंतर.
सूनापन हो
या निर्जन हो
पथ पुकारता है गत-स्वन हो
पथिक,
चरण ध्वनि से
दो उत्तर
पथ पर
चलते रहो निरंतर ....!

(जनकवि त्रिचोलन के संकलन से साभार)

सभी को नववर्ष मंगलमय हो इसी उम्‍मीद के साथ।

3 comments:

cartoonist ABHISHEK said...

yaani gajnee poori tarah dilo-dimag par chhayee huee hai..
aamir se jyada ASIN ne mujhe prabhavit kiya...

Harinath said...

राजीव जी. आपको भी नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं. कामना है कि इस नव वर्ष में आप एक से दो हो जायें और गजनी के प्रभाव से बाहर निकल पायें.

shivraj gujar said...

kya baat hai rajeev. bahut hi badiya. jeevan ka falsafa yahee hai. yah aatmviswas banaye rakhana.