एक छोटे से एक्सिडेंट में अपन की टांग टूट गई है। साथ देने के लिए अपन के दोस्त और कुछ वरिष्ठ साथी घर आ गए। संडे था इसलिए कुछ लोग फ्री थे और दिनभर अपन के घर मजमा लगा रहा।
कुछ ज्ञान की बातें हुईं अचानक याद आया कि आज 3 फरवरी है। इसी से जुडा एक किस्सा फरमाया गया। इसका कुल जमा मतलब यह कि पत्रकारिता सिर्फ कॉमनसेंस का जॉब है।
पिछले साल इसी दिन जयपुर में एक समाचार पत्र में पेज एक पर खबर छपी “विमान से भेजा राजमाता का शव”। और इसी समाचार पत्र के पेज सात पर राजमाता के शव को एंबुलेंस से ले जाते हुए फोटो छपा। इस खबर में एक जज को सरकारी विमान नहीं देने के पुराने समाचार का जिक्र करते हुए सरकार की सामंती कार्यप्रणाली पर शहर के वकीलों की प्रतिक्रिया ली गई और पैकेजिंग करके छापा गया। यानी उस मामले पर प्रतिक्रिया जो हुआ ही नहीं।
सुबह जब मामले का खुलासा हुआ तो एक सलाहकार संपादक, एक वरिष्ठ उपसंपादक और एक रिपोर्टर के इस्तीफे मंजूर कर लिए गए वहीं तीन लोग बडी मुश्किल से नौकरी बचा पाए।
मतलब साफ कि किसी ने फोटोजनर्लिस्ट की बात नहीं सुनी। एक ही अखबार में, पेज वन की प्रमुख खबर को झुठलाता फोटो पेज सात पर छपा। ये हालात तब थे जब खबर में पूरी प्रिंटर (पेज वन) डेस्क, चार रिपोर्टर, एक चीफ रिपोर्टर एक कार्यकारी संपादक और एक संपादक जुटे हुए थे।
संदेश साफ की पत्रकारिता में कॉमनसेंस सबसे अहम है और छोटों की बात भी सुनी जानी चाहिए।
5 comments:
ठीक एक साल बाद घटना की याद दिलाकर जहां पत्रकारिता में सावधानी के साथ काम करने का सबक दिया है वहीं कुछ पुरोधाओं के पुराने घाव ताजे कर दिए।
राजीव जी, सब से पहले तो आप अपनी टांग के बारे में बताइए.....क्या उस पर पलस्तर चढा है या नहीं ? पूरा बतलाइए। हम आप की टांग जल्द ठीक होने की शुभकामऩा करते हैं।
जहां, तक आप की पोस्ट की बात है आप बिलकुल सही फरमा रहे हैं. हमारे ज़र्नलिज़्म के प्रोफैसर साहब डा वालियाजी भी अकसर यही बात कहते थे। मैंने भी विभिन्न समाचार-पत्रों की ऐसी कईँ कतरनें किसी फाईल में इक्ट्ठी की हुई हैं जो इसी बात को चीख-चीख कर कह रही हैं...लेकिन यह प्रिंट मीडिया भी न, अपने पाठकों को बस लेकन फॉर ग्रांटेड वाली एटीट्यूड से पता नहीं कब बाहर निकलेगा।
वैसे तो हर क्षेत्र ही कामनसेंस से जुड़ा हुआ है.. सो पत्रकारीता क्यों अछूता रहे?
टांग कैसे तुड़ा लिये भाईसाहब??
अब जल्दी से ठीक हो जाइये.. मेरी सुभकामनाऐं..
टांग बचाओ भईया और राजमाता की आत्मा को बड़ा कष्ट्र हो रहा कि उनका शव गया था वैन से और भास्कर ने भेज दिया विमान से, भईया यही तो पत्रकारिता है
इस घटना से एक बात तो साफ हो गई कि पत्रकारिता में मूल्य और सिधान्तो का कोई मोल नही बचा है. अपने समाचार पत्र को जनता कि नज़र में बेहतर साबित करने के लिए एक नामचीन अख़बार ने भ्रामक समाचार प्रकाशित कर दिया. यानि अखबार बेचने के लिए साला कुछ भी करेगा.
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