Monday, September 3, 2007

असली हकदार तो हिंदी ही है





सीएम रिलीफ फंड से सात लाख का विशेष अनुदान जारी कर हिंदी के सात विद्वानों को विश्‍व हिंदी सम्‍मलेन में न्‍यूयॉर्क भेजने के मामले को हमारे साथियों ने गंभीरता से उठाया। अरे भई हिंदी दिवस आ रहा है, हिंदी की रोटी खाने वालों को कम से कम इस माह में तो हिंदी के विद्वानों को तत्‍काल प्रभाव से सीएम के इस विशेषाधिकार कोटे पर विदेश भेजने की तो मुक्‍त कंठ से प्रशंसा करनी चाहिए थी।
वैसे भी अभी 14 तारीख को (हिंदी दिवस पर) जगह-जगह समारोह होंगे, हिंदी को आगे बढाने की बात उठेगी, उसके लिए विशेष अनुदान की माग होगी।
प्‍यारे भाइयों कभी तो पॉजिटिव सोचा करो। इस महान कर्म को भ्रष्‍टाचार कहने की जगह कुछ इस तरह क्‍यूं नहीं समझ लेते कि हिंदी को अंतरराष्‍टीय स्‍तर पर सम्‍मान दिलाने के लिए अंग्रेजी पढी लिखी हमारी सीएम कितनी तनम्‍यता से जुटी हैं। सीएम रिलीफ फंड, जिससे अभी तक विपदाग्रस्‍त और मरे गिरे लोगों के परिवार को या किसी इसी तरह के प्रायोजन पर खर्च किया जाता था।
हिंदी प्रेमी सीएम ने तो इसका दायराभर बढाया है। यूं तो इस फंड की असली हकदार तो हिंदी ही थी, जिसे अपना हक स्‍वतंत्रता के करीब साठ साल बाद मिला है। अगर इस तरह के अनुदान तब से मिले होते तो कम से कम से हमारी हिंदी न सही, हमारे हिंदी विद्वान तो न्‍यूयॉर्क, मॉरिशस, पोर्ट लुई, त्रिनिदाद और लंदन तो घूम ही चुके होते !

(हिंदी के उन सात विद्वानों का नाम बेवजह उछालने पर क्षमा सहित। लेखक का यह पहला सीरियस र्व्‍यंग्‍य है, इसे मजाक में न ले )

8 comments:

Ashish Maharishi said...

लेखक का यह पहला सीरियस र्व्‍यंग्‍य है, इसे मजाक में न ले

bahut khoob

Anirudh said...

the comment on C.M. is quite appreciatable,but to pointout those hindi visheshyagya is not comes under ethics.but overall the attempt is very good

Anonymous said...

Good Shuruwat

Shastri JC Philip said...

प्रिय राजीव,

हिन्दी चिट्ठाजगत में हार्दिक स्वागत.

हिन्दी के नाम से हिन्दी को छोड कर हर किसी का कल्याण हो रहा है. लोग रसमलाई खा रहे है, और हिन्दी को परोस रहे हैं नोन, मिर्ची, एवं जली हुई सूखी रोटी.

मुझे लगने लगा है कि जिस तरह से हिन्दुस्तान की आजादी के लिये करोडों लोगों को लडना पडा था, उसी तरह अब हिन्दी के कल्याण के लिये भी एक देशव्यापी राजभाषा आंदोलन किये बिना हिन्दी को उसका स्थान नहीं मिलेगा.

-- शास्त्री जे सी फिलिप

मेरा स्वप्न: सन 2010 तक 50,000 हिन्दी चिट्ठाकार एवं,
2020 में 50 लाख, एवं 2025 मे एक करोड हिन्दी चिट्ठाकार !!

Unknown said...

जी हिन्दी का विकास जरूरी है पर मै नहीं मानता हूँ कि विश्व सम्मेलन करने से कोई खास फर्क पडने वाला है शिवाय पैसे की बरबादी के अलावा ,जरूरत तो जागरूकता की जो नहीं हो रही है। आज के बदलते परिवेश में हिन्दी का अस्तित्व खतरे में नजर आता है पर हमें प्रयास करने की जरूरत है। मेट्रो सिटी के लोगों ने तो हिन्दी न बोलने की कसम खा ली है।

Unknown said...
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Anonymous said...

nice article, sorry to write in english. because i am slow in hindi so i am writing in english. very nice article and what i wanted to say has been already told by the others.

sanjay sharma
www.sanjaysharma71.blogspot.com

Sanjeet Tripathi said...

बढ़िया लिखा है बंधु!!

शुभकामनाओं के साथ देर से ही स्वागत कर रहा हूं हिन्दी चिट्ठाजगत में स्वीकार करें