Tuesday, February 5, 2008

मुंबई क्‍या राज ठाकरे की बपौती है

क्‍या मुंबई या महाराष्ट्र पर अकेले राज ठाकरे का राज है।
मुझे ये समझ नहीं आता कि राज का समर्थन कर रहे और उसके समर्थन में उत्‍तरी भारतीय लोगों व्‍यापारियों को पीट रहे देश के उन लोगों में जरा भी बुदि़ध नहीं है या पॉलिटिक्‍स के चक्‍कर में सारी बेच खाई है।
वैसे मुंबई क्‍या अकेले राज ठाकरे की है। यह भारत की आर्थिक राजधानी है। उसके निर्माण में उतना ही योगदान एक राजस्‍थानी का है, जितना मराठी का है। उतना ही एक बिहारी का।
क्‍या मुंबई की फिल्‍म इंडस्‍टी सिर्फ मुंबई या महाराष्ट्र के भरोसे चल रही है। क्‍या उसमें यूपी और झारखंड का कोई योगदान नहीं है। क्‍या ये शेयर मार्केट, जिसका गढ मुंबई में है, उसमें देश के दूसरे राज्‍यों के लोग कारोबार नहीं करते। क्‍या उसमें किसी और का रुपया नहीं लगा हुआ।
क्‍या मुंबई में आफिस बनाकर स्‍टार टीवी या सीएनबीसी देश की खबरें नहीं दिखाता।
क्‍या मराठी शरद पवार के फैसले को सारे देश के क्रिकेटप्रेमी नहीं झेलते।
क्‍या सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर महाराष्ट्र की बपौती है, क्‍या इन पर राज ठाकरे का अकेले अधिकार है।
उत्‍पाती लोग सिर्फ ये दो लाइन पढ लें, कि अगर जो आप मुंबई में उत्‍तर भारतीयों के साथ कर रहे हैं अगर यह काम सिलिकॉन वैली में अमेरिका वालों ने कर दिया तो क्‍या होगा।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना वाले बद दिमाग लोगों हम तो कम से कम एक ही देश के वासी हैं। हमारे देश में ही अगर दूसरे राज्‍य के लोगों के साथ ऐसे मारपीट होगी तो जो भारतीय विदेशों में बसे हैं, उनकी सुरक्षा की क्‍या गारंटी होगी। वे करोडो हिंदुस्‍तानी जो भारत से बाहर वर्षों से रह रहे हैं, उनका क्‍या होगा। आईटी कंपनियां और उनमें काम करने वाले लोग, जिन्‍हें हमारी मजबूत अर्थव्‍यवस्‍था का हिस्‍सा माना जाता है, उनका क्‍या होगा।

7 comments:

Ashish Maharishi said...

जनाब राज ठाकरे तो ऐसा ही समझते हैं कि महाराष्‍ट्र उनके बाप और ताऊ की जागीर है,

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

राजीव जी,
आपकी व्यथा एकदम सही है. लेकिन क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि पिछले कुछ वर्षों में हमारे देश में अनेक मामलों में ऐसा हो रहा है. कभी धर्म के नाम पर, कभी जाति के नाम पर लोग जैसे ठेका ले लेते हैं और फिर सारी कानून व्यवस्था की ऐसी तैसी कर डालते हैं. मामला चाहे आमिर खान से जुडा हो (फ़ना) या हालिया ऐश्वर्या से(जोधा अकबर) या थोडा पहले वन्दे मातरम से, चन्द लोग जैसे पूरे समाज पर अपनी मनचाही थोप डालते हैं. आखिर किसी को भी यह हक़ कैसे हो जाता है कि वह यह फतवा जारी करे कि इस देश में रहना है तो वन्दे मातरम कहना होगा? कोई भी वर्ग या समूह आमिर खान को क्यों बाध्य करे कि वह नर्मदा बचाओ आन्दोलन के साथ अपनी एकजुटता न दिखाए? इसी तरह का विवाद अभी राज ठाकरे ने खडा किया है. दुख की बात यह कि जिन सरकारी एजेंसियों पर हमारी सुरक्षा का दायित्व है वे सब ऐसे मामलों में हाथ पर हाथ धर लेती हैं. राजस्थान में एक जाति विशेष के कुछ लोग कह रहे हैं कि वे जोधा अकबर नहीं चलने देंगे, और सरकार उनका बाल भी बांका नहीं कर रही. आखिर हम कैसे समाज में रह रहे हैं? यह सभ्य समाज तो नहीं है.

Kirtish Bhatt said...

देखिये यूं पी में स्कूल की जरूरत थी सो बिग बी ने खुलवा दिया. अब उन्हें चाहिए की मुम्बई में भी थोडी चेरिटी करें और एक मानसिक चिकित्सालय खुलवा दें. भर्ती किन्हें करना है कहने की ज़रूरत नही.

दिनेशराय द्विवेदी said...

भारतीय समाज सभ्य ही है। लेकिन जो यह व्यक्तिवादी राजनीति है उस ने असभ्यता की तमाम सीमाओं को तोड़ डाला है।

Astrologer Sidharth said...

राजीव जी आपने सवाल सही उठाया है। कुछ दिन पहले आपने जार्ज बुश के भाषण का अंश पढा होगा जिसमें उन्‍होंने कहा कि उठो पढो लिखो अमरीकियों वरना भारतीय और चीनी लोग तुम्‍हारी नौकरियां छीन लेंगे
बुश ने सभ्‍य तरीके से कहा और राज ठाकरे आदिम तरीके से यही काम कर रहा है।
दोनों की परस्थितियों में डर वही है अस्तित्‍व के संकट का
मारवाडी आसाम और पश्चिम बंगाल में गए वहां धंधे किए जब वहां के लोगों को पैसा बना रहे मारवाडी अखरने लगे तो उन्‍हें मार भगाया गया
अब उत्‍तर प्रदेश और बिहार के लोगों के साथ महाराष्‍ट्र में हो रहा है
कुछ समय बाद राजस्‍थान गुजरात और मध्‍यप्रदेश में भी ऐसा ही कुछ हो सकता है
अस्तित्‍व की लडाई में वोट की राजनीति घुस गई है और कुछ नहीं
किसी को कहीं से भी बाहर नहीं निकाला जा सकता बशर्ते स्‍थानीय लोगों का हक क्षुद्र व्‍यावसायिक मानसिकताओं के साथ छीन नहीं लिया जाए।

बोधिसत्व said...

भाई मुंबई जितनी उनकी है उतनी ही अपनी भी है....

suresh said...

Dear Rajeev ji

Very good.

Thanks

Suresh Pandit
Biharssangathan@yahoo.com