Monday, March 10, 2008

काश सच होता चक दे


बेहद शर्मनाक है यह बात कि हम अपने ही राष्‍टीय खेल में ओलंपिक के कवालीफाइंग दौर से ही बाहर हो गए। हमारा सबसे कट़टर प्रतिद्वंदी देश ओलंपिक की मेजबानी कर रहा है और हम उसमें अपनी टीम को भी नहीं भेज पाएंगे।

कमाल की बात है कि 1932 के ओलंपिक में हमने इसी ब्रिटेन की टीम को शिकस्‍त दी, जबकि हम उसी देश के गुलाम थे। और तो और हमारे दो फारवर्ड खिलाडी के डी सिंह बाबू और किशनलाल तो बिना जूते ही मैदान में पहुंच गए। उस फाइनल मैच में हमने ब्रिटेन को 4-0 से हराकर स्वर्ण पदक जीता था। 76 साल बाद हम इसी ब्रिटेन से महज क्‍वालीफाइंग मैच में हार गए। यानी हॉकी इतिहास का सबसे खराब प्रदर्शन, जिसमें हारकर हम पहली बार ओलंपिक में पहुंचने से भी चूक गए।

उधर हमारे कबीर खान यानी शाहरुख खान चक दे में महिला हॉकी का भला करके और बडे स्‍टार बन गए। पर आजकल क्रिकेट से कमाई में बिजी थे तो बेचारे इस हार पर शोक भी प्रकट नहीं कर पाए।
काश चक दे का सपना पूरा होता, यह फिल्‍म हकीकत बन पाती।

2 comments:

समयचक्र said...

कभी हमारे देश मे हाकी का स्तर काफी उचा था .व्यवसायिकता की होड़ के चलते लोगो ने क्रिकेट को जादा महत्त्व दिया जिसके कारण हमारे देश मे हाकी की और जादा ध्यान नही दिया गया जिसके लिए खेल जगत के कर्णधार जिम्मेदार है अब जरुरत है कि हाकी की ओर भी ध्यान दिया जावे . अब चक दे हाकी की जरुरत है

दिनेशराय द्विवेदी said...

संक्षिप्त और प्रभावी आलेख। इस विषय पर लिखने और मेरे ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद।