Sunday, January 6, 2008

रूबरू तहलका के तरुण तेजपाल से


रविवार को जयपुर में पं: झाबरमल्‍ल स्‍मृति व्‍याखानमाला आयोजित की गई। इसमें तहलका के एडिटर इन चीफ तरुण तेजपाल मुख्‍य वक्‍ता थे। यह व्‍याख्‍यानमाला राजस्‍थान पत्रिका और माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्‍वविद्यालय की ओर से हर साल जयपुर में आयोजित की जाती है।
अपन भी उनको सुनने गए, भई दिल जीत लिया अपन के पोनी टेल वाले तेजपाल जी ने। उनका पूरा व्‍याखान सुनकर अपन को लगा कि वे न सिर्फ राजनीति और खबर की समझ रखते बल्कि धर्म और इतिहास में भी उनका हाथ तगडा वाला मजबूत है। अपन को लगा कि पत्रकारिता से जुडे लोगों को तो यह भाषण पूरा सुनना चाहिए था पेश है उनके व्‍याख्‍यान के कुछ अंश...

25 साल के पत्रकारिता अनुभव वाले तेजपाल भी बोले कि छोटे शहरों के युवा बडे शहरों के लडकों से कहीं ज्‍यादा होनहार होते हैं। इसलिए मैं हमेशा हिंदी बोलने वाले इन यूपी, बिहार, राजस्‍थान के लडकों को तरजीह देता हूं (हो सकता है राजस्‍थान तो इसलिए बोल दिया कि वे जयपुर में बोल रहे थे।)
उन्‍होंने कहा कि उन पर इमरजेंसी का इम्‍पैक्‍ट था, और वे देश की उस पहली पढी लिखी पत्रकार पीढी में से थे, जिन्‍होंने पत्रकारिता को ही बतौर करियर चुना। अपने अनुभव सुनाते हुए उन्‍होंने कहा कि उनके पिता चाहते थे कि वे ऑक्‍सफोर्ड में आगे की पढाई करें, लेकिन उन्‍होंने साफ कर दिया कि वो भारत में ही रहना चाहते है। वे जो करना चाहते हैं वो यही संभव था।
उन्‍होंने कहा कि सत्‍ता और पैसे के दुरुपयोग पर निगरानी रखना ही पत्रकारों का काम है। पत्रकारों का काम यह नहीं है कि अमिताभ क्‍या पहनते हैं, करीना का किससे चक्‍कर चल रहा है। यह मानव की सहज जिझासा हो सकती है, लेकिन पत्रकारीय धर्म नहीं है।
इसके अलावा उन्‍होंने एक मजेदार बात कही जिस पर युवा तो युवा बुर्जुगों ने भी हां में हां मिलाई कि बच्‍चों को बडों की बात सुननी चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे आंख मूंद कर उस पर विश्‍वास कर नहीं करना चाहिए।


पं: झाबरमल्‍ल, जिनकी स्‍मृति में यह व्‍याखानमाला आयोजित की गई।

भारत के सामने बढती चुनौतियों की बात करते हुए तरुण तेजपाल ने कहा कि सेनसेक्‍स के बढने को ही हमें समृदिध का प्रतीक नहीं मान लेना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि मैंने खुद भी न्‍यूज वीक में भारतीय विशेषांक में लिखा कि भारत में इकोनोमिक रिर्सजेंट हो रहा है, भारतीय खुलकर भी लोगों के सामने आ रहे हैं लेकिन अभी एक अरब 15 करोड के देश में सिर्फ 20 मिलियन लोगों के पास ही बताने के लिए नई कहानी है। देश के अस्‍सी करोड लोग आज भी 40 रुपए से कम रोजना में जिंदगी जी रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि उडीसा, मध्‍यप्रदेश, महाराष्‍ट और बिहार समेत पांच बडे राज्‍यों में गरीबों की संख्‍या हर साल बढती जा रही है। उन्‍होंने कहा कि देश में अनइक्‍वल सोसाइ‍टी है, इसलिए देश के करीब 32 फीसदी जिले नक्‍सलवाद के शिकार होते जा रहे हैं। सांप्रदायिकता बढती जा रही है।
उन्‍होंने कहा कि अंग्रेजी अखबारों में पहले रुरल ब्‍यूरो होता था, जो गांवों खेती से जुडे की इश्‍यूज को कवर करता था, लेकिन आज यह नहीं हो रहा। यह भयानक गलती है और इसमें सुधार की तुरंत आवश्‍यकता है।
उन्‍होंने कहा कि गरीब के लिए न्‍याय अलग तरह से होता है और अमीर के लिए न्‍याय अलग।
मीडिया को गरीब का साथ देना चाहिए क्‍योंकि अमीर के पास तो जुबान है, पैसा है वह अपनी बात आगे तक रख सकता है, लेकिन गरीब की बात को ही मीडिया को आगे रखना चाहिए। यानी सत्‍ता और पैसा नहीं है उसकी आवाज बननी चाहिए।


तहलका की कहानी तेजपाल की जुबानी
इस मौके पर तरुण तेजपाल ने कहा कि 2000 में डॉट काम के जमाने में वे तहलका डॉट कॉम लेकर आए, तो सिर्फ इसलिए कि वे नए जमाने में 1980 की तेज धार वाली पत्रकारिता का पैनापन लाना चाहते थे। उन्‍होंने कहा कि 13 मार्च 2001 को तहलका की ओर से ऑपरेशन वेस्‍ट ऐंड में हथियारों की खरीद में घूस के खुलासे के बाद तात्‍कालीन भाजपा सरकार हाथ धोकर अलोकतांत्रिक तरीके से उनके पीछे पड गई। उस समय तहलका की 120 की टीम सिर्फ चार लोगों में सिमट गई। साथी तीन लोगों को यातनाएं दी गईं, जेल में डाल दिया गया। इन 19 महीनों में उन्‍होंने वकीलों के चक्‍कर काटे और सरकार ने घूस लेने वालों के खिलाफ जांच बैठाने की जगह उनके खिलाफ ही वैंकटस्‍वामी कमीशन बिठा दिया। राम जेठमलानी समेत करीब 30 लोगों ने अलग अलग समय उनकी पैरवी की। उन्‍होंने कहा कि राम जेठमलानी की पैरवी के दौरान दो दिन में ही उन्‍होंने कमीशन को पूरी तरह उलझा दिया और आखिर सरकार को कमीशन रदद करना पडा।
उन्‍होंने कहा कि इसके बाद 2003 में आठ महीने तक पैसे उधार लेकर देशभर में घूमें और जनसभाओं में लोगों से समर्थन मांगा। इस दौरान उन्‍हें पता चला कि लोगों के दिल में तहलका के लिए इज्‍जत है और वे अन्‍याय के खिलाफ अवाज उठाते हुए किसी को देखना चाहते हैं।
इसके बाद उन्‍होंने 2004 में तहलका अखबार की शक्‍ल में शुरु किया। उन्‍होंने कहा कि शायद तहलका ऐसी पहली मीडिया एजेंसी थी, जो बिना लागत के शुरु हुई और 15 हजार लोगों ने एडवांस पैसे देकर तहलका की कॉपी सस्‍क्राइब कराई।
उन्‍होंने कहा कि उसके बाद जहीरा शेख के 18 लाख रुपए लेकर बेस्‍ट बेकरी मामले से पलटने वाली बात को ब्रेक किया।
संजय दत्‍त के मामले को जब तहलका ने खोला तो संजय के समर्थक कांग्रेसी और दूसरे सांसदों ने उनसे कहा कि संजय दत्‍त शरीफ आदमी है। पुरानी गलती के लिए उन्‍हें नहीं फंसाना चाहिए।, लेकिन न्‍याय दिलाने के लिए ही पत्रकारिता की आवश्‍यकता है इसलिए ही उन्‍होंने निजी जिंदगी में संजय को पसंद करने के बावजूद संजय के खिलाफ खबर की।

4 comments:

ghughutibasuti said...

अच्छी जानकारी दी है ।
घुघूती बासूती

Ashish Maharishi said...

यार राजीव एक बात कहूं हिन्‍दी प्रदेश वालों को कितनी तरजीह मीडिया में दी जाती है यह तुम भी जानते हो और मैं, फिर तेजपाल जी बोल रहे हैं तो थोड़ा बहुत गले के नीचे उतार लेते हैं लेकिन तहलका पूरी तरह अंग्रेजी में ही है

Sanjeet Tripathi said...

शुक्रिया बंधु इस विवरण के लिए!!


आशीष जी इंटरनेट पर तो तहलका का हिंदी संस्करण भी मौजूद है न!

anuradha srivastav said...

जानकारी के लिये धन्यवाद....