Tuesday, October 9, 2007
मायावती को भी लगी परिवारवाद की बीमारी
राजनीति ने अच्छे अच्छों को "ठीक" कर दिया है। फिर मास्टरनी मायावती कोई दूसरी मिटटी की थोडे ही हैं।
देर से सही लेकिन सत्ता में रहते हुए माननीय कांशीराम की सेवा की आड में मायावती ने सही टाइमिंग के साथ छोटे भाई आनंद कुमार को लखनऊ की रैली में मंच पर लाकर राजनीति में आगे करने का काम किया है।
यूं तो राजनीति में परिवारवालों का आगे आना न तो नया मामला है न इसमें चिंतित होने जैसी बात। पर दलित राजनीति और कांग्रेस के परिवारवाद को कोस कोसकर आगे बढी मायावती को यह शोभा नहीं देता।
वहीं उनके दलित वोटरों और कार्यकर्ताओं से जुगाडे गए करोडों रुपए से बना बहुजन प्रेरणा स्थल, जिसे आजकल बहुजन प्रेरणा टस्ट बना दिया गया है, उसके सर्वेसर्वा भी श्रीमान आनंदजी ही हैं।
मायावती ने कितनी साफगोई से जनसभा में कहा कि पार्टी के कामकाज और व्यस्तता में मेरी सेहत गिर गई और इस दौरान आनंद ने मुझे खून दिया और बसपा के मिशन को आगे बढाया। नोएडा में तैनात भाई ने अपनी सरकारी नौकरी भी छोड दी। मायावती का कहना है कि आनंद ने कांशीराम की भी खूब सेवा की।
अब यह लगभग तय है कि बसपा में माया के वारिस यही होंगे। सोश्यल इंजीनियरिंग के "जनक" सतीश चंद्र मिश्राजी आप भी खुद को ज्यादा होशियार मत समझिए। हो सकता है मायामेम ने आपकी बढती ताकत को कंटोल करने के लिए यह कार्ड खेला हो!
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4 comments:
मायावती धीरे-धीरे पूरे फॉर्म में आ रही हैं। देखिए पांच साल में कहां से कहां पहुंच जाती हैं।
दरअसल जो काम बातों से नहीं होता वो अक्सर सहानुभूति से हो जाया करता है...मायावती ने मंगलवार को अपने भाषण में बार बार खुद को कांशीराम की एकमात्र उत्तराधिकारी कहा...जाहिर है...अब वक्त खुद के उत्तराधिकारी की तलाश का है...सो परिवार के लोगों को सामने लाकर सहानुभूति बटोरने के अलावा उनके पास रास्ता ही क्या बचा है...आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा.....धन्यवाद
hume nahi pata tha sir ki aap rajniti mai bhi mahir hai. aacha laga dekhar ki aap all rounder bante ja rahe hai. waise rajniti aur mera dur dur tak koi wasta nahi hai.so sorry i cant write any comment on mayawati. \keep going
ये तो नेचुरल ही है. अब इतना बडा सूबा और उसकी पूरी सूबेदारी सम्हालने के लिये मदद तो चाहिये ही. अपनों से ही ली जाये तो बेहतर्
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