Wednesday, May 13, 2009

जयपुर में विस्‍फोट के एक बरस बाद

जयपुर में बम धमाके हुए आज ठीक एक साल हो गए। एक साल पहले हुए इन धमाकों में 69 बेगुनाह लोग मारे गए। 250 से ज्‍यादा लोग घायल हो गए। और कई लोग अपनों की याद में आज भी जिंदा लाश हैं। कहते हैं कि कुल 11 आतंकियों ने इस वारदात को अंजाम दिया इनमें से चार गिरफतार हो गए, पांच फरार है और दो दिल्‍ली के बटला हाउस में मुठभेड में मारे गए।
आज ठीक एक साल बाद मैं सोचता हूं, पता नहीं हमने और हमारी पुलिस ने क्‍या सबक लिया। उन परिवारों को छोड दें तो बाकी हम सब की जिंदगी यूं ही चल रही है। जैसी पहले थी बस एक गलतफहमी थी, जो अब दूर हो गई कि जयपुर में विस्‍फोट कैसे हो सकते हैं ( जयपुर में विस्‍फोट की खबर के बाद उस मनहूस दिन मेरी पहली प्रतिक्रिया बस यही थी)
अब एक बरस बाद मीडिया और हम जैसे लोगों के लिए यह जानना जरूरी था कि पीडित और उनके परिजन क्‍या सोचते हैं। उनकी जिंदगी में इस एक साल में क्‍या बदला। हमारे अखबार के रिपोर्टर्स भी कई पीडितों के घर गए। किसी एक घर में यही प्रतिक्रिया मिली क्‍या तुम लोगों के पास कोई और काम नहीं है, जो बार बार में आ जाते हो। हादसे के बाद से अब तक पहले एक महीने बाद, फिर सौ दिन बाद और अब ठीक एक साल बाद। शायद पीडितों के भरते जख्‍मों को हम लोग चाहे अनचाहे फिर कुरेद देते हैं। पर शायद हमारी भी मजबूरी है। हम नहीं छापेंगे तो कोई और छाप देगा। पता नहीं एक बार फिर वही असमंजस।

10 comments:

cartoonist ABHISHEK said...

सवाल सिर्फ जयपुर का नहीं है...
पूरे हिन्दुस्तान का है..हर रोज कोई न कोई
आतंकवाद की बलि चढ़ता है.
राजस्थान पत्रिका के मेरे साथी राकेश वर्मा की
कई साल पहले की एक स्टोरी (खबर) मुझे याद है
हर सप्ताह एक फौजी राजस्थान में ताबूत के अन्दर लेट कर आता है...
ये आंकडा शांतिकाल का था न कि कारगिल जैसे युद्ध काल का.. .
अब तो हालत और भी बुरे हो चुके हें....
पकिस्तान को भी अक्ल आ गयी और वो तालिबान को धुनने लगा..
मगर हम एक अफजल को फांसी पर नहीं चढा पाए....
फिर क्या गारंटी है कि जयपुर को जख्म दुबारा नहीं मिलेंगे...

प्रशांत गुप्ता said...

ये इस देश का दुर्भाग्य है ..एक के बाद एक ..पर कभी कुछ नहीं बदलता ...जब जनता ही शांत है तो शासन का क्या दोष .. इन बेगुनाह लोगों के परिवार वालो से सहानभूति और एक बदलाव का इंतजार जहा अफजल और कसाब को फांसी के लिये इंतजार नहीं कराया जायेगा

Dileepraaj Nagpal said...

Isiliye to kahte hain ki patrkaar hona apne aap me cunottii bharaa hai. ye imotional cunotiyan sabse badi pariksha hoti hain

संगीता पुरी said...

हमलोगों के एक वर्ष कितनी आसानी से व्‍यतीत हुए .. पर मारे गए लोगों के परिवार वालों ने कैसे काटे होंगे इसे .. वही बतला सकते हैं।

MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर said...

बहुत सही जी
कष्टदायक समय रहा पिडीत परिवारो के लिऐ
आभार
मुम्बई टाईगर
हे प्रभु यह तेरापन्थ

Anonymous said...

उस दिन को याद करके आज भी ह्रदय रोता है. और उस घटना के बाद जांच के नाम पर जो कुछ हुआ उसक भुक्तभोगी तो मैं खुद हूँ.

GKK said...

waise media wale logo ko thoda sensitive hona chahiye, har baar peedito ke pariwaar walo ke pass jaakar unse haal poochne ka matlab unka dard fir se ubhaar dena.
dekhte hai 16 may ko kya hota hai kya desh ek majboot & sashakt sarkaar chunega ya nahi.

Udan Tashtari said...

आज भी घाव हरे हैं...वक्त उड़ता जाता है.

varsha said...

हम नहीं छापेंगे तो कोई और छाप देगा। yah soch bhaygrast karti hei...mare gaye logon ko shraddha suman.

Richeek Mishra said...

सर आपकी जयपुर ब्लास्ट वाली स्टोरी भी अच्छी थी, हम अपना काम कर रहे हैं, वैसे भी ये बहुत हद तक थैंकलेस जॉब हैं, किन्तु कोई बात नहीं. जब हमारी वजह से किसी परिवार को न्याय मिलता हैं तो वही लोग मीडिया की तारीफ़ भी करते हैं. उसका सबसे बढ़िया उदाहरण जेस्सिका लाल मर्डर केस था, सो चिंता जायज हैं पर दुखी होने की जरुरत नहीं हैं. क्यूंकि वही लोग सवेरे अपने दुःख को लोगो के बीच समाचार पत्रों के जरिये पाकर खुश भी होते हैं, क्यूंकि दुःख हमेशा बाटने से कम होता हैं l