Thursday, April 24, 2008

बिना टिकट ब्लेयर


टोनी ब्लेयर पिछले साल तक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे।वह सबसे लंबे समय तक वहां के प्रधानमंत्री तो रहे ही, बल्कि उनके नेतृत्व में लेबर पार्टी ने लगातार तीन चुनाव जीते, जो एक रिकॉर्ड है। और अब भी टोनी ब्लेयर संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय यूनियन, अमेरिका और रूस के पश्चिम एशिया में विशेष दूत की जिम्मेदारी निभाते हैं। मतलब यह कि प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद भी वैश्विक परिदृश्य में टोनी ब्लेयर का महत्व कम नहीं हुआ है, बल्कि बढ़ा ही है। लेकिन यही ब्लेयर बीते दिनों एक ट्रेन में बिना टिकट पाए गए! जिस हीथ्रो एक्सप्रेस में वह सवार हुए थे, उसमें ट्रेन में भी टिकट बनवाने की सुविधा है। लिहाजा टिकट न होने पर रेलवे अधिकारी ने ट्रेन में टिकट बना तो दिया, लेकिन पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री की जेब में किराये के 24.50 पाउंड भी नहीं थे! वह तो भला हो ब्लेयर के सहयात्री का, जिसने उनके टिकट के पैसे दे दिए। बहुतेरे लोग होंगे, जो इस मामले में ब्लेयर का समर्थन नहीं करेंगे। लगभग सात साल पहले टोनी ब्लेयर की पत्नी भी लंदन ब्लैकफि्रयर्स से ल्यूटन तक बिना टिकट यात्रा करते हुए पकड़ी गई थी, और उन्हें जुर्माना भरना पड़ा था। ऐसा भी नहीं है कि प्रधानमंत्री पद से हटने के बादब्लेयर के पास पैसे का टोटा हो गया है। आंकड़े बताते हैं कि पिछले करीब एक साल में भाषणों से ही उन्होंने करीब चार करोड़ रुपये कमाए हैं। अलबत्ता इस घटना का एक दूसरा पहलू भी है। सवाल यह है कि क्या हमारे यहां कोई राजनेता ऐसी शमिZदगी से दो-चार होता है? कतई नहीं। इसका मतलब यह नहीं कि हमारे यहां के राजनीतिज्ञ ज्यादा ईमानदार और नैतिक हैं। बल्कि उनमें से कुछ तो इतने बेईमान हैं कि अपना कूपन तक बेच देते हैं, अपनी जगह अपने रिश्तेदारों को सफर करवाना अपना अधिकार समझते हैं। अगर उनके पास टिकट न हो, तो भी कोई उनसे टिकट मांगने की जुर्रत नहीं करता। लेकिन वर्ष 2001 में चेरी ब्लेयर को जब ट्रेन में बिना टिकट पकड़ा गया था, तब उनके पति प्रधानमंत्री थे! यानी वहां कानून सबके लिए बराबर है। लेकिन हमारे यहां यह सिर्फ कहने के लिए है। यहां तो रेल मंत्री के रिश्तेदारों की सहूलियत के लिए ट्रेन के प्लेटफॉर्म तक बदल दिए जाते हैं। विधायकों-सांसदों की सहूलियत के लिए आम यात्रियों को परेशान किया जाता है। विद्रूप देखिए कि लोकतंत्र का मौजूदा मॉडल हमने ब्रिटेन से ही लिया है। फिर भी दोनों में कितना बड़ा फर्क है। एक देश का पूर्व प्रधानमंत्री आम आदमी की तरह ट्रेन में सफर करता है, और टिकट के पैसे न होने पर शर्मसार हो जाता है। बिलकुल हो सकता है कि उन्होंने बेध्यानी में अपनी जेब में रुपये ही न रखे हों। और एक हमारा देश है, जहां कितने ही पूर्व मंत्रियों पर हवाई यात्रा के करोड़ों रुपये बकाया हैं। हम ब्लेयर पर हंसे या खुद पर रोएं?
(अमर उजाला के संपादकीय से साभार)

1 comment:

rakhshanda said...

हंसने और रोने से ज़्यादा हमें अपने ग्रीबान में झांकना चाहिए और थोड़ा सा सबक लेने की कोशिश करनी चाहिए,थोड़ा सा भी शर्म आसके तो बहुत अच्छा होगा..