Friday, March 7, 2008

यहीं हूं और जिंदा भी

करीब करीब बीस दिन हो गए। कोई नई पोस्‍ट नहीं लिखी। इसलिए शुभचिंतकों ने मेल की, दो चार ने एसएमएस किए और एक दो ने फोन, कि भाई कहां हो आजकल। कुछ लिखा नहीं।
बस उनको यह बताने के लिए ही लिख रहा हूं कि यहीं हूं और जिंदा भी। बस यू समझिए लिख ही नहीं पा रहा हूं। पहले बजट टीम में होने से तीन बजटों में चार पांच दिन टाइम नहीं मिला। उसके बाद दो दिन घर चला गया और अब कंटीन्‍यूटी टूट गई तो कुछ लिखने का सोचता हूं तो आइडिया ही डाप हो जाता है।
बस इसी सिलसिले को फिर शुरू करने के लिए यूं ही सूचना की तरह ही लिख रहा हूं। बस यह है कि अपन की जिंदगी इनदिनों बेहद नाजुक दौर से गुजर रही है। एक बेहद गंभीर विषय पर न दिल की मान रहा हूं न दिमाग की। पिछले पंद्रह दिन से यही सोचने में ही जिंदगी गुजर रही है।
खैर
जल्‍द कुछ लिखता हूं
शब्‍बा खैर

3 comments:

Udan Tashtari said...

आओ भाई..जल्दी आओ. इन्तजार करते हैं. शुभकामनायें.

Ashish Maharishi said...

इंतजार रहेगा आपका भाई जान

khurapatee said...

अच्छा रहा कुछ लिख दिया. मैं यह सोचते हुए इंतजार कर रहा था कि कहीं उपर तो (परमोशन) नहीं पहुँच गए. चलो लिखा तो. हाँ अगर कहीं और बीजी हो गए हो तो शुभकामनाएँ. और कुछ हेल्प की जरूरत हो तो बताना