Tuesday, December 2, 2008

सबसे अलग है इस बार का राजस्थान चुनाव


राजस्थान में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं। इस बार चुनावी और जातिगत समीकरण उलट पुलट हैं। दोनों पार्टियां महीनों से प्रत्याशी खोजने के लिए पता नहीं कौन कौन से दावे कर रही थी, युवा होगा, क्रिमिनल केसेज वाला नहीं होगा। लेकिन चुनाव आते आते चाहे भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ये ही बोलने लगे कि प्रत्याशी का आधार जिताऊ होगा।
यानी बात साफ है कि पार्टियां खुद नहीं चाहतीं कि साफ सुथरी छवि वाले आदमी को प्रत्याशी बनाया जाए।
घोषणा पत्र देखिए भाजपा ने 29 नवंबर और कांग्रेस ने 22 नवंबर को अपने घोषणा पत्र रीलिज किया। यानी 4 दिसंबर को मतदान है और चुनाव अब तक बिना घोषणा पत्र के लिए लडा जा रहा था। चुनाव घोषणा पत्र आए तो भाजपा ने गरीबों को 2 रुपए किलो और मध्यम वर्ग को 5 रुपए किलो गेंहू का वायदा किया है। वहीं कांग्रेस ने महिला की पहली डिलेवरी पर पांच किलो घी देने का वायदा किया है। पर सबको पता है कि घोषणा पत्र देखकर वोट देने वालों की संख्या कितनी है।
दोनों ही पार्टियां महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण की बात करती हैं। कमाल की बात ये है कि देश की दोनों ही बडी पार्टियों की महिला मोर्चा की राष्टीय अध्यक्ष किरण माहेश्वरी और प्रभा ठाकुर राजस्थान की हैं और तो और कांग्रेस कोटे से ही महिला आयोग की चेयरमैन गिरिजा व्यास भी अपने उदयपुर संभाग में अभी भी खासी सक्रिय है। भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष किरण महेश्वरी तो इस बार चुनाव भी लड रही हैं। लेकिन वे अपने ही प्रदेश में 33 फीसदी महिलाओं को टिकट नहीं दिलवा पाईं। भाजपा ने जहां 192 में से 32 टिकट महिलाओं के लिए दिए वहीं कांग्रेस ने 200 में 23 टिकट ही दिए। 150 साल पुरानी का ये हाल तो तब है जब कांग्रेस की राष्टीय अध्यक्ष भी महिला है वहीं भाजपा राज्य में दुबारा वसुंधरा राजे के नेतृत्व में चुनाव लड रही है।
परिसीमन के बाद यह पहला चुनाव है, इसलिए किसी के समीकरण फिट नहीं बैठ सकते। दूसरा जनता आजकल हमेशा बदलाव चाहती है। सबको पता है कि दो चोरों में से किसी एक चोर को चुनना है। मैंने खुद कितने ही लोगों से बात की सभी यही कहते हैं। इसी को ध्यान में रखकर दोनों ही पार्टियों ने नए चेहरों पर दांव खेला है जमे जमाए लोगों के टिकट काट दिए गए। भाजपा ने पिछले चुनाव में प्रदेश में सबसे ज्यादा मार्जिन से जीतने वाले जालोर के विधायक का पत्ता साफ कर दिया वहीं कांग्रेस ने पांच बार विधायक रह चुके एक व्यक्ति का टिकट काट दिया।
यही कारण है कि इस बार दोनों ही पार्टियां बागियों की समस्या से जूझ रही है। पार्टियों ने इन नेताओं को प्रलोभन देने की कोशिश की पर अभी भी दोनों ही पार्टियों में पचास पचास से ज्यादा बागी मैदान में हैं। बसपा भी राज्य में अपनी ताकत दिखाने के पूरे मूड में है। तीस से ज्यादा सीटों पर बसपा त्रिकोणीय संघर्ष में है। कई जगह कांग्रेस या बीजेपी के मुकाबले उम्मीदवार ज्यादा प्रभावी नजर आ रहे हैं। गुर्जर फैक्टर से निपटने के लिए इस बार भाजपा ने गुर्जरों को ज्यादा टिकट दिए हैं।
पूर्वी राजस्थान में भाजपा भीतरघात से जूझ रही है अलवर, भरतपुर, धौलपुर, दौसा, करौली और सवाई माधोपुर में समीकरण काफी उलट पुलट हो गए हैं। पिछले चुनाव में भाजपा के लिए जी जान एक करने वाले मीणा नेता किरोडीलाल मीणा, जाट नेता विश्वेंद्र सिंह इस बार भाजपा के लिए खाई खोदने में जुटे हैं, दोनों ही किसी भी कीमत पर भाजपा को नहीं जीतना देना चाहते।
कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे नटवर सिंह बीएसपी के रास्ते अब भाजपा के समर्थन में हैं। यही वो इलाका है जहां के लोगों ने गुर्जरों के आरक्षण आंदोलन को करीब से देखा है। बीएसपी फैक्टर भी यहीं ज्यादा काम कर रहा है। यानी इन इलाकों में भाजपा और कांग्रेस की सीट ही तय करेंगी कि सरकार किसकी बन रही है।
वैसे एक खास फैक्टर जो इस बार सबसे अलग है वो ये कि इस बार एसटी सीट पर आम लोगों का खासा विरोध है या तो वे वोट देना ही नहीं चाहते या फिर ऐसे आदमी को सपोर्ट कर रहे हैं, जो एसटी हो लेकिन मीणा नहीं हो। इसी का परिणाम है एक धानका समाज।
मेरी अपनी सीट राजगढ का हाल
मैं खुद भी मूलत अलवर जिले से हूं हमारा विधानसभा क्षेत्र राजगढ एसटी रिजर्व है अब यहां का किस्सा देखिए। मेरे एक मित्र ने मुझे एसएमएस भेजा है, उस पर गौर कीजिए।
जौहरी के जौहर देखे, समरथ हो गयो फुस्स
शीला की पतंग काटकर, सूरजभान को कर दो खुश

अब इसका मतलब समझ लीजिए
जौहरी लाल मीणा कांग्रेस से चुनाव लड रहे हैं और 11वीं विधानसभा में जीते थे
समरथ लाल मीणा भाजपा से हैं वर्तमान में विधायक है और शीला किरोडी समर्थित उम्मीदवार के रूप में अपना भाग्य आजमा रही हैं। साइकिल के सहारे विधानसभा पहुंचने की चाह रखने वाले सूरजभान के साथ दो प्लस प्वाइंट हैं पहला वो राजगढ में मर्ज हुई लक्ष्मणगढ सीट से ताल्लुक रखने वाले एकलौते उम्मीदवार हैं दूसरा प्लस प्वांट ये है कि वो एसटी में जरूर हैं, लेकिन मीणा नहीं हैं। वर्षों से एसटी सीट रही राजगढ के मतदाता इस बार परंपरागत पार्टी को छोडकर सूरजभान के साथ आ रहे हैं। यानी कुल मिलाकर भाजपा और कांग्रेस को बारी बारी परखने वाले राजगढ में इस बार साइकिल दौड रही है।
शेष 8 दिसंबर को

3 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

हाँ भाई हाल तो सब दूर यही है। इधर हाड़ौती भाजपा का गढ़ कहा जाता है पर यहाँ सब से अधिक बागी भाजपा के हैं। पूरी आरएसएस की टीम भाजपा के खिलाफ खड़ी हो गई है।

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

इस बार कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही बागियों की समस्या से दो चार होना पड रहा है, ऐसे में निर्णायक भूमिका में तो निर्दलिय और दूसरी पार्टियां ही होंगी।

Harinath said...

राजीव जी आख़िर आप भी राजनीति पर उतर आए. खैर आप नही भी उतरते तो रातनीति आप को ही उतार देती. बढ़िया रहा लेख और बहुत ही अच्छा रहा चुनाव. मैं कई जगह पोलिंग के दौरान गया था. इतने बड़े जातीय संघर्ष के बाद शान्ति पूर्वक चुनाव निपट जाना. मुझे तो आश्चर्य हो रहा है. की चुनाव बिना हिंसा के निपट गया.लोगों को बधाई, साधुवाद