Tuesday, October 23, 2007

रद़दी पेपरवाला !


अखबार में काम करता हूं, इसलिए देर से घर लौटता हूं। अभी शादी नहीं हुई और जयपुर में छोटे भाई के साथ ही रहता हूं, डांटने वाला कोई नहीं है तो रात को ऑफिस के बाद पंचायती के लिए भी रुक जाता हूं, इसलिए अमूमन एक बजे के आसपास ही घर लौटता हूं। आजकल यह ब्‍लॉगिंग की आदत और लग गई है तो रात को सोते सोते अमूमन चार तो बज ही जाते है।
अब आप रूबरू होइये मेरी पी‍डा से....
दिवाली का त्‍योहार आने वाला है और आजकल घरों मे सफाई का दौर है। इस लिहाज से कबाडियों का सीजन है, इसलिए आजकल पौ फटते ही कबाडी सडकों पर दिखने लग जाते हैं। अब शुरू होती है मेरी समस्‍या
बस कबाडी गली में घुसा नहीं कि आवाज लगाना शुरू कर देता है, रददी पेपरवाले, रददी पेपरवाले....। और मेरी नींद अमूमन रोज इसी आवाज को सुनकर टूटती है। ये भाईसाहब इतनी जोर से चिल्‍लाते हैं कि आप कितना भी तकिया कान पर दबा लें या चददर मुंह पर रख लें, लेकिन ये कमबख्‍त आवाज इसे पार करके कान तक पहुंच ही जाती है। इतना सब करके मैं परेशान हो जाता हूं और फिर चाय पीकर अखबार पढकर भी दुबारा नींद नहीं आती।
रोज सोचता हूं कि या तो धमकाकर या समझाकर इसे मेरे घर के नीचे खडे होकर रददी पेपरवाला चिल्‍लाने से रोक दूं। पर अब तक हिम्‍मत नहीं कर सका सोचता हूं यार गरीब आदमी का बिजनेस है, चिल्‍लाएगा नहीं तो पब्लिक को कैसे पता चलेगा कि कबाडी आया है। खैर बाकी सबके लिए भले ही इसका मतलब कबाड से हो पर मुझे यह रददी पेपर वाला शब्‍द ही द्विअर्थी सा सुनाई पडता है, और शायद इसीलिए मैं लाख कोशिश करके भी सो नहीं पाता, लगता है जैसे कोई रददी पेपरवाला कहकर चिढा रहा हो।
अब कोई और पत्रकार पढ रहा हो और उसने भी अपनी बडी सी जिंदगी में यह छोटी सी बात अनुभव की हो तो भैया जरूर सूचित करना। कोई उपाय सोचा हो तो भी बताना और अगर रददीवालों की यूनियन की मीटिंग बुलाकर उनको आवाज में कोई और शब्‍द जैसे कबाडवाला या रददीवाला कहलवाने का सुझाव हो तो भी बताइएगा। हो सकता है दो-चार सौ मीडिया वाले अगर जोर डालकर इनकी यूनियन को बोलें तो ये बेचारे समझ जाएं। आखिर कबाड में सबसे ज्‍यादा तो अखबार ही होते हैं।

12 comments:

Udan Tashtari said...

अभी का तो पता नहीं मगर जब हम वहां थे तब एक समय आया था कि हम सोचते थे कि चलो, अब खरीद ही लिया है तो रद्दी में बेचने के काम आयेगा. :)

अनूप शुक्ल said...

आपकी पीड़ा जायज है।

Atul Chauhan said...

वैसे रद्दी वाले और पेपर वाले फर्क ज्यादा नहीं है। क्योंकि 'खवर' रद्दी होने से पहले और बाद में दोनों ही बार 'बिकती' है। इसीलिये नो टेंशन ……।

अनिल रघुराज said...

क्या बात पकड़ी है आपने पेपरवाला रद्दी..रद्दी पेपरवाला। वाकई संपादकों और चैनल प्रमुखों ने ज्यादातर पत्रकारों की यही हालत कर रखी है। मैं आपके आधे दुख में साथ हूं क्योकि रात 1 बजे तक मैं भी घर पहुंचता हूं। आसपास कबाड़ियों की दुकान है। लेकिन वो चिल्लाते नहीं।

Ashish Maharishi said...

कुछ ऐसा ही इधर भी है राजीव

cartoonist ABHISHEK said...

Rajeevji, RADDIWAALA SUBHAH VAHI BECH RAHA HAI JO RAAT KO HUM RACH KAR AATEN HEN.AAM AADMI KI KHABAR JISME NA HO, VE AKHABAAR SUBAH KYA KAHLAYENGE??????????

Sanjeet Tripathi said...

बहुत खूब!!

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

अखबार इन दिनों पढ़ाते ही क्या हैं रद्दी खबरें ही ना तो रद्दीवाले ने पेपर कह दिया तो क्या गलत है। दीपावली तक आपकी नींद अखबार वाले ऐसे ही खराब करते रहे :-)

manglam said...

आपने उन हजारों लोगों की पीड़ा को जुबान दे दी है, जो बाकी लोगों को बाखबर करने के लिए अखबार में देर रात तक जुटे रहते हैं। अच्छा लगा।

Abhishek Sharma said...

Achchha hasya hai... agar raddi paper wala nahi banna tho e-media me lapak lo.. warna soch kar khush ho ki ... yahan lashon(mari hui news) ki bhi kimat hai...

pradeep said...

isi bat ko lekar jok bhi famous hai. vaisy dil pe mat lo aam adami is bat ko pakad nahi pata aur hamari ijjat bachi rahti h.

cma said...

shayad ees mamle mai music aapki problrm solve kar sakta hai. 24 hrs. fm ka labh utaiye aur usse chalu rakhiye jo raddi wale ki aawaz aap tak nahi aane dega. ha bas aapne kaan se thodra dur rakhna