Wednesday, September 12, 2007
बेहद निजी मामले में मेरी राय
यूं तो शादी बेहद निजी मसला है। स्वतंत्र देश में हर व्यक्ति को अधिकार है कि वह अपनी पसंद से कानूनसम्मत उम्र में किसी से भी शादी करे पर कुछ मामले ऐसे होते हैं कि आपकी शादी पर आपके पूरे संसार (यानी जिसके इर्दगिर्द आपकी जिंदगी होती है ) की नजर अचानक आप पर आकर टिक जाती है।
पिछले कुछ दिनों में कई ऐसे मामले मेरे कुछ परिचितों के साथ हुए कि शादी जैसे निजी मसले पर भी मुझ जैसे कच्ची उम्र के युवक को कुछ लिखना जरूरी हो गया।
कहते हैं शादी ईश्वर तय करता है आदमी को तो बस उसकी रस्में भर निभानी होती हैं। ऐसे में अगर ईश्वर में आपकी आस्था है तो जो हुआ उसे ईश्वर की मर्जी मानना चाहिए। तो अब इसी तरह की एक शादी जिस पर मैं आपका ध्यान केंद्रित करना चाहता हूं कि लव मैरिज को देखने का समाज का नजरिया अलग कैसे हो जाता है। क्या यह ऐसा कुछ नहीं है कि हम अपनी सुविधा के अनुसार नए प्रतिमान गढ लेते हैं और पुरानी मान्यताओं को झुठलाने में पीछे नहीं रहते।
क्या लव मैरिज का विरोध करना ईश्वर की इच्छा का विरोध करना नहीं है या हुई हुवाई शादी के बीच टपकना भर और एक प्रेमी युगल के जीवन को परेशानियों के झंझावात में डालना नहीं है, जिनकी शादी पहले ही हो चुकी है। अपनी इज्जत का मामला बताकर उसमें टांग फंसाना क्या फालतू की कवायद नहीं है।
शादी करने का तरीका भले ही अलग हो सकता है, लेकिन लव मैरिज करने में मेरी नजर में कोई बुराई नहीं है। वैसे मैं इस मामले में पूर्वाग्रहग्रस्त हूं। हां, मेरा मानना है कि आपने पूरी गहराई, गंभीरता से प्यार को लिया हो और दूसरी ओर भी प्रेम की अगन ठीक उतनी ही लौ में दहक रही हो।
मैं ऐसे कई परिवारों को जानता हूं, जहां एक ही समाज या अलग अलग समाजों के युवक युवतियों की लव मैरिज के बाद भी कहीं किसी तरह की दिक्कत नहीं है और वे सुख चैन की जिंदगी जी रहे हैं।
मेरे एक दोस्त के परिवार का उदाहरण ही लीजिए उनके परिवार में तीन भाइयों में से दो ने कलव मैरिज की और उनके पिता यानी मेरे अंकल का मत है कि शादी सिर्फ बडे बुजुर्गों का मन और मान रखने के लिए ही नहीं होनी चाहिए, बच्चों की खुशी को ध्यान में रखना ज्यादा जरूरी है क्योंकि जिंदगी भर उन्हें एक दूसरे का साथ निभाना है। इसलिए उनकी खुशी के लिए अगर थोडा बहुत एडजेस्टमेंट भी करना पडे तो करना चाहिए। आखिरकार सामाजिक मान्यताओं के जनक भी तो हमी हैं और युगधर्म के अनुसार इसमें परिवर्तन की गुंजाइश होनी ही चाहिए। इसका सुफल मुझे तब देखने को मिलता है जब आप उस खुश जोडे को सुबह उठकर देखते हैं तो दिल को सुकून मिलता है।
खैर, मामला एक ही जाति और समाज का हो तो समाज के कुछ तथाकथित ठेकेदारों और परिवार को कोई दिक्कत नहीं होती, थोडी बहुत मान मनोव्वल के बाद मामला शांत हो जाता है और कुछ दिनों बाद या घर में नए मेहमान के आने के बाद धीरे धीरे दोनों परिवारों में आना जाना भी शुरू हो जाता है। लेकिन यह पूरा मामला पेचीदा या यूं कहें यह सारा गणित उस समय गडबडा जाता है, जब मामला दो समाज या दो अलग अलग धर्मों का हो। कई बार मामला बीच बचाव से ही सम्पट में आ जाता है, लेकिन कई बार खून खराबे तक की नौबत आ जाती है। ऐसा ही एक वाकया अभी कुछ दिन पहले मेरी जानकारी में आया।
प्रेम विवाह के विरोध में एक तर्क यह भी दिया जाता है कि ये बच्चों के अपने स्तर पर तय करने और बडे बुजुर्गों का मार्गदर्शन नहीं होने से अक्सर असफल हो जाते हैं। लेकिन असल कारण क्या हैं, इसकी पडताल हमें ही करनी होगी। यदि किसी को कोई आइडिया हो तो मुझे बताएं।
अब एक उदाहरण लीजिए
डीआईजी की लडकी और एक सामान्य परिवार के लडके के सात साल तक चले प्रेम संबंधों की परिणति शादी के रूप में हुई। लेकिन शादी के महज तीन साल में ही मामला फैमिली कोर्ट में है और तलाक के लिए अर्जी दे रखी है। शुक्र है कि बच्चे नहीं थे। इसमें एक बात और उल्लेखनीय है कि मामला इस मोड पर है उसके बावजूद लडके ने हिम्मत नहीं हारी और लडकी से मिलने की कोशिश की, लेकिन वह लडकी के परिवार के बेहद कडे पहरे को भेद कर वहां तक पहुंचने में कामयाब नहीं हो सका। कोर्ट ने लडकी को पेश करने के आदेश दे दिए हैं, लेकिन डीआईजी साहब ने अभी तक लडकी को कोर्ट में पेश नहीं किया। अब नतीजा जिसके भी पक्ष में रहे, लेकिन यह तय है कि प्यार की जीत बमुश्किल ही हो सकेगी। लोगों को असफल लव मैरिज का एक और उदाहरण मिल जाएगा।
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10 comments:
bhai sahab thoda kum socha kren,, abhi aapki umr Arastu/plato banne ki nhi h,, waise aaj k time me yadi aap chahe to sab sambav h.. love merr ko bhi arrange merr me badla ja sakta h, kya pyar krne wale apne ma-baap ko nhi samjha sakten h kya..? samaj ki chinta nhi krni chahiye.. samaj aaj k samay me sirf swarath ka dusra naam h.. waise yahan prblm ak or h.. ya to ladka ya phir ladki , koi ak peeche hat jata h.. kahte h ki maa-baap mana kr rhe hn. or main unki marji k khilaf shadi nhi kar sakta/sakti, to unse us samay ye puchna chahiye ki jab pyar kiya tha us samay kya apne ghar walon se pucha tha ki pyar kr lu kya..?
राजीव जी मुझे वाकई बहुत बढिया लग रहा हैं की देश और समाज को आपके रूप मे के शानदार और सोचने वाला पत्रकार मिल गया हैं वरना यहाँ सोचने का वक्त किसके पास हैं? लगे रहो मैं हमेशा आप के साथ हूँ.
hello sir, its nice to c that u have been writting in such a social issues.
as far as my opinion about this topic than its depends up to boys n girl that how much thay r mature if they are mature enough than no need to worried about our so called samaj.
u know its matter of understanding n intelligence that how we tackle this situation. waise bhi jeevan ladrne ke liye bahut hi badra hai aur pyar ke kiye bahut kam. so pyar se sabka vishwas jitiye aur ladrke n ladrki dono apni family ko yehe vishwas dilayai ki unka faisla galat nahi hai aur jin manyatao ko arrange merrege wale mante wo sab wo bhi manege.
koshish yahi karni chahiye ki love + arrange ho. lakin kya kare aajkal ke duir me sabko jaldi hai.aur jaldbazi itni hai ki badro ke baat sunne mai unhe time waist sa lagta hai.
isliye yadi parents ne ek baar mana kiya to bas akele hi LM karne nikle chalte hai.
yaha dono ko samjhne ki jarrurat hai jaha parents ko apni ritiriwajo ko saath mai lekar new zenration ke saath chlna chahiye wahi bachho ko bhi sochna chahiye ki unke faseke se parents ko jeevan mai afsos na ho sirf proud ho.so jo bhi jeevn saathi chune unhe apne saath badro ka bhi khyal rakhna chahiye.
if i talk about my family than not know 25 years back my chacha got married with another cast. for some time our family do had that kind of problem but by n by as thay felt than the girl is really nice n adjestable thay got agre. n now my sis n brother both got married in other cast but we accept tham becoz we feel thier decision was right.
So its not matter of samaj its matter of our family n we must handle it in very polite n lovely way.
yu o arrangeM ki bhi koi gurrentty nahi le sakta ki wo hamesha success hogi phir lM per ye sawal uthana sahi nahi hai.
being a journalist i can say that yadi court case ke graph pe jayai to divorce ka graph arrange marrege ka jayda hai na ki LM ka.
so pyar batne ka naam hai jintna batoge usse jada milega so let it be any marrege but love is important there.
samaj tab hi virodh karte hai jab apne nahi samjhte so pahele apno ko sajhne ki jarrurat hai. lakin sirf pyar aur vishwas se.
इसलिए तो सर नारी आदरणीय है। यही एकमात्र महत्वपूर्ण वजह है, जिसने कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में लोगों के दिलों में नारी के प्रति आदर भाव कायम रखा हुआ है। जिस पल भी वह दूसरों से ज्यादा स्वयं के लिए सोचने लगेगी, तब उसका महत्व शायद उतना न रह पाए। चाहे मित्र, बहन, मां, दादी, पत्नी किसी भी रूप में हो उसकी यही सोच उसे हमेशा से दूसरों की नजरों में ऊपर उठाती रही है।
शास्त्रों की बात करें तो उसमें भी नारी के इसी रूप की वजह से उसे पूज्यनीय और आदरणीय बताया है। लक्ष्मी को हमेशा आदर भाव से देखना चाहिए चाहे वह किसी भी रूप में हो। यदि आपनी बात करुं तो उन लोगों को बहुत सम्मान करती हूं, जो चाहे अपनी हो या दूसरों की नारी के हर रूप का आदर करते हैं और शायद उनके लिए यही सबसे बडा संतोष होता है कि कोई उन्हें आदर भाव से देखे।
सीमा मल्होत्रा, जयपुर
इसलिए तो सर नारी आदरणीय है। यही एकमात्र महत्वपूर्ण वजह है, जिसने कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में लोगों के दिलों में नारी के प्रति आदर भाव कायम रखा हुआ है। जिस पल भी वह दूसरों से ज्यादा स्वयं के लिए सोचने लगेगी, तब उसका महत्व शायद उतना न रह पाए। चाहे मित्र, बहन, मां, दादी, पत्नी किसी भी रूप में हो उसकी यही सोच उसे हमेशा से दूसरों की नजरों में ऊपर उठाती रही है।
शास्त्रों की बात करें तो उसमें भी नारी के इसी रूप की वजह से उसे पूज्यनीय और आदरणीय बताया है। लक्ष्मी को हमेशा आदर भाव से देखना चाहिए चाहे वह किसी भी रूप में हो। यदि आपनी बात करुं तो उन लोगों को बहुत सम्मान करती हूं, जो चाहे अपनी हो या दूसरों की नारी के हर रूप का आदर करते हैं और शायद उनके लिए यही सबसे बडा संतोष होता है कि कोई उन्हें आदर भाव से देखे।
सीमा मल्होत्रा, जयपुर
अच्छी चीर-फाड़ है जैन साहब. आप मियां कुंवारे लगते हैं अभी
Very good going.
kuch apni dosti per bhi to likhiye kabhi.
राजीव,
मामला तो निजी है लेकिन ये तय कौन करेगा कि लव मैरिज ज़्यादा सफल होती है या अरेंज मैरिज। इस बात से कोई अंतर नही पड़ता कि आपको प्रेम शादी के बाद हुआ या पहले , अंतर इस बात से पड़ना चाहिऐ , जिसके साथ हम जिन्दगी गुज़र रहें है उसके साथ खुश है या नहीं।
hi rajeev mujhe apka ye blog personally bahut zyada pasand aaya . magar ab aap satark rahiye koi bhi apke views ko personalize kar sakta hai. magar aap likhte bahut accha ho. really i feel it.
i think its crucial matter,Our society is passing through a crucial phase, we youth are stuck as sandwich between modern and old ideology, we wnt to become as western people while keeping ourself traditional.
marriages are made heaven this idiom is correct but i think ur interpretation is wrong bcoz God says i will help you only when u will help urself means u have to do karma.
in india whether u agree or not agree marriage is not the mating of two soul alone it is mating of two families in which bride and groom to sacrifice some time his/her wishes. for a successful marriage blessing is a must from our parents and relatives and our well wishers.
as far as love marriage concern, we have to see whether it is real love or just infatuation, bcoz i m in delhi for last four yrs i hav seen wht kind of luv people do here.
but i m not in favour to go against family's wishes.
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