Sunday, September 21, 2008
क्या इनको लिफ्ट देनी चाहिए थी
रविवार का दिन था, दिन में घर पर ही फिल्म देखने के चक्कर में पहले ही थोड़ी देर से आफिस के लिए निकला। रास्ते में ऑफिस से एक चौराहे पहले लकड़ी थामे एक बुजुर्ग ने लिफ्ट मांग ली। मैं वैसे भी कभी लिफ्ट देने से मना नहीं करता, पर किसी बुजुर्ग को पहली बार लिफ्ट दी। हालांकि मुझे किसी को उसकी मंजिल तक पहुंचाने की खुशी थी, पर अनुभव कुछ ठीक नहीं रहा।हुआ यूं कि बाइक रोकते ही मैंने पूछा अंकल कहां जाना है। मैं सिर्फ अगले चौराहे पर पानी की टंकी तक जाऊंगा उसके पास ही मेरा आफिस है, वो बोले कि बस उससे थोड़ा आगे ही जाना है। मैंने कहा ठीक है, बैठ जाइए। बस बैठते ही अंकल लोगों को ड्राइविंग सेंस के लिए गाली देने लगे। चार कदम ही चले कि मुझे कहने लगे कि आराम से चलाओ। मुझे जहां तक जाना था, वहां उनको उतरने के लिए बाइक रोकी तो बोले बेटा जरा सा आगे है, डॉक्टर से मिलना है देर हो जाएगी, जरा छोड़ दो।हालांकि मुझे देर हो रही थी। (वैसे तो मैं ऑफिस टाइम से एक घंटे पहले ही आ गया था पर बॉस ने कुछ काम बता रखे थे इसलिए और पहले निकला था) खैर मैं उन्हें छोड़ने के लिए आगे बढ़ा तो यूनिवçर्सटी के प्ले ग्राउंड में बास्केटबॉल खेल रहे लोगों को एक नजर देखा, तो बुजुर्गवार बोले, क्या देख रहे हो। मैंने कहा अंकल देख रहा हूं किसका मैच हो रहा है। (हो सकता है मैं अपनी जगह गलत हूं, लेकिन अपनी आदत से परेशान हूं, रास्ते में हमेशा देखते हुए निकलता हूं कि कोई परिवर्तन या नई चीज)। वो बोले, मैच देखना है टीवी पर देखो, अभी तो चलो।मुझे गुस्सा आया पर क्या करता उम्रदराज थे, चुप ही रहा। आगे बढ़ा पूछा कहां छोडूं तो बोले थोड़ा सा आगे है। इस बीच उनके डायलॉग चलते रहे। मसलन आगे तेज रफ्तार में स्कूटी पर जा रही लड़की को देखकर बोले इस लड़की को चलाना नहीं आता फिर भी चला रही है, पर अपने को धीरे चलना है। उसके बाद थोड़े भीड़ भरे इलाके से गुजरा तो आगे झुंड में जा रहे राहगीरों को देखकर बोले, ये बिहारी हैं इनको नहीं पता कैसे चलना है। बस गांव से यहां आ गए हैं, न चलने का ढंग है न कुछ और। खैर मैं बिड़ला मंदिर से चला चला सेठी कॉलोनी के पागलखाने तक पहुंचकर पक चुका था। मेरा ऑफिस दो किमी पीछे छूट चुका था और उनके डॉक्टर का मकान नहीं आया। मैंने दो तीन बार पीछा छुड़ाने के लिए धीरे से कहा अंकल कहा गया आपका डॉक्टर का मकान। पर उन्होंने पांच किमी का सफर कराकर करीब-करीब ट्रांसपोर्ट नगर चौराहे के पास तक ले जाकर ही दम लिया। उतरते ही बोले, मैं तुम्हें उस रास्ते से लाया हूं, जहां ट्रैफिक सबसे कम था अब ऐसे ऐसे करके चले जाना, रास्ता तो जानते हो न। और बिना धन्यवाद दिए मकान में अंदर घुस गए!
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16 comments:
अजब लोग हैं..!!
सबसे बड़ी बात है कि सही गलत की पहचान कैसे हो............... क्या अनजान के लिए कुछ न करना ही बेहतर है ?
अभी तक लड़किओं को लिफ्ट देकर बड़ा खुश हुआ करते थे. अब बुजुर्ग को देनी पड़ गयी तो हाय तौबा...वैसे मजेदार रहा तुम्हारा ये अनुभव
मान गये आपके धेर्य को... बहुत झेला.. अगली बार लिफ्ट दोगे?
किसी बुजुर्गवार को अपने से ज्यादा स्मार्ट पाकर कोफ्त क्यों हो रही है दोस्त? थोड़ा अपने ऊपर भी हंस लो कि आज क्या खूब बीती।
लिफ्ट तो जितनी बार हो सके देते रहो, चाहे लड़की हो यार बुड्ढा. लेकिन गड़बड़ करने वाले को इस तरह नही छोड़ना था. उसकी माँ बहन किए बिना वापस लौट लिए ये तो उससे भी बड़ी गड़बड़ कर आए. कल बुड्ढा फ़िर किसी से लिफ्ट मांगेगा और उसके साथ भी ऐसा ही करेगा.
लिफ्ट तो जितनी बार हो सके देते रहो, चाहे लड़की हो यार बुड्ढा. लेकिन गड़बड़ करने वाले को इस तरह नही छोड़ना था. उसकी माँ बहन किए बिना वापस लौट लिए ये तो उससे भी बड़ी गड़बड़ कर आए. कल बुड्ढा फ़िर किसी से लिफ्ट मांगेगा और उसके साथ भी ऐसा ही करेगा.
किस्म किस्म के लोग किस्म किस्म की आदते ......लिफ्ट देना मत छोडिये ...किसी दिन .अच्छे लोग भी मिलेगे...
बिल्कुल देनी चाहिए थी लिफ़ट क्योंकि यह आपकी संवेदनशीलता है, किसी के व्यवहार के कारण क्या आप इसे छोड़ देंगे....नहीं न। तो आगे भी ऐसा ही करते रहिए, कोई बात नहीं अगर थोड़ा सा क
ष्ट सहना भी पड़े तो।
no problem because of him we understad that he was not right individual,further somebody else will be good............. hope
regards
भाई यहाँ दिल्ली नॉएडा आदि जगह तो किसी को लिफ्ट देने में ही डर लगता है कि लिफ्ट देने के बाद लुट जायें या ब्लैक मेल न हो जायें
ले गया बुड्ढा मजा...
fir bhi ache bane rahna aur lift dete rahna
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