बुधवार को ऑफ था और `वेलकम टू सज्जनपुर´ देखकर मनाया। श्याम बेनेगल ने ग्रामीण पृष्ठभूमि पर खूबसूरत फिल्म बनाई है। (अब आप यह मत कह दीजिए कि राजीव आजकल कोई काम-वाम है कि नहीं, फिल्में ही देखते रहते हो। पता नहीं ऐसा कैसे हो गया, इस महीने कई फिल्में देख डालीं और आपकी किस्मत देखिए कि फिल्में थी भी अच्छीं।)
तो अब सुनिए कहानी
`वेलकम टू सज्जनपुर´ कहानी है एक गांव की, जहां इकलौता महादेव यानी श्रेयस तलपड़े ग्रेजुएट है, गांव के बाकी लोग उससे अपनी चि_ी लिखवाने और पढ़वाने आते हैं, अब यही उसका धंधा हो गया है। इसलिए सारे गांव का दुख दर्द और खुशी की खबरें उनके पास रहती है। पिछली कई फिल्मों की तरह (ए वेडनस डे, बचना ए हसीनो) यह फिल्म भी फ्लैशबैक में है। चि_ी लिखवाने आए लोगों से बातचीत के साथ-साथ ही फिल्म पीछे भी चलती रहती है। महादेव के पास एक दिन उनकी दूसरी क्लास की क्लासमेट कमला (अमृता राव)आती है। तब पता चलता है कि महादेव भी कितना रसिक हुआ करता था। फिल्म में एक सीन पर जरा गौर कीजिए।दूसरी क्लास का दृश्य है महादेव क्लास का सबसे होनहार बच्चा है। गुरुजी बाकी बच्चों को उसकी तरह बनने के लिए कहते हैं। उधर, कमला की हैंडराइटिंग सबसे खराब है। क्लास के बाद कमला, महादेव से कहती है कि तू मुझे अपनी तरह सुंदर लिखना सिखा दे तो मैं तुझे लaå दूंगी। शरारती महादेव कहता है `गाल के लaå खिलाएगी क्या´! कमला हां करती है और शरारती महादेव उसे `किस` कर देता है और टीचर के देखने पर बखेड़ा हो जाता है। यूं तो फिल्मों में `किस´ करना आजकल सामान्य सी बात है, पर इस फिल्म के लिहाज से सीन थोड़ा गड़बड़ सा लगता है।
हां तो कहानी आगे बढ़ती
हैकमला का पति (कुणाल कपूर) कमाने के लिए मुंबई गया हुआ है और कमला शादी के बाद चार साल से सास के साथ गांव में ही रह रही है। कमला खत लिखवाने और पढ़वाने के बहाने महादेव के पास आती रहती है और महादेव के मन में बचपन का प्यार जागने लगता है। अब उसके मन का खोट धीरे धीरे उसकी लिखी चि_ी में दिखने लगता है और वह उसके पति को उकसाने वाली चि_ी लिखता है कि उनका रिश्ता टूट जाए। लेकिन जब उसका जवाब आता है तो महादेव को पता चलता है कि कमला का पति बंसी उसे कितना चाहता है। पैसों के लिए वह गुदाü बेचने को तैयार है। बाद में महादेव को गलती का अहसास हो जाता है और वह अपनी जमीन गिरवी रखकर बंसी को पचास हजार रुपए सौंप देता है। बंसी और कमला झुग्गी खरीदकर एक साथ मुंबई रहने लग जाते हैं।
अब सुनिए गांव और कहानी
महादेव और कमला की कहानी के अलावा गांव में कई और कहानी साथ साथ चलती रहती हैं। उनमें से एक है ब्रिगेडियर की बाल विधवा बहू की कहानी। गांव के इकलौते हॉçस्पटल का कम्पाउंडर (रवि किशन) उसकी खूबसूरती पर फिदा है, इलाज कराने आती है तो दिल दे बैठता है। हालांकि ब्रिगेडियर ऐसा होने पर ख्ाुश है पर गांव वाले दोनों को फांसी पर लटका देते हैं।गांव में एक महिला (ईला अरुण) की बेटी को मंगल दोष है। उसको दूर करने के लिए कुत्ते से शादी कराई जाती है। `अपनी भी कोनो जिंदगी है कि नहीं´ का सैट फॉमूüला रखने वाली लड़की समझदार है वह मंडप से भाग आती है। फिल्म के लास्ट सीन में पता चलता है कि अब वह हीरो महादेव की पत्नी हो गई है।इन दो कहानियों से श्याम बेनेगल ने गांव में अंधविश्वास और रुçढ़वादी समाज को दिखाया है। इसके अलावा एक और कहानी है, जो लोकतंत्र में आस्था को और मजबूत करती है। गांव में दबंग के सामने कोई भी चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं रखता, सबसे मजबूत मुçस्लम दावेदार खुद को आईएसआई का एजेंट बताने पर नाम वापस ले लेता है, लेकिन लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए उन दबंगों के सामने एक किन्नर चुनाव लड़ता है। हालांकि उसे डराया धमकाया जाता है, लेकिन महादेव की मदद और गांव वालों के साथ के कारण जीत जाता है। यह एक सीन है जिसे ख्ाूबसूरती से फिल्माया गया है। फिल्म में किन्नर को चुनाव लड़ने पर दबंगों के डराने के बाद उसका आकर महादेव के पास रोना और उसकी मदद की गुहार करने वाला सीन श्याम बेनेगल ने दिल से फिल्माया है। अगर आप थोड़े भी संवेदनशील हैं तो रो सकते हैं।
फिल्म में गाने भी हैं, बोल अच्छे हैं। कुल मिलाकर फिल्म देखने लायक है।
बस एक बात, जो मुझे कई बार फिल्म में लगी कि क्या आज भी सज्जनपुर जैसा कोई गांव है!
तो अब सुनिए कहानी
`वेलकम टू सज्जनपुर´ कहानी है एक गांव की, जहां इकलौता महादेव यानी श्रेयस तलपड़े ग्रेजुएट है, गांव के बाकी लोग उससे अपनी चि_ी लिखवाने और पढ़वाने आते हैं, अब यही उसका धंधा हो गया है। इसलिए सारे गांव का दुख दर्द और खुशी की खबरें उनके पास रहती है। पिछली कई फिल्मों की तरह (ए वेडनस डे, बचना ए हसीनो) यह फिल्म भी फ्लैशबैक में है। चि_ी लिखवाने आए लोगों से बातचीत के साथ-साथ ही फिल्म पीछे भी चलती रहती है। महादेव के पास एक दिन उनकी दूसरी क्लास की क्लासमेट कमला (अमृता राव)आती है। तब पता चलता है कि महादेव भी कितना रसिक हुआ करता था। फिल्म में एक सीन पर जरा गौर कीजिए।दूसरी क्लास का दृश्य है महादेव क्लास का सबसे होनहार बच्चा है। गुरुजी बाकी बच्चों को उसकी तरह बनने के लिए कहते हैं। उधर, कमला की हैंडराइटिंग सबसे खराब है। क्लास के बाद कमला, महादेव से कहती है कि तू मुझे अपनी तरह सुंदर लिखना सिखा दे तो मैं तुझे लaå दूंगी। शरारती महादेव कहता है `गाल के लaå खिलाएगी क्या´! कमला हां करती है और शरारती महादेव उसे `किस` कर देता है और टीचर के देखने पर बखेड़ा हो जाता है। यूं तो फिल्मों में `किस´ करना आजकल सामान्य सी बात है, पर इस फिल्म के लिहाज से सीन थोड़ा गड़बड़ सा लगता है।
हां तो कहानी आगे बढ़ती
हैकमला का पति (कुणाल कपूर) कमाने के लिए मुंबई गया हुआ है और कमला शादी के बाद चार साल से सास के साथ गांव में ही रह रही है। कमला खत लिखवाने और पढ़वाने के बहाने महादेव के पास आती रहती है और महादेव के मन में बचपन का प्यार जागने लगता है। अब उसके मन का खोट धीरे धीरे उसकी लिखी चि_ी में दिखने लगता है और वह उसके पति को उकसाने वाली चि_ी लिखता है कि उनका रिश्ता टूट जाए। लेकिन जब उसका जवाब आता है तो महादेव को पता चलता है कि कमला का पति बंसी उसे कितना चाहता है। पैसों के लिए वह गुदाü बेचने को तैयार है। बाद में महादेव को गलती का अहसास हो जाता है और वह अपनी जमीन गिरवी रखकर बंसी को पचास हजार रुपए सौंप देता है। बंसी और कमला झुग्गी खरीदकर एक साथ मुंबई रहने लग जाते हैं।
अब सुनिए गांव और कहानी
महादेव और कमला की कहानी के अलावा गांव में कई और कहानी साथ साथ चलती रहती हैं। उनमें से एक है ब्रिगेडियर की बाल विधवा बहू की कहानी। गांव के इकलौते हॉçस्पटल का कम्पाउंडर (रवि किशन) उसकी खूबसूरती पर फिदा है, इलाज कराने आती है तो दिल दे बैठता है। हालांकि ब्रिगेडियर ऐसा होने पर ख्ाुश है पर गांव वाले दोनों को फांसी पर लटका देते हैं।गांव में एक महिला (ईला अरुण) की बेटी को मंगल दोष है। उसको दूर करने के लिए कुत्ते से शादी कराई जाती है। `अपनी भी कोनो जिंदगी है कि नहीं´ का सैट फॉमूüला रखने वाली लड़की समझदार है वह मंडप से भाग आती है। फिल्म के लास्ट सीन में पता चलता है कि अब वह हीरो महादेव की पत्नी हो गई है।इन दो कहानियों से श्याम बेनेगल ने गांव में अंधविश्वास और रुçढ़वादी समाज को दिखाया है। इसके अलावा एक और कहानी है, जो लोकतंत्र में आस्था को और मजबूत करती है। गांव में दबंग के सामने कोई भी चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं रखता, सबसे मजबूत मुçस्लम दावेदार खुद को आईएसआई का एजेंट बताने पर नाम वापस ले लेता है, लेकिन लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए उन दबंगों के सामने एक किन्नर चुनाव लड़ता है। हालांकि उसे डराया धमकाया जाता है, लेकिन महादेव की मदद और गांव वालों के साथ के कारण जीत जाता है। यह एक सीन है जिसे ख्ाूबसूरती से फिल्माया गया है। फिल्म में किन्नर को चुनाव लड़ने पर दबंगों के डराने के बाद उसका आकर महादेव के पास रोना और उसकी मदद की गुहार करने वाला सीन श्याम बेनेगल ने दिल से फिल्माया है। अगर आप थोड़े भी संवेदनशील हैं तो रो सकते हैं।
फिल्म में गाने भी हैं, बोल अच्छे हैं। कुल मिलाकर फिल्म देखने लायक है।
बस एक बात, जो मुझे कई बार फिल्म में लगी कि क्या आज भी सज्जनपुर जैसा कोई गांव है!
1 comment:
ओ नो अनदर मूवी, वो भी अच्छी, राजीव तुम्हारी रिकम्नडेशन पर मूवीज देखने लगे तो हर महीने तीन-चार फिल्में तो देखनी ही पड़ेंगी, पर अब अच्छी बता रहे हो तो देखनी ही पड़ेगी, हाल पर नहीं तो डीवीडी पर देख लेंगे।
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