Wednesday, February 25, 2009

स्‍लमडॉग से आगे की कहानी है दिल्‍ली-6



दिल्‍ली 6 वहां से शुरू होती है, जहां स्‍लमडॉग मिलेनियर खत्‍म होती है। स्‍लमडॉग में भारत की गंदगी और गरीबी दिखाई है वहीं दिल्‍ली 6 में भारतीयों का प्‍यार दिखाया गया है।
फिल्‍म की कहानी कुछ इस तरह है कि रोशन यानी अभिषेक बच्‍चन अपनी दादी यानी वहीदा रहमान को भारत छोडने आता है। दादी की अंतिम इच्‍छा है कि वह अपने देश में अपने मकान में ही मरे। घरवाले सभी अमेरिका रहते हैं पर वो अपने देश में ही मरना चाहती हैं। रोशन दादी को लेकर भारत आता है और यहां कि संस्‍कृति से रूबरू होता है और पडोसियों और मोहल्‍ले वालों के प्‍यार से रूबरू होता है।
फिल्‍म की कहानी को आगे बढाने के लिए सहारा लिया गया है काले बंदर और रामलीला का। जिसकी कहानी स्‍टोरी के साथ साथ आगे बढती रहती है। इसी दौरान रोशन को अपनी पडोसन बिटटू से प्‍यार हो जाता है। बिटटू सीधी साधी भारतीय लडकी है, जो अपनी खुद की पहचान बनाना चाहती है, वह इंडियन आइडल में सलेक्‍ट होकर सिंगर बनना चाहती है। पर घर शादी के लिए पिता का विरोध भी नहीं कर सकती, इसलिए जहर पीने का डामा करती
है।
उधर रोशन भारत को समझने की कोशिश करता है, अपनी दादी की मदद के लिए इतने पडोसियों को देखकर कहता है कि वो अमेरिका में अपनों के पास थीं या यहां अपनों के पास हैं।
बुराई का प्रतीक काला बंदर फिल्‍म का मेन कान्‍सेप्‍ट है, इसी के जरिए डायरेक्‍टर ने कई संदेश देना का महत्‍वपूर्ण काम किया है।
बस पूरी फिल्‍म में कई गडबडझाले हैं, जैसे काले बंदर वाली मेन ईवेंट अगर 95 के आसपास की थी, तो टीवी में जिन दूसरी खबरों का इस्‍तेमाल किया जाता है, जैसे चंद्रयान 2008 की हैं। कहानी उसी समय की बताकर कुछ चीजे नए जमाने की हैं जैसे दिल्‍ली मेटो। पर कुल मिलाकर राकेश मेहरा ने एक काले बंदर के सहारे समाज को कई बडे संदेश देने का काम किया है। इस फिल्‍म में भी बहुत सारी दूसरी फिल्‍मों की तरह कहानी को स्‍थापित करने के लिए टीवी चैनलों का भरपूर प्रयोग किया गया है। पर मंकीमैन के समय आईबीएन सेवन दिखाते हैं, खटकता है। गाने बहुत ही कर्णप्रिय हैं और बोल बहुत प्‍यारे हैं। मसकली और गेंदाफूल तो बजोड हैं, वैसे सही मायनों में आस्‍कर की एंटी के लिए एक संपूर्ण भारतीय फिल्‍म तो यही है। सही मायने में इस दौर में आई ये दो फिल्‍में स्‍लमडॉग और दिल्‍ली 6 मिलाकर भारत की सही तस्‍वीर बनाती हैं।
फिल्‍म में कई नए प्रयोग हैं, गाने हीरो हिरोइन नहीं गाते शायद बैकग्राउंड में चलते हैं। अपने करियर में अभिषेक इस फिल्‍म में सबसे खूबसूरत नजर आए हैं, फिल्‍म में भी अपनी कंपनी मोटोरोला के हैंडसेट का प्रचार करते रहते हैं। सीधी सादी से कहानी को खूबसूरती से पिरोया है। जैसे कि दिल्‍ली 6 टाइटल का मतलब पिनकोड के हिसाब से दिल्‍ली के चांदनी चौक इलाके से है उसी तरह कई चीजें सामान्‍य सी हैं पर उनके पीछे सामान्‍य सा कान्‍सेप्‍ट है, जैसे चंद्रयान को सेक्‍स का प्रतीक बताया गया है।

9 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

स्‍लमडॉग मिलेनियर नहीं देखी है पर दिल्‍ली 6 जरूर देखी जाएगी।

Dr. Amar Jyoti said...

दिल्ली 6 तो स्लमडॉग से बेहतर लगी।

neel shekhar hada said...

आपने स्‍लमडॉग मिलेनियर और दिल्‍ली 6 देखी.....अब समय निकाल कर यहाँ
http://shekharx044.blogspot.com/
भी आयें ,देखें और दो शब्द अवश्य लिखें. इंतजार रहेगा.

अभिषेक मिश्र said...

Acchi samiksha.

अनिल कान्त said...

देल्ही -६ कई मामलों में बेहतर है

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

पर मुझे तो कईयों ने कहा फिल्म उतनी अच्छी नहीं है, जितना प्रचार किया जा रहा है। अब क्या करे, फिल्म देखी जाए या नहीं

rajendra yadav said...

achha hai

Dileepraaj Nagpal said...

shukriya...bina ticket movie dekh li hamne to...kabhi samiksha paper ke liye bhi likh dijiye...

कडुवासच said...

... समीक्षा प्रभावशाली है!!!