Wednesday, August 20, 2008

कुछ करिए, इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा





आज का दिन सही मायनों में आजादी के बाद का खेल दिवस है। यूं हम हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के जन्मदिन 29 अगस्त को खेल दिवस के रूप में मनाते जरूर हैं, लेकिन इस दिन रस्म अदायगी के अलावा क्या होता है, यह किसी से छुपा नहीं है। इस एक दिन खेल को श्रद्धांजलि देने व खेल व युवा मंत्रालय के नाम पर भारी भरकम महकमा रखने के अलावा हमारे देश में खेल और खिलाडि़यों के लिए क्या किया जा रहा है, इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।अपने देश के खेल मंत्री की हालत यह है कि वो राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित और ऑल इंडिया इंग्लैंड चैंपियनशिप विजेता बैडमिंटन खिलाड़ी पी गोपीचंद तक को नहीं पहचानते।हम मीडिया वाले भले ही खुद की तारीफ कर लें, बॉक्सिंग में विजेंद्र कुमार क्वार्टर फाइनल में पहुंचने के बाद टीवी पर सेमीफाइनल मैच के दौरान स्कोरिंग कैसे होती है, यह ढूंढते रहे।


इससे भी ज्यादा बुरा तो कुश्ती 56 साल बाद पदक दिलाने वाले सुशील कुमार के साथ हुआ। बीजिंग में 20 अगस्त को अपने पहले मुकाबले में यूक्रेन के पहलवान एंड्री स्टेडनिक से हारने के बाद कई मीडिया एजेंसियों ने उन्हें ओलंपिक से बाहर बता दिया। यानी हमारे ज्यादातर साçथयों को इस बात की जानकारी ही नहीं थी कि इन मुकाबलों में स्कॉरिंग किस तरह होती है। दुनिया के तीसरे नंबर के पहलवान स्टेडनिक से हार के बावजूद सुशील के पास कांस्य जीतने का मौका था और इसके लिए उन्हें उन पहलवान को हराना था, जिनको स्टेडनिक हरा चुके थे। रिपेचेज राउंड में सुशील का पहला मुकाबला दुनिया के पांचवें नंबर के अमेरिकी पहलवान डग सचवेब से था और सुशील इसमें कामयाब रहे। फिर बेलारूस के अल्बर्ट बेट्रोव और कजाखस्तान के çस्प्रडोनोव को हराकर उन्होंने कांस्य जीत लिया। सुबह एक मुकाबला हारने के बाद तीन-तीन पहलवानों को धूल चटाकर कांस्य जीताना वाकई बड़ी उपलçब्ध है।

हां, यह बात जरूर है कि क्रिकेट के पीछे भाग रहे लोगों का ध्यान अब बॉक्सिंग, निशानेबाजी और कुश्ती की ओर जरूर जाएगा। इसलिए अब सही वक्त है कि खेलों के विकास के लिए कुछ किया जाए, इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा।

(कार्टून सौजन्य : मिड डे, डेली न्यूज़)

3 comments:

Udan Tashtari said...

सही है!

Anonymous said...

Waise cricket ko sir per media ne hi chadaya h...

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

वाकई इन ओलम्पिक्स ने भारत में क्रिकेट के अलाव दूसरे खेलों के लिए भी लोगों के मन में आशाएं जगाई हैं। कम से कम मेरे जैसे लोग तो इन सब से बेहद खुश हैं पर चाहती हूं कि भारत पदक तालिका में सबसे ऊपर आए।