15 अगस्त की छुट्टी घर पर मना रहा था। ठाले बैठे टीवी पर चैनल चेंज कर रहा था कि केबल वाले के लोकल चैनल के एक विज्ञापन पर नजर टिक गई। पहली बार पढ़ा तो लगा शायद देखने में गलती हो गई। उसके बाद उस विज्ञापन का इंतजार करता रहा। फिर आया तो देखा कि लिखा है हमारे स्कूल में सिर्फ शहरी बच्चों को पढ़ाया जाता है। मुझे अंग्रेजी माध्यम के इस स्कूल पर ऐसा करने पर अचरज कम हुआ लेकिन इस बात पर ज्यादा कि केबल चैनल पर कोई ऐसा विज्ञापन दिखा भी कैसे सकता है। कमाल की बात यह है कि शहर में सरकारी विज्ञापन, यहां तक कि पुलिस की ओर से जनहित में जारी विज्ञापन भी इसी चैनल पर आते हैं। अगर स्कूलें ऐसा भेदभाव करेंगी तो समाज में भेदभाव कैसे कम होगा? यह बात समझ से परे है।
8 comments:
’स्कूलें’
कुछ हो न हो, आप ऐसा लिखेंगे तो पढ़ने मे मज़ा आयेगा ही।
क्या आप पत्रकार हैं?
khabaron ke baad ab vigyaapan ki cheer-phad.bahut badhia likha.badhai,pehli baar idhar aaya ab lagataar aana padega
यह विज्ञापन अत्यन्त निन्दनीय है। साथ ही उस विद्यालय के स्तर एवं उसके कर्ता-धर्ता लोगों की नीच सोच को परिलक्षित करता है।
यही वह सोच है जो की आदर्श और हकीकत के अन्तर को दर्शाती है / सरकार शिक्षा को मजाक और शिक्षक को बाबू बनाने में लगी है/ इस तरह से घेरने के लिए आपको शुक्रिया !
वैसे एक बहस छेड़ दी है अपने ब्लॉग प्राइमरी का मास्टर पर कृपया आप लोगों की टिपण्णी चाहूँगा/
http://primarykamaster.blogspot.com/2008/08/blog-post_16.html
bhaiya hum bhi gaun wale hn or bata de ki gaon k bachche jyada intelligent hote hn..
bhaiya hum bhi gaun wale hn or bata de ki gaon k bachche jyada intelligent hote hn..
बाबारे ऐसा भेदभाव, उस स्कूल में नैतिकता के नाम पर क्या सिखाएंगे सोचा जा सकता है
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