Thursday, January 22, 2009
आओ स्लमडॉग मिलेनियर देखें
जयपुर में साहित्य सम्मेलन शुरू होने वाला था। पहले दिन स्लमडॉग मिलेनियर वाली किताब “क्यू एंड ए” के विश्वास स्वरूप को आना था। मैं किताब नहीं पढ पाया इसलिए मैंने सोचा कि स्लम डॉम मिलेनियर देखकर ही उसकी कहानी का अंदाजा लगा लिया जाए ताकि उनको सुनने और समझने में कोई दिक्कत न आए। इत्तेफाक की बात थी कि ऑफिस से लौटते समय किसी ने कहा कि नेट पर स्लमडॉग पूरी है, चाहिए क्या।
बस मैं ले आया और रात भर जगकर मैंने स्लमडॉग देखी।
फिल्म अच्छी है बस कुछ बात खटकती है जिसे आगे आप पढेंगे, बस एक चीज है कि दुनिया में वो चर्चा में आई जिसमें हमारी गरीबी दिख रही है, मुंबई की गंदगी दिख रही है। पर गालियों को छोड दिया जाए तो फिल्म अच्छी है।
आइए अब आपको बताऊं फिल्म की कहानी
जमाल मलिक एक मुसलिम बच्चा है जो मुंबई की एक झुग्गी बस्ती में है, दंगों में हिंदुओं ने उसकी मां को मार दिया। उसका एक बडा भाई है, जो अब किसी डॉन के लिए काम करता है और वह खुद किसी कॉल सेंटर में चाय सर्व करता है। इत्तेफाक से कौन बनेगा करोडपति में पहुंच जाता है। यहां अनिल कपूर (शो के प्रस्तोता) उससे सवाल पूछ रहे हैं और एक दिन का एपिसोड खत्म होने तक एक करोड रुपए जीत चुका है। अनिल कपूर को जमाल पर शक हो जाता है कि एक चाय वाला “हू वान्ट़स टु मिलेनियर” में कैसे जीत सकता है। इसी शक में अनिल उसे पुलिस के हवाले कर देता है और पुलिस से पूछताछ में पता चला है कि उसकी जिंदगी कैसे गुजरी।
हर सवाल का जवाब कहीं न कही उसकी जिंदगी से जुडा होता है और कहानी आगे रफ़तार पकडती है। कहानी फ़लैशबैक में चलती है।
मां की मौत के बाद जमाल और उसके भाई सलीम को बच्चों से भीख्ा मंगवाने वाले गिरोह के लोग पकड लाते हैं। वो जमाल की आंख निकालकर अंधा कर ही रहे होते हैं कि दोनों भाई वहां से बाहर निकलते हैं और देश भर में घूमते हुए वापस दिल्ली पहुंचते हैं। इस बीच में छोटी जिंदगी में अनाथ बच्चे जिंदगी के बहुत सारे तजुर्बे प्राप्त करते हैं।
बच्चों की बाल सुलभ अदाएं फिल्म की कहानी के साथ रोचकता बनाए रखती है। फिल्म में जमाल के रूप में तीनों ही बच्चों ने बहुत ही बेहतरीन अभिनय किया है।
कहानी के साथ साथ बाद में पता चलता है कि जमाल सही था और उसने कोई फर्जीवाडा नहीं किया। अगले दिन शो फिर होता है और जमाल दो करोड रुपए जीत जाता है।
वैसे यह फिल्म भारत में आज रिलीज होने को है। मैंने अंग्रेजी वर्जन देखा है।
अब इसकी एक कमजोरी
यह बात इस फिल्म को गोल्यडन ग्लोब मिलने के बाद जयपुर में पत्रकारों से बातचीत में फिल्म के ही एक करदार इमरान खान ने भी कही। कि झुग्गी का एक बच्चा बेधडक अंग्रेजी बोलता है और हू वान्टस टु मिलेनियर में पहुंच जाता है। यह बात हिंदी के दर्शक पचा नहीं पाएंगे। यही बात मुझे कई बार क्लिक की। पर फिल्म अंग्रेजी में है इसलिए हो सकता है ऐसा करना पडा हो अब हिंदी वर्जन में क्या होगा यह देखने की बात है।
फिल्म का म्यूजिक बहुत ही अच्छा है, जय हो और रिंगा रिंगा रहमान के खास अंदाज में हैं। पूरी फिल्म में काम लिया गया बैकग्राउंड म्यूजिक भी अच्छा है।
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9 comments:
साहित्य समारोह में
देख रहे हैं फिल्म्ा
जय हो जय जय
जयपुर वालों की।
ham bhi dekhenge is film ko. golden glob ne jigyaasa badha dee hai. vaise mumbai ki gareebee par kai filme ban chuki hain.
ab to dekhani hi padegi film. pata to chale basti ka dog kaise karor pati ban gaya.
जब तक 'स्लम डॉग' देख नही लेते कुछ न बोलेंगे.......
ab to film dekhni hi padegi...aapne utsukta badha di hai
ab tak film par mishrit pratikriyaaen mili par ab aapne kuchh saaf tasveer saamne rakhi hai. vaise film me vo sab kyon na aaye jinhe ham roz dekhte hai par dekhne se bachte bhi hai.
agar gareebi hai to dikhegi bhi charcha me bhi aayegi . meera nayar salam bombay bana hi chuki hein slumdog usi ki kadi hai.
भाई अभी तक देखी नहीं है लेकिन देखने की तमन्ना है। देखकर बताता हूं कैसी है। लेकिन यह मूवी ऑस्कर तो जरूर जीतेगी। जय हो.....
abhi tak maine bhi nahi dekhi aur rajeev aapne mujhe pen drive mein film dene ka waada bhi kiya tha, to abde hi dijiyega.
neelima
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