कई बार जल्दबाजी या नासमझी में अर्थ का अनर्थ हो जाता है। आदमी करना क्या चाहता है और हो क्या चाहता है। ऐसा ही कुछ शायद इधर हुआ। अपन के घर एक कार्ड आया उसका मजमून आप फोटो पर क्लिक करके आराम से देख सकते हैं। पर लिखने वाले ने शायद यह सोचकर नहीं लिखा हो, जो मैं और आप समझ रहे हैं।
कार्ड में लिखा गया मेरी धर्मपत्नी की प्रथम पुण्य तिथि समारोह के शुभ अवसर पर आपको सादर आमंत्रित करते हैं।
शायद इसीलिए कहते हैं सावधानी हटी दुर्घटना घटी
7 comments:
मज़ा आ गया राजीव जी. सावधानी हटी, दुर्घटना घटी को आपके क्या खूब चस्पां किया है. ईश्वर की अनुकम्पा से आपने बहुत बढिया लिखा है.
:) haa haa
ऐसा भी होता है !
:)
गुरु पता चल गया की ख़बरों में गलती पकड़ने का अच्छा अनुभव है. लगे रहो बढ़िया है.......
डेस्क पर हो न गुरु?
बढ़िया नज़र है, तरक्की करोगे, शुभकामनाएं
rajeev bhai kya paini nazar h aapki
क्या कहें और कहने को क्या रह गया...
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