Monday, December 17, 2007
.... मैं अपना हिस्सा लेकर जा रहा हूं
भारतीय रेल को लगता है अपना स्लोगन बदलना पडेगा, क्यूंकि ‘भारतीय रेल आपकी संपत्ति है इसे सुरक्षित रखें’ के इस ध्येय वाक्य को लोगों ने कुछ ज्यादा ही अपना समझ लिया है। अभी 13 और 14 दिसंबर को ग्वालियर जाना हुआ। आते जाते दोनों समय का सफर जयपुर-ग्वालियर इंटरसिटी में काटा।
जयपुर लौटते समय डी 7 के नई स्टाइल के डब्बे में बैठने का सुख मिला। पर ये क्या, मैं टायलेट गया तो देखा कि लोग टायलेट की विंडो, टोंटी और कांच उतारकर ले गए। लगता है रेलवे के इस ध्येय वाक्य की लोगों ने दिल से इज्जत की और प्रॉपर्टी से अपना हिस्सा लेकर चले गए।
मुझसे रहा न गया मैंने टीसी से पूछा कि यह नया डिब्बा कितने दिन पहले लगाया है। बोले 10 से 12 दिन हुए है। मैंने कहा कि लोगों को सुंदरता पसंद नहीं है, टोंटी और शीशा तक खोल कर रह गए। उन्होंने कहा हां भाई भारत है, किराया दिया होगा तो ले गए वापस।
अब पता नहीं अपन भारतवासी कब सुधरेंगे। ज्ञानदत्तजी कुछ और किस्से सुना सकते हैं रेलवे के।
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4 comments:
अच्छा विषय उठाया है..
जनाब आप जिस इलाके में गए थे वहां तो आदमी तक को उठा लिया जाता है,...यह तो कुछ नहीं है....हम भारतीय बड़े संतोषी हैं..
अरे! खाली यही नही...अगर कभी टोयलट में जानें का सोभाग्य मिले तो वहाँ भी घुस कर देखें....शायद दरवाजा भी पूरा नही खोलेंगे और वापिस हो लेगें...ऐसी हालत हमनें देखी थी एक सफर में..
बहुत अच्छा भाई, जब हमारे राजनेताओं ने इस राष्ट्र को ही अपनी बपौती समझ लिया है और दीमक की तरह इसे चाट-चाटकर बरबाद करने पर तुले हैं तो जनता भी तो राष्ट्रीय संपत्ति से अपना हिस्सा उड़ाने को अपना कतॅव्य समझेगी ही, वैसे आपकी पीड़ा जायज है।
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