Monday, October 1, 2007

रिलायंस फ्रेश का विरोध क्‍यूं


बहुत दिनों से रिलायंस फ्रेश का विरोध किया जा है। अब मैंने इस मुद़दे पर लिखने का मानस बनाया उत्‍तरप्रदेश में कंपनी कि इस घोषणा के बाद कि वह उत्‍तर प्रदेश में अपने सभी स्‍टोर बंद कर रही है। कंपनी की मानें तो इससे कंपनी के करोडों रुपए के नुकसान के साथ-साथ प्रदेश के 900 लोग भी बेरोजगार हो जाएंगे। अब पडताल कीजिए कि रिलायंस के इतने कडे फैसले की वजह क्‍या हो सकती है। शायद इस फैसले से शेयर बाजार में धूम माचने वाली कंपनी यह दिखाना चाहती है कि जिसे विकास चाहिए करें, वह विवाद में नहीं पडना चाहती। अगर आपको रिलायंस नहीं चाहिए तो कोई बात नहीं, न वो आपके प्रदेश में निवेश करेंगे न ही आपके यहां लोगों को रोजगार मिलेगा।
मैं खुद अब तक इस नतीजे पर नहीं पहुंचा हूं कि क्‍या रिलायंस फ्रेश के तेजी से बढते कदमों से क्‍या किसी को नुकसान हो सकता है, सीधे बोलें तो क्‍या उपभोक्‍ता को कोई नुकसान है इससे। मैंने पिछले दिनों जयपुर में ही बहुत सारे लोगों से बात की उनमें ढेर सारे वो लोग भी शामिल हैं, जो पहले लालकोठी ( जयपुर की सबसे बडी सब्‍जी मंडी) से सब्‍जी खरीदते थे और आजकल रिलायंस फ्रेश की शरण में हैं। अब ज्‍यादातर लोग इससे खुश हैं, पार्किंग के लिए परेशान नहीं होना होता। एसी मार्केट से सब्‍जी खरीदते हैं और दाम भी बाजार के बराबर या कम हैं। कम से क्‍वालिटी तो बेशक अच्‍छी है। मुझे अभी तक एक-आध लोग ही मिले जो इसकी बुराई करते नजर आए। अब विरोधियों का तर्क सुनिए कहते हैं कि अभी तक तो ठीक है कि ये सस्‍ती रेट पर सब्‍जी दे रहे हैं। उनका कहना है कि जब ये मार्केट में जम जाएंगे यानी कि जब चारों तरफ रिलायंस फ्रेश ही होगा और ये छुटभैया टाइप के दुकानदार और सब्‍जी वाले भाग चुके होंगे तो वो पुरा मुनाफा वसूलेंगे। हो सकता है उनकी बात में दम हो, इस बात के पांच दस फीसदी चांस हैं। लेकिन मेरी समझ में एक बात नहीं आई कि लोग ये क्‍यूं नहीं समझ रहे कि क्‍या अकेले रिलायंस बाजार को खा जाएगी। हां वो इस कारोबार में उतरी है तो बेशक वो मुनाफा तो कमाएगी ही, लेकिन बाजार के और महारथी क्‍या उसे एक तरफा कमाने देंगे। आप क्‍यू भूलते हैं बिग शॉपर, स्‍पेंसर और भारती एयरटेल और वॉलमार्ट को। क्‍या ये मैदान में नहीं हैं। पंजाब में तो किसान सहकारी संस्‍था बनाकर सीधे मैदान में हैं।
इसलिए मुझे नहीं लगता कि रिलायंस फ्रेश से डरने की जरूरत है, एक आध दुकानदार सब्‍जी वाले को बेशक नुकसान पहुंच सकता है, लेकिन आजतक ऐसा नहीं हुआ कि एक से ज्‍यादा प्रतिस्‍पर्धी होने पर ग्राहक को कभी किसी कीमत पर नुकसान हुआ हो।
मैं चाहता हूं कि समर्थक भले प्रतिक्रिया देने में आलसीपन दिखा दें, क्‍यूंकि मैंने खुद ही इसे एक तरफा कर दिया है पर कम से कम विरोधी तो अपना पक्ष दें, ताकी मैं भी अपना मत बदलने को विवश हो जाऊं।
तो हो जाइये इस बहस में शामिल !

5 comments:

Sanjay Tiwari said...

आप थोड़ा गहराई से पढ़िये लिखिए रिटेल के व्यवसाय को समझने की कोशिश करिए. इतनी जल्दी कोई निष्कर्ष मत निकालिए.

अनुनाद सिंह said...

मैं भी यही सोचता हूँ कि रिलायंस फ्रेश का विरोध अविवेकपूर्ण है। यह वैसे ही है जैसे पहले कम्प्यूतर का विरोध हुआ; उद्योग-धन्धे लगाने के लिये प्रोत्साहन के बजाय लाइसेंस का हतोत्साहन दिया गया; 'वर्क कल्चर' के बजाय 'हड़ताली कल्चर' को बढ़ावा दिया गया।

रिलायंस फ्रेश एक नयी व्यवस्था को जन्म देने वाला कदम था। इसका स्वागत होना चाहिये था। इसके दूरगामी परिणाम होते।

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

या तो पूरे दिल से विऱोध करिए , नहीं तो पूरे दिल से रिटेल और एमएनसी का स्वागत करिए। क्यों इस पर कोई साफ नीति नहीं बनती है।

cma said...

mai bhi bhaidr chal chaltihue releaince fresh tak pahuchi thi magar jaldi hi aankho ki patti kul gai. jaha tak vegetable ki baat hai to mai iske favour mai nahi hu. jo quality humai sabji mandi mai milti hai wo yaha to nahi mili so hum to vapas apni mandi mai hi jaane lage.
ha baki items mai jarur kuch discount milta hai. shayad wo sahi ho

Sagar Chand Nahar said...

राजीवजी
इस विषय पर एक बार मैने भी यही कहना चाहा था, पर शायद मैं सही समझा नहीं पाया।
फ्रेश से सब्जी क्यों ना लूं