Wednesday, January 30, 2008

मैं और बापू – खलनायक से आइडियल तक


देश के साठ फीसदी युवाओं की तरह अपन भी बचपन से सुभाषचंद्र बोस के भक्‍त थे। और एक चीज अपन के दिमाग में साफ थी कि सुभाष बाबू की लोकप्रियता की राह में रोडे अटकाने वाले बापू यानी महात्‍मा गांधी ही थे। यह बात अपन के बालमन में शुरू से ही थी। सो अपन के खलनायकों की लिस्‍ट में बापू भी एक हुआ करते थे।
साइंस के स्‍टूडेंट रहे तो इतिहास से अपना ठीक से वास्‍ता नहीं पडा। बचपन में जो पढा वो पता नहीं रटा या समझा, ठीक से याद नहीं आता। पर मेरी मार्कशीट बताती है कि दसवीं की परीक्षा में हिंदी और इतिहास दो ही सब्‍जेक्‍ट थे, जिसने मुझे राजस्‍थान बोर्ड की परीक्षा में 75वीं रेंक पर पर ही रोक दिया। संघ से वास्‍ता रखने वाले कई दोस्‍त अपन के फ्रेंड सर्कल में थे तो इसका असर भी पडना था, यानी गांधीजी की और वाट लगनी स्‍वा‍भाविक थी।
पर बीएससी के बाद दो ऑप्‍शन थे या तो कैमेस्‍टी से एमएससी या देश के साठ फीसदी युवाओं की तरह कॉम्पिटीशन की तैयारी। कैमेस्‍टी में राजस्थान यूनिवर्सिटी का प्री टेस्‍ट पास किया। ए‍डमिशन की तैयारी थी कि मुझे लगने लगा कि यार साइंस के स्‍टूडेंट को इतिहास की नॉलेज होनी चाहिए। बिना इतिहास के भविष्‍य कैसा।
बस इसी उधेडबुन में कैमेस्‍टी की जगह राजस्‍थान यूनिवर्सिटी में एमए हिस्‍टी में एडमिशन ले लिया। अब शुरू हुआ अपन का इतिहास और बापू से रूबरू होने का समय।
एमए के दो वर्षों के दौरान मुझे पता चला कि गांधी वाकई बापू थे। मेरे कई भ्रम और पूर्वाग्रह खत्‍म हुए, आजादी के बारे में सुभाष बाबू के बारे में, उनसे मतभेद को लेकर।
कुल मिलाकर मैं एक लाइन में समझाने की कोशिश करुं तो मुझे समझ आया कि आजादी के लिए हजारों वीर सपूतों ने बलिदान दिया, संघर्ष किया। पर बापू ने स्‍वराज्‍य की अवधारणा को आमलोगों तक पहुंचाया और आजादी के इस आंदोलन से उनको जोडा। इससे पहले तक सिर्फ पडा लिखा तबका ही आजाद होने का सपना देखता था। यानी बिना बापू के आजादी सिर्फ कल्‍पना थी।
बापू को श्रद़धांजलि के साथ
एक आजाद भारतीय

9 comments:

Ashish Maharishi said...

यार राजीव यह लिखकर दिल खुश कर दिया, बड़े दुभाग्‍य की बात है कि आज भी लाखों लोग बापू को खलनायक मानते हैं, लेकिन ऐसा है नहीं। भगत सिंह के मामले में भी गांधी को खलनायक बनाया गया। भगत सिंह के पिता ने अंग्रेजों से बपने बेटे के लिए माफी मांगी थी, जब यह बात भगत सिंह को पता चला तो उन्‍होंने अपने पिता को देशद्रोही कहा था, ऐसे में जो लोग यह कहते हैं कि बापू भगत सिंह को बचा सकते थे, उन्‍हें इतिहास की जानकारी ही नहीं

संजय बेंगाणी said...

गाँधीजी के बारे में यह सही लिखा की उन्होने स्वराज का मंत्र आम लोगो तक पहूँचाया.

ghughutibasuti said...

आपकी बात विचारणीय है ।
घुघूती बासूती

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

राजीव जी, आपने अपनी बात बहुत सलीके से कही है.हमारे यहां एक धारणा यह प्रचलित हो ही गई है, अलबत्ता कुछ लोगों के बीच कि गांधी जी खलनायक थे. इस धारणा को जिन्होंने प्रचारित किया उनके बारे में सब जानते हैं. आपने बहुत खूबसूरती से गांधी का महत्व प्रतिपादित किया है. वैसे मुझे यह भी लगता है कि अपनी-अपनी तरह से सबका महत्व था. सबके मनमें एक पवित्र उद्देश्य था-देश की आज़ादी का. इन्हें आपस में लडवाने की जो कोशिश करते हैं, गलत तो वे ही हैं.

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

राजीव जी, आपने अपनी बात बहुत सलीके से कही है.हमारे यहां एक धारणा यह प्रचलित हो ही गई है, अलबत्ता कुछ लोगों के बीच कि गांधी जी खलनायक थे. इस धारणा को जिन्होंने प्रचारित किया उनके बारे में सब जानते हैं. आपने बहुत खूबसूरती से गांधी का महत्व प्रतिपादित किया है. वैसे मुझे यह भी लगता है कि अपनी-अपनी तरह से सबका महत्व था. सबके मनमें एक पवित्र उद्देश्य था-देश की आज़ादी का. इन्हें आपस में लडवाने की जो कोशिश करते हैं, गलत तो वे ही हैं.

Sanjeet Tripathi said...

बहुत सही लिखा है बंधु!!!

anuradha srivastav said...

राजीव जी ये सही मायने में गांधी जी को श्रद्धांजलि है । जरुरत है नये परिप्रेक्ष्य में फिर से गांधी जी की विचारधारा और उनके योगदान को प्रतिपादित करने की।

PD said...

बहुत बढिया लिखा है.. मैं भी युवा हूं पर मेरे मन में उन्हें लेकर कभी भी कोई पूर्वाग्रह नहीं रहा है.. हां इसे लेकर अपने कई मित्रों से मतभेद जरूर रहा है और कई बार बहस भी हो चुकी है..

वैसे आपका ये अपन करके लिखने का अंदाज मुझे बहुत अच्छा लगता है.. मुझे अपने एक मित्र कि याद दिलाता है जो मेरे साथ MCA में थी, वो भी जयपुर कि ही थी.. और अभी कोलकाता TCS में कार्यरत है.. :)

अफ़लातून said...

राजीव, पढ़ कर अच्छा लगा.गांधी-नेताजी पर यह भी देखिये http://samatavadi.wordpress.com/category/gandhi/
आशीष भगत सिंह के पिता गांधी के पास अंग्रेजों के लिए पत्र का एक ड्राफ़्ट लाये थे जिसको यह गांधी ने यह कहते हुए अस्वीकार किया था कि"एक बहादुर सपूत के लिए अलग भाषा होनी चाहिए"