`ए वैडनेस डे´ फिल्म में नसरुद्दीन शाह का यह डायलॉग तगड़ा हिट करता है कि जिस दिन कॉमनमैन का दिमागा खिसक गया तो आतंकवाद खत्म हो जाएगा। हाल के दिनों में आतंकवाद पर बनी यह सबसे नई फिल्म है। लेखक-निर्देशक नीरज पांडेय की इस फिल्म में नसरुद्दीन शाह और अनुपम खेर (प्रकाश राठौड़, कमिश्नर मुंबई पुलिस) ने दमदार अभिनय किया है। फिल्म का कथानक बहुत ही कसावट भरा हुआ है। फिल्म दिखाती है कि एक कॉमनमैन मोबाइल-लैपटॉप की मदद और अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति से किसी बिçल्डंग की छत पर बैठे बैठे ही मुंबई की पुलिस को बेवकूफ बनाकर तीन घंटे में किस तरह चार खूंखार आंतकवादियों को मरवा देता है। काम खत्म होने के बाद सब्जी का थैला लेकर लौट जाता है।
फिल्म शुरू होती है नसरुद्दीन शाह के पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखाने जाने से और वहीं से फिल्म इतनी तेज गति पकड़ती है कि अंत तक नहीं रुकती। फिल्म को देखकर लगता है कि अगर स्क्रिप्ट सॉलिड हो तो न तो आइटम सॉन्ग की जरूरत है और न ही बदनदिखाऊ दृश्यों की। दीपल शॉ जैसी गरमा-गरम हिरोइन के बावजूद फिल्म में एक भी `सीन´ छोडि़ए, गाना तक नहीं है। इसके बावजूद फिल्म कहीं भी बोर नहीं करती।
हालांकि, फिल्म में थोड़ा मनोरंजन दिखाने के लिए तीन डायलॉग है।
पहला : रिपोर्टर दीपल शॉ का बिजलीबाबा से इंटरव्यू
दूसरा : पुलिस मुख्यालय में हैकिंग के लिए बुलाए गए एक युवा का अपनी प्रेमिका को थोड़ी देर में आने के लिए आश्वस्त करना।
तीसरा : फिल्म में डॉन (तब तक पता नहीं चलता कि नसरुद्दीन शाह कौन हैं) को ऑफिस से लौटते वक्त पत्नी का सब्जी लाने का आग्रह।
फिल्म वास्तविकता के आसपास है, फिल्म दिखाती है कि आम आदमी में आतंकवाद के खिलाफ गुस्सा इतना ज्यादा हो गया है कि वह अब उससे अपने तरह से निपटना चाहता है। मुंबई में धमाकों के बाद गुस्साए नसरुद्दीन शाह इस बात का खुलासा भी करते हैं। कमिश्नर जब उनसे पूछते हैं कि वे बदला लेना क्यों चाहते हैं, क्या उनका कोई धमाकों में खोया है। वो कहते हैं हां, एक था नाम नहीं पता। बस रोज ट्रेन में मिलता था, मुस्करा देता था, कल ही उसने अपनी रिंग दिखाई कि उसकी शादी होने वाली है। शुक्र था कि धमाकों के दिन मेरी ट्रेन मिस हो गई और वे बच गए।
क म ही फिल्मों में दिखने वाले जिम्मी श्ोरगिल ने भी एटीएस में इंस्पेक्टर के रॉल को बखूबी निभाया है। डायरेक्टर ने फिल्म में छोटी छोटी बातों का बड़ा ख्याल रखा गया है मसलन मुçस्लम आतंकवादियों से बात करते वक्त पुलिस अधिकारी का ताबीज छुपाना ताकि कहीं उसे भी यह न लगे वह भी मुसलमान है।
(मेरी सलाह है कि आप फिल्म जरूर देखें, इसलिए कहानी जानबूझकर नहीं लिख रहा हूं ताकी आपका मजा रहे बरकरार)
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9 comments:
sehmat hai aapke vicharo se..achhi film hai..a must see
देखते हैं।
जरुर साहेब!! देखेंगे फिर बतायेंगे भी कि कैसी लगी.
देखनी पड़ेगी।
लगता है अब तो देखनी ही पड़ेगी...तो टिकेट कब भिजवा रहे हैं आप/
mujhe bhi kai logon ne dekhne ko kaha hai ...ab to dekhna pdegi
नासूर चाहे आतंकवाद का हो या फिर भ्रष्टाचार का, इसका इलाज कॉमन मैन की कर सकता है। पहले कहा जाता था कि धरती पर अन्याय की अति होती है तो नारायण का अवतार होता है, अब ऐसी अति होने पर नर को ही नारायण बनना पड़ेगा। अच्छी फिल्म की अच्छी समीक्षा। साधुवाद।
thanks for updating about movie
regards
to dekhne jana padega kya
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