बुधवार सुबह अपना भी मन हुआ सांवरिया और ओम शांति ओम में से कौनसी फिल्म ज्यादा बुरी है। इसका फैसला अपन खुद ही करेंगे। तो ओम शांति ओम तो अपन पूरे दिन में दो कोशिशों के बाद भी नहीं देख पाए। पहली बार कोशिश की बुधवार तीन से छह के लिए और दूसरी बार रात नौ से बारह बजे के शो के लिए की, लेकिन जयपुर के बडे सिनेमाघरों में टिकट एडवांस बुक थीं या बडी बडी लाइनें थीं।
तो अपन ने दो बजे से पांच बजे वाले शो में शहर में दीवाली से ही खुले आयनोक्स में सांवरिया ही देख डाली। पहली बार इस नए हॉल में गया तो पांच छह मिनट रास्ता ढूंढने, सिक्योरिटी और पार्किंग वालों ने बिगाड दिए और करीब इतनी ही फिल्म निकल गई। हॉल के अंदर पहुंचा तो सुखद अनुभूति हुई, कि शायद अपन ही समझदार हैं जो ऐसी फिल्म देखने आएं है जिसे अपन समेत कुल पंद्रह ही लोग देख रहे हैं। वहीं दूसरी फिल्म की हालत आपको बता ही चुका हूं। इतनी विशाल ऑडियंस में भी चार पेयर तो ऐसे थे जो आए ही इसलिए थे कि खाली थिएटर में शायद कुछ और करने का भी मौका मिल जाए। इतना तो उनको प्रोमो देखकर ही पता चल गया था न कि फिल्म में डार्क ब्लू और लाइट ग्रीन कलर यूज किया है, तो कुछ तो सपोर्ट मिलेगा।
हां तो बहुत हुई बकवास अब फिल्म की बात की जाए, अपने भंसाली भाई साहब देवदास, ब्लैक और खामोशी द म्यूजिकल की दे दनादन सफलताओं से लगता है कुछ झाड पर ही चढ गए हैं। उन्होंने वे तीनों प्रयोग जो इन फिल्मों को हिट कराने में यूज किए सारे एक साथ कर दिए पर लगता है स्टोरी पर काम करना भूल गए। बहुत सीन हैं जो पुरानी फिल्मों की याद दिलाते हैं जैसे हीरोइन का दौडने वाला सीन और म्यूजिक देवदास की ऐश की। बर्फ की बारिश ब्लैक की। अगर इस फिल्म को देखकर आप भंसाली साहब की फिल्मों को देखेंगे तो बहुत सारी समानताएं दिखाई देंगी।
यूं तो उनके बारे में सुना है कि उन्हें परफेक्शन इतना पसंद है कि जब तक न मिले तब तक रिटेक पर रिटेक करते हैं। लेकिन सांवरिया में ऐसा कुछ नहीं है बस शायद उनका सारा ध्यान शायद सेट बनवाने और रणबीर कपूर के तौलिया डांस में लगा दिया।
बेशक फिल्म के सेट सुंदर है, हर लोकेशन पर जान छिडकने को जी चाहता है और वो पूरे शहर का व्यू तो हैरी पॉर्टर की जादुई नगरी सरीखा दिखता है। इतना सुंदर सीन, जिसमें भाप का इंजन जा रहा है और पूरा शहरनुमा सेट एक ही फ्रेम में है, बस एक बार दिखाई देता है।
क्यूं नहीं चली फिल्म
मेरे हिसाब से फिल्म तीन कारणों से उतनी नहीं चल पाई, जितनी चलनी चाहिए या मतलब देवदास और ब्लैक जैसी सफल होनी चाहिए थी। पहला सामने शाहरुख और उनके दोस्त थे जिन्होंने अपना माल बेचने के लिए कोई लिमिट नहीं छोडी। दूसरा फिल्म की कहानी ही वीक थी और सारे टाइप कैमरा रणबीर और सोनम के आजू बाजू ही रहा।
तीसरा कोई भी भारतीय दर्शक हीरोइन को हीरो को छोडकर किसी और फिल्म में सलमान के साथ जाते हुए नहीं देखना चाहता और फिल्म इसी अनहैप्पी एंडिंग के साथ खत्म होती है। अगर शादी होनी ही नहीं थी (जैसा कि नहीं होना चाहिए था), तो भंसाली भाई साहब ने हीरोइन के फुदकने लटके-झटके और दोनों के प्रणय संबंधों में इतना टाइम कयों खराब किया। हीरोइन किसी ऐसे आदमी के साथ चली गई जिसके साथ कुल तीन सीन और एक डायलॉग दिखाया हो।
इंडस्टीवालों रानी से क्या चाहते हो
फिल्म में रानी मुखर्जी को वेश्या के किरदार में दिखाया गया है। इससे पहले लागा चुनरी का दाग में भी वे कमोबेश इसी लुक में थीं। गुलाबजी नाम के किरदार से वे फिल्म में रणबीर राज यानी सांवरियां पर मरती है, लेकिन वे वेश्या से प्यार न करने लग जाए इसलिए खुद ही वहां आने पर पिटवा डालती हैं। उन पर फिल्माया गया गाना ‘छबिला रसीला’ के बोल बहुत ही प्यारे हैं और फिल्म इसी गाने में हैप्पी-हैप्पी फील कराती है।
शायद इसीलिए महंगे हुए तौलिए
पता नहीं कुछ दिन पहले एक जानी मानी कंपनी ‘वेलस्पन’ का तौलिया खरीदकर लाया, उसका एमआरपी सिर्फ 549 रुपए था। तब मुझे लगा कि शायद तौलिया महंगा है, लेकिन उसकी महंगाई का राज मुझे सांवरिया देखने के बाद पता चला। लगता है सारे लडके ‘जबसे तुझे देखा’ गाने पर तौलिए में डांस कर रहे हैं।
वैसे कपूर खानदान का लडका इतना अच्छा डांसर निकला बधाई हो रिषीजी और नीतूजी। अपन ने जो बेमतलब पंचायती की उसकी भी तो समीक्षा कर दीजिए
5 comments:
राजीव भाई
मुझे लग रहा है कि हमारे यहाँ की जनता फ़िल्म देखने सिर्फ टाइम पास के लिए जाती है. और इससे ज्यादा नहीं.. और हैप्पी एंडिंग वाला भी एक बड़ा मामला हैं...फ़िल्म मुझे सही लग रही है क्यूंकि इसमे नयापन हैं
मुझे तो ये फ़िल्म इतनी घटिया लगी, कि अब कोई फ़िल्म देखने के लिये १० बार सोचना पड़ेगा । :-)
टाइम पास करना ही मुश्किल पड़ गया था ।
ऐसा लग रहा था कि फ़िल्म दर्शको को चिढ़ाने के लिये बनाई गयी है ।
सही है.. और अगर सावरिया से इतनी शिकायत है तो ओएसो मत ही देखना..
राजीव, एक और अच्छी समीक्षा के लिए बधाई, तौलिया डांस का किस्सा मजेदार है . ॐ शान्ति ॐ मैंने देखि है समीक्षा लिखूं क्या.:-)
राजीव भाई
प्रयोग जब सफल हो जाए तो महान, अद्भुत कहलाता है ,और व्यक्ति जीनिअस तथा दूरदर्शी ,प्रयोग जब असफल हो जाए तो मूर्खता और व्यक्ति ....
ग़लत बोला अपुन ...
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