Saturday, December 8, 2007
अपन को उल्लू समझा क्या
समझदारों को ज्यादा समझाने की जरूरत नहीं है।
बस इतना समझ लीजिए की यह चित्र मुंबई के लोगों के लिए डीएनए के फोटो जर्नलिस्ट मुकेश त्रिवेदी ने मुंबई में खींचा और जयपुर के सिटी भास्कर के लिए यही फोटो जेएलएनमार्ग जयपुर का हो गया। अब खींचा किसने ये अपन को पता नहीं। डीएनएन के मुंबई संस्करण में यह चित्र 4 दिसंबर को पेज एक की लीड न्यूज में लगा वहीं सिटी भास्कर जयपुर में 5 दिसंबर को अंतिम पेज पर जेएलएन मार्ग का बताया गया।
लगता है ये मंगलवार 3 दिसंबर 2007 की सुबह मुंबई में थे और बुधवार 4 दिसंबर 2007 को जेएलएन मार्ग जयपुर में ।
तभी तो कह रहे हैं चिल्स इल्स और पिल्स
( सभी पत्रकार मित्रों से क्षमा सहित, भई क्या करुं कमबख्त इधर उधर झांकने की आदत है सहन नहीं होता। एक सलाह - कम से कम किसी अखबार की पेज एक की लीड फोटो तो मत उडाया करो, ध्यान पड ही जाता है)
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13 comments:
दोनो अखबारों के मालिक एक है, तो सोचा होगा, एक खर्चे में दो को निपटा दो :)
बहुत खूब. बहुत बढिया पोस्टमार्टम कर लेते हैं आप. बधाई.
arre sir kitni parkhi nazar hai aapki, kya dimag paya hai. nazar na lage aapko.
actually maliko ko aksar yai galfahemi rahti hai ki unke newspaper kai alawa koi aur dur tak dekht anahi hoga.unse ya galti ho gai ki unhe aapka saath jayada nahi mil paya warna aaise galti kabhi nahi hoti.
सटीक पकड़ा है बावा
आपका पोस्टमार्टम अच्छा लगा. समाझादारो को इशारा काफी होता है. लगता है कि नेट वालो की तरह चुरा कर अखबार वालो की भी कापी पेस्ट करने की आदत हो गई है
वाह राजीव क्या कमाल की नजर पाई है, मजा आ गया
जबरदस्त और सटीक.
संजय बेंगानी जी बात सही है.
intlectual idea to thik hai. par aapki tej najar se bachna hoga bhai..................
यह कौन सी बड़ी बात बता दी भई. अपने हमपेशा लोगों के बारे में लिख कर क्या हासिल कर लिया? ऐसी कुंठित विचारधारा सिर्फ पत्रिका वालों में ही है लेकिन आप वहां के भी नहीं लगते. अपने अखबार का नाम बताने में शर्म आती है क्या जो सिर्फ एक अखबार लिख रखा है बंधु?
@ Anonymous said...
भाई साहब आप जो भी हैं मेरे लिए भगवान से कम नहीं हैं आप मेरे ब्लॉग तक आए
और यहां टिप्पियाए इसके लिए धन्यवाद। पर शायद आपको नहीं लगता कि इतना गुस्सा दिखाते दिखाते आप अपना नाम भी बता जाते तो शायद आपसे अलग से क्षमायाचना कर लेता। और संभव होता तो चाय की थडी पर बैठकर मार्गदर्शन लेता।
वैसे मेरी गलती इतनी भर है कि आपके ही दो अखबार नियमित रूप से देखता हूं। ऐसा नहीं था की यह दुर्घटना पहली बार हुई है, आज से पहले स्टोरी आइडिया के नाम पर पूरी की पूरी स्टोरी अनुवाद करके लगाई गई या एटिड पेज पर कार्टून भी ऐसा लगाया जो सिर्फ मुंबई के लिए ही था। लेकिन मैंने कभी कुछ नहीं लिखा, क्यूंकि गलती से मैं भी आपके ही पेशे से हूं। मुझे पता है कि अपन लोगों की पेशेगत क्या मजबूरियां है। जब पेज खाली दिखते हैं तो उनको भरना जरूरी होता है, चाहे खबर मुंबई की हो या इलाहबाद की, लेकिन आप मानें या न मानें कम से कम मुंबई की रोड को जेएलएन मार्ग लिखना तो कहीं से भी पत्रकारिता नहीं है।
फिर भी आप मेरे ब्लॉग तक आए और इतना कष्ट किया उसके लिए मैं आपका आजीवन आभारी हूं। पर नाम बता देते तो दुरुस्त होता।
आपका हमपेशा दोस्त
राजीव जैन
Good Rajeev,
I know this is not a very big thing for you as you have always been to find something extra. But make sure you never indulge into such stuffs only.
With Lots of wishes
Vikas
अरे बाप रे राजीव भाई खुदा बचाए आप जैसे पत्रकारों से ,शुक्र है दोस्ताना है आपसे
राजीव यार तुमने तो धो डाला...पाठकों को कम से कम पता चलना चाहिए कि हम उनके नाम पर क्या क्या उल्टा सुलटा करते हैं.
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