Tuesday, October 6, 2009

एक स्वाभिमानी की कहानी

ऑफिस के लिए निकला ही था कि किसी ने हाथ देकर लिट मांग ली। मेरे बैठाते ही भाई ने अपनी कहानी सुनाना शुरू कर दिया। कहने लगा कोटा से आ रहा हूं दौसा जाना है, जहां तक जाओ छोड़ देना। मैंने कहा, कोटा से पैदल। बोला कि मजदूरी को लेकर ठेकेदार से लड़ाई हो गई, इसलिए छोड़कर आ गया। मैंने कहा तो पैदल क्यूं आ गए। बोला कि साहब पैसे नहीं थे, इसलिए आ गया। मैंने कहा भाई ट्रेन तो सरकारी है, उसी में आ जाते। बोला बैठा था पर टीटी आ गया। पैसे मांगने लगा, मेरे पास थे नहीं तो लप्पड़ मार दिया। बस उतर कर पैदल ही चला आ रहा हूं। छठा दिन है चलते-चलते। मुझसे रहा न गया, पीछे मुड़कर उसकी शक्ल देखी तो कंधे पर एक पीले रंग की स्वापी थी और होंठ एकदम फटे हुए, सूखे। मैंने दस दस के दो नोट निकाले और बाइक गांधीनगर स्टेशन की तरफ मोड़ दी। मैंने कहा सामने गांधीनगर स्टेशन है। 13 रुपए के आसपास का टिकट होगा चले जाओ ट्रेन से। बोला भाई साहब दो-तीन दिन से ठीक से कुछ खाया भी नहीं है, पैदल जाऊंगा तो किसी गांव में खाना भी हो जाएगा। मैं रास्तेभर सोचता रहा कि यार आज की दुनिया में ऐसा भोला इंसान भी है क्या ?
इतने में मेरे ऑफिस की गली आ गई और मैंने उसे आगे का रास्ता बताकर विदा ली।
- जयपुर से कोटा की दूरी करीब 2५०किमी है।