Thursday, April 23, 2009

असमंजस, क्‍या हम सही हैं?

आफिस के बाद आजकल रोज चाय पीने का चस्‍का लग गया है। हम लोगों की एक मंडली भी तैयार हो गई है, जो अमूमन रोज चाय पीने जाती हैं। दो बजे के बाद सुबह लगभग चार बजे तक यहां बैठना हमारी आदत में शुमार हो गया है।
रोज वहां चाय के बहाने अड्डा जमाने से हम लोगों की चायवाले (जो दुकान पर चाय बनाता है) से भी जान पहचान हो गई है। पीने को पानी मांगते हैं तो ज्‍यादातर एक प्‍लास्टिक की बोतल थमा देता है। चार चाय बोलेंगे मन हुआ तो छह बनाकर ले आता है।
अभी कल परसों ही पता चला उसके ठंडे और पानी के अच्‍छे टेस्‍ट का राज। भाई ने बताया कि बस फ्रीजर से बोतल निकाली ढक्‍कन हटाया और रैपर फाडकर फेंकने से बिसलरी की बोतल पानी की आम बोतल में बदल जाती है।
मुझे एकाएक झटका लगा कि क्‍या हम रोज बिसलरी पी रहे हैं।
कल चाय पीने सिर्फ हमारी बेचलर्स यूनियन (मैं, तरुण और ऋचीक)
ही गई थी। हमने सोचा कि इस भाई को समझाया जाए कि क्‍यूं मालिक को चूना लगा रह। है। बातचीत की तो बोला, इतना काम करता हूं पता नहीं सेठ का कितना फायदा कर देता हूं। दिन भर लोगों को लूटते हैं अब आप लोगों को ठंडा पानी और अच्‍छी चाय पिला देते हैं तो इस सेठ का क्‍या बिगड जाएगा।

(कल ऋचीक ने खासतौर पर यह पोज खिंचवाया )
बातचीत और समझाइश का दौर चला तो पता चला कि वो तो अपने तरुण भाई के गांव के पास का ही रहने वाला है।
कहने लगा आप लोग इस चाय वाले को याद तो रखोगे। फिर अपने सेठ के कारनामे बताने लगा कि कैसे तीन रुपए की चाय पांच रुपए और दस रुपए कि ठंडी बिसलरी बीस रुपए में बेची जाती है। सेठ कहां ले जाएगा इतने पैसे थोडे आप लोगों पर खर्च हो जाएंगे तो सही रहेगा।

कल यह सब पता नहीं था, कल ही आधा ब्‍लॉग लिख चुका था पर आधी बात आज जानीं। अब तय नहीं कर पा रहा कि वो अकेले ही गलती कर रहा है या हम भी उसके काम में शामिल होकर और बुरा कर रहे हैं। वैसे तो मुझे लगता है कि शायद हमारे प्‍यार से बोलने और हमारी गपशप चायवाले को सुकून देते हों। रातभर की उसकी माथाफोडी में हम उसे अच्‍छे लगने लगे हों। पर मैं खुद तय नहीं कर पा रहा कि हम गलत हैं या सही।

14 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

अब ई सब कौन सोचता है जी. आप तो बस पीजिए बोतल.

Udan Tashtari said...

इतना तो चला लो यार..आखिर गाँव वाला है. नैतिकता के आधार पर बहुत कुछ गलत है पर आज के समय में-चलता है..पानी पीजिए!!

Anonymous said...

ठंडे पानी का मजा लो यार ,पर जो प्रश्न दिल मे उट रहा है उस का उत्तर यही है की आप उस को समझा कर उस की ये हरकत बंद करवादै , बात उस के मालिक की नहीं आप की है ........................

prashant said...

Anonymous मे हम ही है

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

यह है एक छोटे आदमी का नैतिकता बोध! आप का चाय वाला अपने मालिक की मुनाफाखोरी को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है और अपनी तरह से उसका प्रतिरोध कर रहा है, यह तो हुआ बात का एक पक्ष. दूसरा पक्ष आपके असमंजस वाला है. आपकी हिचकिचाहट को मैं बहुत आदर देता हूं. हम क्यों वह प्राप्त करें जिसके हम हक़दार नहीं हैं, या जिसका मोल हमने नहीं चुकाया है. आप प्यार से अपने चाय वाले को समझा सकते हैं कि उसकी भावनाओं का आप आदर करते हैं,

cma said...

aap 2 9 hi apni apni jagah sahi ho sar,
dont worry chaye pijiye aur chaye wale ko apni baato aur saath ka sukun dijiye.

GKK said...

mast hai, tum load mat lo, tusi kuch galat nahi kar rahe, tum apne bache kuche bachelor din achche se enjoy karo chai peekar,

Kapil said...

दोस्‍त, बहुत पुरानी कहावत है जैसे को तैसा। 10 का सामान 20 में बेचने वाले के लिए नैतिकता किस काम की। वह तो मौका आने पर किसी से 30 क्‍या 40 भी वसूल लेता होगा। क्‍या आपको कभी बस अड्डे या स्‍टेशन या हाईवे पर इनकी कालाबाजारी नहीं दिखी। उसके नौकर की समझ एकदम क्‍लीयर है, जो लुटेरा है उसे लूटने में कुछ गलत नहीं है। वैसे यह मिडिल क्‍लॉस नैतिकता हममें भरी जाती है।

Anonymous said...

यार क्यों उस गरीब की नौकरी लेने पर तुले हो. कहीं मालिक ने ब्लॉग देख लिया तो ? आके डेरा जमा देगा बजाज नगर में. फिर कहोगे आ गयी बिन बुलाई आफत. खैर पोस्ट अच्छी है मजेदार.

cartoonist ABHISHEK said...

मुझे 'स्लम डॉग' याद आ गयी
उसमें सलीम नामक किरदार कों एक रेस्तरां में
मिनरल वाटर की खाली बोतल में, बर्तन धोने वाले नल के पानी को भरकर
उसके ढक्कन की सील कों 'क्यू फिक्स' से चिपकाते दिखाया है...

अतः मुझे ये 'चायवाला भाई'
भला आदमी दिखाई पड़ रहा है....

चुप-चाप पियो और उसे दुआएं दो...
वरना अपना इन्क्रीमेंट लगवाने के लिए ये चायवाला भाई भी
तुम्हे.. गटर का (जयपुर में इसे नल का पानी बोलतें हें)

cartoonist ABHISHEK said...

पानी पिला सकता है........

sandeep sharma said...

ये फोटो में तो अरी.............चीक है (संपादक साहब के अनुसार) लेकिन ये बिलकुल भी सही नहीं है, के रात के चार-चार बजे तक फोकट का पानी और कमीशन की चाय पीते रहते हो... अगले बाल दिवस पर उस चाय वाले बच्चे की अरेंज फोटो भी करवाने वाले हो, बर्तन धोते हुए... ये भी मालूम है...

TARUN JAIN said...

agarwal sahab ne sahi kaha hai wo hi is samsya ka nidan hai

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

बहुत बढ़िया, लेकिन मेरा सुझाव रात चार बजे वाला कार्यक्रम अब थोड़ा जल्दी निपटाओ भाई, वरना आफिस की नौकरी के बाद घर की नौकरी मुश्किल हो जाएगी