ऑफिस के लिए निकला ही था कि किसी ने हाथ देकर लिट मांग ली। मेरे बैठाते ही भाई ने अपनी कहानी सुनाना शुरू कर दिया। कहने लगा कोटा से आ रहा हूं दौसा जाना है, जहां तक जाओ छोड़ देना। मैंने कहा, कोटा से पैदल। बोला कि मजदूरी को लेकर ठेकेदार से लड़ाई हो गई, इसलिए छोड़कर आ गया। मैंने कहा तो पैदल क्यूं आ गए। बोला कि साहब पैसे नहीं थे, इसलिए आ गया। मैंने कहा भाई ट्रेन तो सरकारी है, उसी में आ जाते। बोला बैठा था पर टीटी आ गया। पैसे मांगने लगा, मेरे पास थे नहीं तो लप्पड़ मार दिया। बस उतर कर पैदल ही चला आ रहा हूं। छठा दिन है चलते-चलते। मुझसे रहा न गया, पीछे मुड़कर उसकी शक्ल देखी तो कंधे पर एक पीले रंग की स्वापी थी और होंठ एकदम फटे हुए, सूखे। मैंने दस दस के दो नोट निकाले और बाइक गांधीनगर स्टेशन की तरफ मोड़ दी। मैंने कहा सामने गांधीनगर स्टेशन है। 13 रुपए के आसपास का टिकट होगा चले जाओ ट्रेन से। बोला भाई साहब दो-तीन दिन से ठीक से कुछ खाया भी नहीं है, पैदल जाऊंगा तो किसी गांव में खाना भी हो जाएगा। मैं रास्तेभर सोचता रहा कि यार आज की दुनिया में ऐसा भोला इंसान भी है क्या ?
इतने में मेरे ऑफिस की गली आ गई और मैंने उसे आगे का रास्ता बताकर विदा ली।
- जयपुर से कोटा की दूरी करीब 2५०किमी है।
5 comments:
waise vishwaas to kam hi hota hai, yadi yeh sach hai to hum soch sakte hai ki INDIA ki HDI me 134 rank kyo hai...
dravit kar diya aapne.pichle dinon aisi hi ek stri malviya nagar mein mili thi jo pati ke saath boondi se aayee thi.uska pati subah se use vahin chodkar kaam ki talash mein gaya tha . vah bhookhi pyasi fati fati aankhon se uska rasta dekh rahi thi. kuch sahayta kar kartvya ki itishri se zyada kuch nahin kar saki.
राजीव, मानना होगा आप आज भी इतना जमीन से जुड़े है, ऐसे लोगों से मिल लेते हैं उनकी सुन लेते हैं। हां, खैर हम सब यही कर सकते हैं कि उनकी कुछ आर्थिक मदद कर दें
कौन सच्चा है, कौन झूठा... यह हम नहीं जान सकते...
कई बार जो चेहरे से सच्चा लगता है, वो अव्वल दर्जे का झूठा और चेहरे से झूठा लगने वाला कई बार वाकई विप्पति झेल रहा सच्चा इन्सान होता हैं...
आपके साथ घटी घटना में हमारा फर्ज सिर्फ सहायता करना होता है, इन लोगों के साथ आपका इमोशन होना वाकई काबिले तारीफ हैं...
is duniya me har kism k log hain
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