Friday, October 5, 2007
दिल दोस्ती ईटीसी
मेरे लिए कोठे और कॉलेज में अंतर करना मुश्किल था। सिर्फ इस लाइन की वजह से मैंने दिल दोस्ती ईटीसी देखने का प्लान बनाया। रिलीज के ठीक सात दिन बाद मैंने यह फिल्म देखी। हालांकि फिल्म शायद चल नहीं पाई, लेकिन फिल्म जिस कॉलेज लेवल वाले यूथ के लिए बनाई गई है। उसे पसंद आएगी इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए।
फिल्म की कहानी दो युवकों के इर्द गिर्द है। पहला है् संजय तिवारी के रूप में श्रेयस तलपडे और दूसरा अपूर्व के रूप में इमाद शाह। दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसआर कॉलेज और उसके बॉयज हॉस्टल के इर्द गिर्द बुनी गई इस कहानी में तीन नायिकाओं ने स्टोरी को आगे बढाया है। इन दोनों युवाओं का लक्ष्य अलग है, स्टाइल अलग है और दोनों ही ने अपनी प्रतिभा का अच्छा उपयोग किया है। बिहार की मध्यमवर्गीय पृष्ठभूमि वाला संजय तिवारी, जहां स्टूडेंट पॉलीटिक्स में जाना चाहता है। अपूर्व मेटोसेक्सुअल यूथ के रूप में रईस बाप की औलाद है, जो लडकियों के ईर्द गिर्द ही रहता है। हॉस्टल में रैगिंग से बचने के लिए दिन भर हॉस्टल में सोना और रात भर कोठे में एक वेश्या वैशाली यानी स्मृति मिश्रा के साथ गुजारना उसका काम है। इस बीच अपने दोस्त संजय तिवारी से एक साथ तीन लडकियों को उसके चुनाव जीतने वाले दिन तक एक लडकी को पटा लेने की शर्त कहानी को आगे बढती है।
इस बीच में दो और लडकियां आती है एक संजय तिवारी के साथ साउथ दिल्ली की रईस बाप की औलाद प्रेरणा जो मिस इंडिया बनना चाहती है। हकीकत में मिस इंडिया रह चुकी निकिता आनंद ने यह भूमिका अच्छी तरह निभाई। स्कूल गर्ल के रूप में अपूर्व का साथ देने वाली किन्तु यानी इशीता शर्मा ने भी चुलबुले अंदाज में बॉयज आलवेज बॉयज डायलॉग कई बार बोला।
दोनों ही हीरो फिल्म की अंतिम रील तक अपने अपने लक्ष्य तक पहुंच जाते हैं। लेकिन चुनाव जीतने पर संजय को पता चलता है कि उसकी प्रेमिका प्रेरणा अब उसकी नहीं रही। खबर सुनकर संजय तिवारी हॉस्टल से बाहर निकलता है और अंधेरे के बाद अपूर्व के मुंह से सुनाई देता है।
संजय को किसने मारा मैंने बस ने या खुद उसने और फिल्म एक दुखांत पर खत्म हो जाती है। अपूर्व के रूप में इशाद शाह ने जबरदस्त एक्टिंग की है, उनमें पिता नसरुद़दीन शाह की तरह दम है (वैसे यह बात फिल्म देखकर निकलने तक मुझे नहीं पता थी कि
वह नसरुददीन शाह का बेटा है।) पांच सात साल पहले तक कॉलेज पास कर चुके सभी लोगों को फिल्म पसंद आएगी। एक-आध गालियां आपकी झेलनी पड सकती है। बीयर पीते स्टूडेंट़स, बॉयज हॉस्टल में लडकियां व घर पर टयूशन की आड में प्रेम संबंध झेलने की क्षमता हो तो आप बेझिझक फिल्म देखने जा सकते हैं।
गाने तीन हैं, बस में फिल्माया गया एक गाना तो रंग दे बसंती की खलबली खलबली की याद दिलाता है। प्रकाश झा के लिए फिल्म का डायरेक्शन मनीष तिवारी ने किया है। संपादन अच्छा है, फिल्म बोर नहीं करती।
(यह लेखक की पहली फिल्म समीक्षा है अपने विचारों से अवगत कराएं)
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
राजीव, अच्छी कोशिश है। आप फिल्म समीक्षा भी लिखने लगेंगे खासकर आजकल जिस तरह की समीक्षा हिन्दी के अखबारों में छपने लगी है उसके बाद तो लग रहा है कि आप अच्छा लिख सकते हैं।
kya sir kya behtrin kiha hai aapne. mujhe gussa aa raha un repoters pe jinhone news apper mai ees movie ki aisi samiksha ki, ki mujhe film dekhne ka moond change karna padra. but have made me to c this movie. so soon i'll c it.
thanks
Post a Comment